जयराम सरकार ने शिमला का नाम बदलकर श्यामला करने की मंशा जाहिर की है। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या रहती हैं इसका इन्तजार किया जा रहा है। यह नाम बदलनेे का सुझाव विश्वहिन्दु परिषद् की ओर से आया है। ऐसे में यह तय माना जाना चाहिये की कुछ दिनों की बहस के बाद इसे बहुमत की मंाग करार देकर यह नाम बदल दिया जायेगा। नाम बदलने से सरकार के ना एक बड़ीे उपलब्धि दर्ज हो जायेगी कि उसनेे ब्रिटिशशासन के एक प्रतीक को बदलकर पुरानी सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित करने की दिशा में पहला कारगर कदम उठा लिया है। वैसेे तो सरकार की नीयत का पता तो तभी चल गया था जब शिमला के सौन्दर्यकरण के ऐजैन्डे से यहां स्थित चर्चां की रिपेयर को अचानक नज़र अन्दाज कर दिया गया और उस पर कहीं से भी कोई आवाज नहीं उठी। सरकार के पास अपना पूर्ण बहुमत है इसलिये किसी भी विरोध से कोई फर्क नही पड़ेगा। संघ परिवार का ब्रिटिश और मुग्ल दासत्तां के प्रतीकों के प्रति किस तरह की धारणा है इसे सभी जानते हैं। ऐसे में उनके द्वारा बनाये गये भवनों और बसाये गये शहरों के नाम बदलकर अपनी पुरातन संस्कृति की स्थापना करना सबसे आसान काम है। फिर जब योगी आदित्यनाथ इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर सकते है तो जयराम शिमला को श्यामला क्यों नहीं कर सकते।
आज शिमला को सही में ही श्यामला बनाने की आवश्यकता है। क्योंकि आज का शिमला कंकरीट के जंगल में बदल चुका है। यह बदलाव कितना भयानक आकार ले चुका है इस पर एनजीटी, प्रदेश उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक गंभीर चिन्ता व्यक्त कर चुके हैं। इसी चिन्ता को स्वर देते हुए यहां नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। लेकिन शिमला का नाम बदलकर श्यामला करने वाली जयराम सरकार अदालत के इस प्रतिबन्ध को अधिमान देने की बजाये अदालत के फैसले को चुनौती देेने की बात कर रही है। अवैध निर्माणों को सख्ती से रोकने की बजाये उन्हे राहत देने के रास्ते निकाले जा रहे है। जब अवैध निर्माणों को रोका नही जायेगा तो फिर नाम बदलकर ही आप शिमला को श्यामला नही बना पायेंगे शिमला में पिछले दिनों पेयजल की कितनी गंभीर समस्या रही है यह पूरे देश के सामनेे आ चुका है। शहर में पार्किंंग की समस्या कितनी गंभीर है इसका आकलन इसी से किया जा सकता है कि प्रदेश उच्च न्यायालय ने नये वाहनों के पंजीकरण के लिये अपनी पार्किंग होने की शर्त लगा दी है। जब तक अपनी पार्किंग उपलब्ध नहीं होगी आप गाड़ी खरीदकर उसका पंजीकरण नही करवा सकते हैं। हर सड़क पर घन्टों टैªफिक जाम लग रहे हैं। यह आज के शिमला की व्यवहारिक सच्चाई बन चुकी है। इस समय शहर को इन समस्याओं से निजात दिलाने की आवश्यकता है और इसमें नाम बदलने से कुछ भी हल होने वाला नही है।
बल्कि नाम बदलने की बहस छेड़कर क्या सरकार असली समस्याओं पर से ध्यान हटाने का प्रयास करने जा रही है यह सवाल उठने लग पड़ा है। क्योंकि इस बार बरसात में जो नुकसान हुआ है वह आने वाले समय में एक स्थायी फीचर होने जा रहा है यदि इस समय एनजीटी के आदेशो का आक्षरशः पालन नही किया गया तो निश्चित रूप से ही इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। सरकार वोट की राजनीति के चलतेे अदालत के फैसलों पर अमल करने का साहस नही जुटा पा रही है। जबकि प्राकृतिक आपदाओं के संकट की चेतावनी हर जिम्मेदार मंच से सामनेे आ चुकी है। शिमला का रिज और लक्कड़ बाज़ार एरिया 1971-72 में धंसना शुरू हुआ था जो अब स्थायी फीचर बन चुका है। सैंकड़ो करोड़ इस धंसने को रोकने पर खर्च हो चुके हैं। इसलिये आज की आवश्यकता शिमला को संभावित प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लियेे ठोस और कड़े कदम उठाने की है और यह नाम बदलने से ही होने वाले नही है। फिर आज शिमला को शिमला होने के कारण ही हैरिटेज के नाम पर सौन्दर्यकरण आदि केे लिये विश्व संस्थाओं से करोड़ो रूपये मिल रहे हैं क्योंकि हैरिटेज को संजो कर रखा हुआ है। लेकिन कल जब शिमला श्यामला हो जायेगा तो हैरिटेज के नाम पर मिलने वाली सहायता के भी बन्द होने का खतरा हो जायेगा। ऐसे में यह नाम बदलनेे की कवायद किसी भी तरह से लाभदायक नही रहेगी। इससे केवल एक राजनीतिक बहस चलेगी। हो सकता है कि उससे वैचारिक धु्रवीकरण तो खड़ा हो जाये लेकिन व्यवहारिक रूप से यह नुकसादेह ही रहेगा।