संपर्क से समर्थन-कुछ सवाल

Created on Tuesday, 14 August 2018 08:19
Written by Shail Samachar

भाजपा ने अगले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ‘‘संपर्क से समर्थन’’ का कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत भाजपा पार्टी और सरकार के प्रमुख लोग समाज के विभिन्न वर्गों के प्रबुद्ध लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर संपर्क स्थापित करके उनसे समर्थन मांग रहे हैं। यह समर्थन मांगते हुए इन लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकरी दी जा रही है। मोदी सरकार की जन कल्याणकारी 109 योजनाओं की एक सूची सोशल मीडिया के माध्यम से भी सामने आयी है। इस सूची में पहली योजना प्रधानमन्त्री जन-धन योजना और अन्तिम योजना चप्पल पहनने वाला आम नागरिक भी हवाई जहाज में सफर कर सके इसके लिये 900 नये हवाई जहाज का आर्डर दे दिया गया है। सरकार की इन योजनाओं से आम आदमी को व्यवहारिक तौर पर कितना लाभ पंहुचा है इसका कोई आंकलन अभी तक सामने नही आया है। न ही यह सामने आया है कि यदि यह योजनाएं न लायी जाती तो समाज का कितना नुकसान हो जाता। क्योंकि किसी भी योजना का मूल्यांकन इस बात पर निर्भर करता है कि क्या सही में ही इस योजना की आवश्यकता थी भी या इसे केवल अपना प्रचार करने के लिये ही लाया गया है। क्योंकि बेरोजगारी, मंहगाई और भ्रष्टाचार की जो हकीकत 2014 के चुनावों से पहले थी वह आज भी है इसलिये इन योजनाओं का होना और न होना ज्यादा मायने नही रखता है।
बल्कि प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के तहत जो गरीब लोगों के बैंको में खाते खुलावाये गये थे उस समय इनमें जीरो बैलेन्स का दावा किया गया था। लेकिन आगे चलकर इसमें न्यूनतम बैलेन्स की शर्त जोड़ दी गयी। न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर इसमें जुर्माना लगाये जाने की बात कर दी गयी। अभी भारतीय स्टेट बैंक ने पिछले महीनों में यह न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर 235.06 करोड़ रूपये का जुर्माना इन खाताधारकां से वसूल किया है। जो लोग न्यूनतम बैलेन्स भी नही रख पाये हैं वह सही में ही गरीब मेहनतकश लोग हैं। जिनके पास यह न्यूनतम राशी भी नही थी। न्यूनतम बैलेन्स गरीब की समस्या है अमीर की तो अधिकतम बैलेन्स की होती है। ऐसे में जिन करोड़ों लोगों पर यह जुर्माना लगा होगा क्या उन्हें सही में इस योजना का लाभार्थी माना जा सकता है। फिर यह आंकड़ा तो अकेले एसबीआई का ही है और यही स्थिति अन्य बैंकों की भी होगी। ऐसे में यदि प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के तहत यह खाते न खुलवाये जाते तो इन गरीबों का यह करोड़ों रूपया बच जाता।
इसी तरह अब राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में वित्त राज्य मन्त्री ने एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी है कि पिछले तीन वित्तिय वर्षों में बैंको का धोखधड़ी के कारण 70,000 करोड ़का नुकसान हुआ है। 2015-16 में 16409, करोड़ 2016-17 में 16652 करोड़ और 2017-18 में 36694 करोड़ का नुकसान हुआ है। यह नुकसान इन बैंको द्वारा अंधाधुंध एडवांस देने के कारण हुआ है। 2008 में यह एडवांस 25.03 लाख करोड़ था जो कि 2014 में 68.75 लाख करोड़ तक पंहुच गया। यह एडवांस आज Bad Loan बन गया है। लेकिन इसके लिये बैंक प्रबन्धनां के खिलाफ कारवाई की बजाय इन बैंकां की सहायता के लिये । ARC बनाई जा रही है। यह asset reconstruction company, Bad bank  तैयार किया जा रहा है। क्योंकि इन बैंकों का एनपीए जो 2013 में 88500 लाख करोड़ था आज 31 मार्च 2017 को यह 8.41 लाख करोड़ को पहुंच गया है। सरकार इस स्थिति को सुधारने के लिये कोई ठोस कदम नही उठा रही है। क्योंकि यह एनपीए और धोखाधड़ी सब बड़े लोगों के ही काम हैं। अदानी जैसे उद्योगपति ने कैसे एक सम्प्रेषण नेटवर्क विकसित करने के ठेके में ही 1500 करोड़ की काली कमाई कर ली। इसको लेकर राजस्व निदेशक ने 97 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। यह रिपोर्ट 15 अगस्त 2017 के गार्डियन अखबार ने पूरे विस्तार के साथ छापी है। लेकिन भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर आज तक कोई कारवाई नही की है। अडानी जैसे दर्जनों और मामले हैं जिनके कारण देश की पूरी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पंहुचा है। लेकिन मोदी सरकार इन लोगों के खिलाफ कारवाई करने की बजाये जन-धन में न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर जुर्माना लगाकर फिर गरीब की कीमत पर अमीर के साथ खड़ी हो रही है।
आज जब सत्तारूढ़ दल प्रबुद्ध लोगों से संपर्क साध कर उनसे समर्थन मांग रहा है तब यह आवश्यक हो जाता है कि यह कुछ सवाल इन लोगों के सामने रहे हैं। ताकि जब यह अपने समर्थन का वायदा करें तक इन मुद्दों को भी अपने जहन में रखें। क्योंकि यह चुनाव देश के भविष्य के लिये एक महत्वपूर्ण घटना होने जा रही है। 2014 के चुनाव में देश ने देखा है कि भाजपा ने एक भी मुस्लिम को लोकसभा का उम्मीदवार नही बनाया था। आज तो स्थिति चुनाव टिकट न देने से आगे निकलकर भीड़ हिंसा तक पंहुच गयी है। जहां इस भीड़ हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय तक ने चिन्ता जताई है वहीं पर एक वर्ग अपरोक्ष में इसकी वकालत भी कर रहा है। इसलिये प्रबुद्ध वर्ग से यह आग्रह रहेगा कि वह इन व्यवहारिक सच्चाईयों पर आंख मूंद कर ही अपना फैसला न ले।