शिमला/शैल। मोदी सरकार को सत्ता संभाले चार वर्ष हो गये हैं और अब अगले वर्ष मई तक चुनाव हो जाने हैं। इन चुनावों के लिये तैयारी भी शुरू हो गयी है। इसलिये चार वर्ष का समय किसी सरकार के कामकाज़ के आंकलन के लिये बहुत पर्याप्त समय कहा जा सकता है लेकिन मोदी सरकार के आकलन से पहले यह भी सामने रखना आवश्यक है कि जब मोदी ने बागडोर संभाली थी तब राजनीतिक और अािर्थक परिदृश्य क्या था। 2014 में जब चुनाव हुए और सत्ता बदली उससे पहले पूरा देश अन्ना आन्दोलन के प्रभाव में था और जन लोकपाल की स्थापना की मांग की जा रही थी क्योंकि इस आन्दोलन से पहले देश में घटे कुछ आर्थिक घोटालों को लेकर प्रशान्त भूषण की याचिकाओं ने एक ऐसा वातावरण खड़ा कर दिया था जिसमें उस समय के यूपीए शासन को एकदम भ्रष्टाचार का पर्याय करार दे दिया था। इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिये जनलोकपाल की स्थापना सिविल सोसायटी की सबसे बड़ी ही नहीं बल्कि एकमात्र मांग बन चुकी थी। उस समय 2जी स्कैम और काॅमन वैल्थ गेम्ज़ जैसे घोटाले हर बच्चेे -बच्चे की जुबान पर आ चुके थे। 2जी स्कैम को लेकर विनोद राय की रिपोर्ट और काॅमन वैल्थ गेम्ज़ पर भी आॅडिट की रिपोर्ट आ चुकी थी जिनसे इन घोटालों की पुष्टि हो रही थी। इसलिये उस समय अन्ना आन्दोलन को खत्म करने के लिये सिविल सोसायटी के लोेगों से सरकार की बातचीत जनलोकपाल विधेयक का मसौदा तक तैयार हुआ और संसद की दहलीज़ तक भी गया। अन्ना आन्दोलन को संचालित करने के लिये इंण्डिया अगेंस्ट क्रप्शन एक मंच तैयार हुआ जिसका पूरा नियन्त्रण संघ के हाथ में था। देश के सारे सामाजिक, और सांस्कृतिक संगठन इस आन्दोलन में कूद पड़े थे। श्री श्री रविशंकर के आर्ट आॅफ लिविंग के लोग भी कैण्डल मार्च करते देखे गये थे। इस आन्दोलन मे स्वामी रामदेव, स्वामी अग्निवेश और किरण बेदी जैसे लोगों की भूमिका क्या रही यह भी सारा देश जानता है। फिर इस आन्दोलन के प्रभाव का प्रतिफल लेने के लिये अलग अलग से एक राजनीतिक ईकाई खड़े करने के प्रश्न पर अन्ना और केजरीवाल में कैसे मतभेद पैदा हुए जिनके कारण आन्दोलन बन्द हुआ। अन्ना ने ममता बैनर्जी के साथ मिलकर कैसे पुनः आन्दोलन का आह्वान करने के लिये रामलीला मैदान मे जन बैठक करने की घोषणा की जो की सफल नही हो सकी और अन्ना को वापिस अपने घर आना पड़ा यह सब देश ने देखा है।
इस आन्दोलन की छाया मे लोकसभा के चुनाव हुए और जो संघ आन्दोलन का संचालन कर रहा था उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा को केन्द्र की सत्ता मिल गयी। इसी के साथ जो केजरीवाल इस आन्दोलन के एक प्रमुख पात्र बनकर उभरे थे उन्हे दिल्ली प्रदेश की सत्ता मिल गयी। जिस तरह का प्रचण्ड बहुमत भाजपा को केन्द्र के लिये, वैसा ही प्रचण्ड बहुमत केजरीवाल को दिल्ली के लिये मिल गया। मोदी और केजरीवाल दोनो ही अन्ना आन्दोलन के प्रतिफल हैं यह कहना अंसगत नही होगा। लेकिन क्या यह दोनों ही इस आन्दोलन का आधार बने मुद्दों की कसौटी पर आज खरे उत्तरे हैं तो निश्चित रूप से उत्तर एक बड़ी ‘‘नहीं’’ के रूप में होगा। क्योंकि इस जनान्दोलन में जिस जनलोकपाल की मांग की गयी थी वह आज कहीं दूर से भी दिखाई नही दे रहा है। इससे यह समझा जा सकता है कि वास्तव में ही संघ -भाजपा और मोदी व्यवहारिक तौर पर भ्रष्टाचार के कितने खिलाफ हैं। अभी 2जी स्कैम पर जिस तरह से अदालत का फैंसला आया है उससे भी मोदी की नीयत और नीति पर ‘मुहर’ लग जाती है। उस समय भ्रष्टाचार के साथ ही मंहगाई और बेरोजगारी दो और मुद्दे इस आन्दोलन के प्रमुख प्रश्न थे जो हर आदमी को सीधे छू रहे थे। इसलिये आज जब आंकलन किया जायेगा तो क्या उसके मानदण्ड यही मुद्दे नही बनेंगे। आज कोई भी ईमानदार व्यक्ति यह नही कह पायेगा कि भ्रष्टाचार, मंहगाई और बेरोज़गारी में कोई कमी आयी है।
भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को उस दौरान प्रशान्त भूषण ने जन चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया था और जिसके लिये संघ ने इण्डिया अगेंस्ट क्रप्शन का मंच खड़ा कर दिया था आज उन मुद्दों का हुआ क्या है। 2जी स्कैम को अदालत ने कह दिया कि स्कैम हुआ ही नही। जिसमें मन्त्री, सांसद वरिष्ठ नौकरशाह और काॅरपोरेट घरानों के भी शीर्ष अधिकारी तक गिरफ्तार हुए थे। जिस पर पूरे देश का भविष्य बदल गया। आज जब उसपर यह सुनने को मिले कि यह तो घटा ही नही था तो उसके लिये किसे तमगा दिया जाये? इस मुद्देे पर आदरणीय प्रधानमन्त्री मौन हैं क्योंकि लोगों ने अदालत का फैंसला देखा है। वह समझते हैं कि इसमें केन्द्र सरकार की भूमिका क्या रही है। यह स्पष्ट हो चुका है कि मोदी सरकार और उनकी ऐजैन्सीयों ने जानबूझ कर इसकी सही पैरवी ही नही की। आज यह आम चर्चा है कि 2जी स्कैम पर आये फैसले के बाद मोदी तमिलनाडू में एडी एम के साथ चुनाव गठबन्ध करने जा रहे हैं क्योंकि जोे जितना भ्रष्ट होगा उसे उतनी ही आसानी से अपने साथ मिलाया जा सकता है। काॅमनवैल्थ गेम्ज़ के मामलें को लेकर तो आज तक कहीं चर्चा तक नही है। आज जो पंजाब नैशनल बैंक का घपला सामने आया है उस पर भाजपा के लोग जिस प्रकार की सफाई देकर उसे यूपीए के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं वह भूल रहे हैं कि 2014 से तो आप सत्ता में है और इसी भ्रष्टाचार को पकड़ने के लिये तो आपको सत्ता सौंपी गयी थी। फिर आपने क्या किया खैर इस मामले पर वित्त मन्त्री अरूण जेटली ने पूर्व की कांग्रेस सरकार को नही कोसा है क्योंकि आज भाजपा के ही बड़े नेता को वित्त मन्त्री यशवन्त सिन्हा और सांसद शान्ता कुमार जैसे लोग अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं। लेकिन जेटली ने जिस ढंग से इस घपले के लियेे बैंक के आॅडिटर्ज़ को भी जिम्मेदार ठहराया है उससे फिर यह सवाल उठता है कि यह बैंक सरकार का बैंक और आॅडिटर्ज़ सरकार के कर्मचारी हैं। उनपर तुरन्त कारवाई करना आपकी जिम्मेदारी है। आज बैकांे के विलफुल डिफाल्टरज़ को लेकर 335 पन्नों की सूची बाहर आ चुकी है। जिसके मुताबिक यह राशी 4903180.79 लाख रूपये बनती है। यह लोगों का पैसा है बैकों की कार्यप्रणाली पर इससेे बड़ा प्रश्न चिन्ह और क्या हो सकता है? इस सद्धर्भ में अब यह सवाल पूछा जाने लगा है कि मोदी जी जनलोकपाल कहां है?