राष्ट्रपति,प्रधान मन्त्री से लेेकर मुख्यमन्त्री तक को भेजी शिकायत
शिमला/शैल। प्रदेश के पर्यटन विकास निगम में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाले निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल ने एक बार फिर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यन्त्री और शान्ता कुमार आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह तथा प्रदेश संयोजक राजन सुशांत के नाम भेजे पत्रा के माध्यम से नए सिरे से मोर्चा खोल दिया है। इस बार गोयल ने मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव एंवम अतिरिक्त मुख्य सचिव वी सी फारखा को फिर से निशाने पर लिया है। गोयल ने फारखा की ईमानदारी और निष्ठा पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह से आग्रह किया है कि यदि फारखा का मुख्य सचिव पदोन्नत किया जाता है तो वह इस मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय में ले जायेंगे और इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी। गोयल ने इसी सं(र्भ मे भेजी अपनी पुरानी शिकायतोें का भी मुख्यमन्त्री को स्मरण दिलाया है जिन पर अभी तक वांच्छित कारवाई नही हुई है। गोयल की इस शिकायत के तथ्यों से जहां फारखा के विरोधीयों को उनके खिलाफ एक कारगर हथियार मिल जायेगा वहीं पर वीरभद्र सिंह की भ्रष्टाचार के खिलाफ सारी प्रतिबद्धता भी कसौटी पर लग जायेगी। क्योंकि फारखा वीरभद्र सिंह के विश्वस्त है और इसी नाते वरियता क्रम को नजर अंदाज करके उन्हें मुख्य सचिव बनाने की मंशा रखे हुए है। जबकि वरियता में उपमा चैधरी जैसे अधिकारी भी है जिनके खिलाफ कुछ भी नही है और Outstanding ACR's लिये हुए है।
इस परिदृश्य में गोयल के पत्र को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही होगा क्योंकि हर आरोप की पुष्टि में प्रमाणिक दस्तावेज साथ लगाये हुए हैं। गोयल का आरोप है कि वर्ष 2001 से 2002 में जब फारखा पर्यटन निगम प्रबन्धन के प्रबन्ध निदेशक थे तब उन्होने होटल पीटर हाॅफ में अपने मेहमानों को मुफ्रत में ठहरा कर निगम को वित्तिय नुकसान पंहुचाया है। यह मेहमान जून 2002 में ठहरे थे और गोयल ने होटल पीटर हाॅफ के इस संबध में बिल साथ लगाये हैं। जिन पर एम डी के गेस्ट’ स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। गोयल ने जब इस आश्य की शिकायत निदेशक मण्डल से की थी तब फारखा ने अपने मेहमानों को मुफ्रत में ठहराने से सिरे से ही नकार दिया था। लेकिन गोयल ने 12 मार्च 2015 को लिखे पत्र मे इस आरोप को दस्तावेज लगाकर प्रमाणित कर दिया पर इस पर कारवाई कोई नही हुई।
गोयल का आरोप है कि फारखा के गल्त फैसले के कारण पर्यटन निगम कोे 72 लाख का जुर्माना भरना पड़ा है। फारखा ने मार्च 2002 में निगम के वित्त प्रबन्धक को निर्देश दिये की कर्मचारियों का सी पी एफ प्रोविडैन्ट फण्ड कमीशनर के यहां जमा न करवाया जाये। दो वर्ष तक सी पी एफ जमा न करवाने के मामले में गोयल ने प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका CWP 108/2002 दायर की थी जिसके परिणाम स्वरूप प्रोविडैन्ट फण्ड कमीशनर ने निगम को 72 लाख का दण्ड लगाया।
फारखा पर भारत सरकार में भी झूठेे दस्तावेज फाईल करने का भी आरोप है। यह आरोप निगम के खड़ा पत्थर प्रौजैक्ट को लेकर है। इस प्रौजैक्ट को लेकर 2002 में भारत सरकार के पर्यटन मन्त्रालय में यह दस्तावेज फाईल किये गये यह प्रौजैक्ट पूरी तरह तैयार करके 31-12-2001 को चालू भी कर दिया गया है इन दस्तावेजों में बाकायदा उपयोगिता प्रमाण पत्रा तक फाईल किया गया है। प्रमाण पत्रा और इसके चालू भी कर दिये जाने पर भारत सरकार ने इसकी अन्तिम किश्त 5,66,000 रूपये भी जारी कर दी। भारत सरकार ने राशी प्राप्त करने के लिये भेजे गये दस्तावेजों के मुताबिक खड़ा पत्थर का होटल गिरी गंगा प्रौजैक्ट 31-12-2001 को 39.30 लाख के कुल निवेश के साथ पूरा करके इस्तेमाल में भी ला दिया गया है। भारत सरकार के पैसे से बनी इस संपत्ति के प्रबन्धन का अनुबन्ध भी भारत सरकार के साथ हस्ताक्षरित कर दिया जाता है और किसी को भी इस पर कोई सन्देह नही होता है।
लेकिन जब 24-10-2005 का पर्यटन निगम के निदेशक मण्डल की वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में बैठक होती है तब इस होटल का निर्माण शीघ्र पूरा करने के निर्देशों के साथ इसे न लीज पर देने न बेचने का भी फैसला लिया जाता है। बैठक में इसे अप्रैल 2006 तक पूरा करके पर्यटकों के लिये उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये जाते है जिस होटल को भारत सरकार को 39.30 लाख में पूरा हुआ दिखाया जाता है उसी को लेकर 20-02-2006 को प्रौजैक्ट अफसर द्वारा कमीशनर को लिखे पत्रा में कहा जाता है कि इस पर अब तक 84.77 लाख खर्च हो चुका है और शेष बचे काम को पूरा करने के लिये 28,91,703 रूपये की और आवश्यकता होगी । प्रोजैक्ट अफसर के इस पत्र के बाद 31-5-2006 को इसके लिये तीस लाख रूपये और जारी कर दिये जाते हैं। इस तरह यह होटल 25-06-06 को 1,35,84,076 रूपये के निवेश से पूरा करके उद्घाटित कर दिया जाता है। यहां यह सवाल उठता है कि 31-12-2001 को कैसे कह दिया गया कि 39.30 लाख में होटल पूरा करके चालू कर दिया गया है। आगे चलकर यह खर्च कैसे बढ़ गये? इस निमार्ण को लेकर अरसे से सरकार के पास शिकायतें चल रही हैं। फारखा आज अतिरिक्त सचिव पर्यटन हैं और मुख्यमन्त्री के अपने पास विभाग है आज मुख्यमन्त्री के विश्वास के कारण फारखा मुख्य सचिव बन सकते है लेकिन क्या इससे पहले मुख्यमंत्री और फारखा को प्रदेश की जनता के सामने गोयल द्वारा उठाये गये सवालों पर जबाव नही देना चाहिये? या फिर यह जबाव अदालत के माध्यम से ही सामने आयेंगे?