जे.पी. की समानान्तर सत्ता के आगे सरकारी तन्त्र पड़ा बौना

Created on Tuesday, 10 May 2016 13:04
Written by Shail Samachar

209 करोड़ की रिकवरी को बट्टे खाते में डालने की तैयारी

शिमला/शैल। प्रदेश का जे पी उद्योग समूह क्या एक समानान्तर सत्ता है जिसके आगे सरकारी तन्त्रा एकदम बौना पड़ जाता है। जल विद्युत क्षेत्र और सीमेन्ट क्षेत्र में इस उद्योग समूह का सबसे बड़ा दखल है। इन दोनो ही क्षेत्रों में उद्योग से जुडी ऐसी कोई अनियमितता नही हंै जिसके आरोप इस उद्योग पर न लगे हों और उनके लिये स्थानीय लोगों से लेकर मजदूरों तक ने आन्दोलन न किये हों। यह भी रिकार्ड है कि इस उद्योग की अनियमितताओं को लेकर वामदलों के अतिरिक्त कांगे्रस और भाजपा ने कभी आवाज नहीं उठाई है । बल्कि वीरभद्र शासन के 2003 से 2007 के कार्यकाल में सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपे एक आरोप पत्रा में जे.पी. के सीमेन्ट प्लांट को लेकर गंभीर आरोप लगाये थे। जिन पर 2008 में सत्ता संभालने पर जांच का साहस तक नही किया। भाजपा के इसी शासन काल में जे.पी. ने प्रदेश में थर्मल पावर प्लांट का ताना बाना बुना जो प्रदेश उच्च न्यायालय में मामला आने के बाद रूका। उच्च न्यायालय ने इस प्ंलाट का गभीर संज्ञान लेते हुए इस पर एस.आई.टी. गठित की जिसकी रिपोर्ट उच्च न्यायालय में दाखिल हो चुकी है लेकिन उस पर आगे क्या हुआ यह आज तक सामने नहीं आ सका है।
जे.पी. उद्योग 1990 के शांता कुमार के शासन काल में प्रदेश में आया था। शान्ता कुमार सरकार ने उस समय राज्य विद्युत बोर्ड से वसपा परियोजना लेकर इस उद्योग समूह को दी थी। परियोजना देेते समय यह तय हुआ था कि इस पर विद्युत बोर्ड जो भी निवेष कर चुका है उसे यह उद्योग 16% ब्याज सहित बोर्ड को वापिस लौटायेगा। यह परियोजना 2003 से उत्पादन में आ चुकी है लेकिन बोर्ड का पैसा वापिस नही दिया गया है। ब्याज सहित यह रकम 92 करोड़ तक पहुंच गयी थी कैग ने इसको लेकर कई बार सवाल उठाये है लेकिन अन्त में सरकार ने यह कह कर यह पैसा इस उ़द्योग को माफ कर दिया कि यदि यह वसूली कर ली जाती है तो जे.पी. बिजली के रेट बढ़ा देगा। कैग सरकार के इस जबाव से सहमत नही है लेकिन सरकार कैग रिपोर्ट को मानने के लिये ही तैयार नही हैै।
इसी तरह 900 मैगावाट की कडछम वांगतू परियोजना के लिये जे. पी. उद्योग के साथ अगस्त 1993 में एमओयू हस्ताक्षरित हुआ। नवम्बर 1999 में आईए(IA) साईन हुआ। मार्च 2003 में भारत सरकार और TEC ने 1000 मैगावाट की तकनीकी स्वीकृति प्रदान कर दी जिसमें 250-250 मैगावाट के चार टरवाईन संचालित होने थे। 6903 करोड़ के निवेश से बनी इस परियोजना ने मार्च 2011 से उत्पादन भी शुरू कर दिया है। लेकिन इस ईमानदार उद्योग समूह ने 250 मैगावाट क्षमता वाली परियोजना के स्थान पर 300 मैगावाट क्षमता के टरवाईन स्थापित करके इस परियोजना की क्षमता 900 मैगावाट से बढ़ाकर 1200 मैगावाट कर ली। लेकिन इसकी जानकारी सरकार को नहीं दी। परन्तु मार्च 2011 में इसकी भनक CEA को लग गयी और उसने प्रदेश सरकार को इसकी जानकारी दे दी। इस सूचना पर प्रदेश सरकार ने जून 2012 मे एक तकनीकी जाच कमेटी गठित कर जिसने जून 2013 में सरकार को सौंपी रिपोर्ट में इस सूचना को सही पाया है। प्रदेश की 2006 की विद्युत नीति के तहत यदि कोई परियोजना अपनी क्षमता बढ़ाती है तो उसे बढ़ी हुई क्षमता के लिये नये सिरे अनुबन्ध साईन करना होगा और बढ़ी हुई क्षमता पर 20 लाख प्रति मैगावाट का अपफ्रन्ट प्रिमियम अदा करना होगा। इसी के साथ फ्री रायल्टी और लोकल एरिया विकास फन्ड भी बढे़गा। इस तरह अब इसकी बढ़ी क्षमता का अपफ्र्रन्ट प्रिमियम 60 करोड़, बढ़ी हुई रायल्टी का 77.73 करोड़ और लोकल एरिया फन्ड का 71.55 करोड़ जे.पी. उद्योग समूह से वसूल किया जाना है। यह कुल रकम 209 .28 करोड़ बनती है जिसकी वसूली का सरकार साहस नही जुटा पा रही है।
क्योंकि इससे पूर्व वसपा की करीब 92 करोड़ की रिकवरी बट्टे खाते में डाली जा चुकी है। अब उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक 209 करोड़ की रिकवरी को भी वसपा में आधार बनाये गये तर्क पर बट्टे खाते में डालने की तैयारी चल रही है। सरकार की नीयत पर इसलिये सन्देह उभर रहा है कि मार्च 2011 में यह सारा घालमेल सरकार के संज्ञान में आ गया था। लेकिन धूमल सरकार ने कारवाई नही की और अब वीरभद्र सरकार को भी सत्ता में आये तीन वर्ष से अधिक का समय हो गया है। जे.पी. के खिलाफ कारवाईे नही हुई है इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठने स्वभाविक हैं।