क्या यह टनों के हिसाब से बही लकड़ी बारिश में ऊपर से बरसी है?

Created on Sunday, 29 June 2025 19:06
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या हिमाचल में हर बरसात में ऐसे ही जान माल का नुकसान होता रहेगा? यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि 2023 में भी आयी आपदा के दौरान मण्डी के थुनाग में आयी बाढ़ में बड़ी मात्रा में लकड़ी नालों में बहकर आयी थी। इस बार भी सैंज में बादल फटने से जीवा नाला में आयी बाढ़ में टनों के हिसाब से लकड़ी बहकर पंडोह डैम तक पहुंची है। सैंज में जहां बादल फटा है उस क्षेत्र में एक पॉवर प्रोजेक्ट का काम चल रहा था। यह काम एक इंदिरा प्रियदर्शनी कंपनी के पास है और कंपनी के पास सैकड़ो मजदूर काम कर रहे थे। पॉवर प्रोजेक्ट के काम में कई अनियमितताओं के आरोप लगे हैं जो जांच के बाद ही सामने आ पायेंगे। मजदूरों के पंजीकरण का भी आरोप है इसलिये मौतों के सही आंकड़ों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कांगड़ा के धर्मशाला में भी बादल फटने से बाढ़ आयी है जिसमें कई मजदूर बह गये हैं। इस क्षेत्र में भी ‘सोकनी दा कोट’ में एक पॉवर प्रोजेक्ट का काम चल रहा था जिसके निर्माण में कई अनियमितताओं के आरोप हैं। 2023 में जब बरसात में आपदा आयी थी तब नदियों के किनारे हो रहे खनन को इसका बड़ा कारण बनाया गया था। इस पर मंत्रियों में ही विवाद भी हो गया था। इस समय हिमाचल में चंबा से लेकर किन्नौर शिमला तक करीब साढे पांच सौ छोटी-बड़ी पॉवर परियोजनाएं चिन्हित हैं और अधिकांश पर काम चल रहा है। चंबा में रावी पर चल रही पॉवर परियोजनाओं में 65 किलोमीटर तक रावी अपने मूल बहाव से लोप है। यह तथ्य अवय शुक्ला की रिपोर्ट में दर्ज है और प्रदेश उच्च न्यायालय में यह रिपोर्ट दायर है। स्वभाविक है कि जब पानी के मूल रास्ते को रोक दिया जायेगा तो बरसात की किसी भी बारिश में जब पानी बढ़ेगा तो वह तबाही करेगा ही। अवय शुक्ला की रिपोर्ट का संज्ञान लेकर पॉवर परियोजनाओं में इस संबंध में क्या कदम उठाये गये हैं इसको लेकर कोई रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आ पायी है। पॉवर परियोजनाओं के निर्माण से पूरे क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है और इसका असर गलेश्यिरों के पिघलने पर पढ़ रहा है। लाहौल-स्पीति और किन्नौर में कई परियोजनाओं पर स्थानीय लोगों ने आपत्तियां भी उठाई है और धरने प्रदर्शन भी किये हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से कालांतर में परियोजनाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिये समय रहते इस सवाल पर ईमानदारी से विचार करके कुछ ठोस और दीर्घकालिक उपाय करने होंगे अन्यथा भविष्य में और भी गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
2023 में जो लकड़ी थुगान में बहकर आयी थी उसका संज्ञान शायद अदालत ने भी लिया था और उस पर एक रिपोर्ट भी तलब की थी। इस रिपोर्ट में क्या सामने आया है इसको लेकर कोई जानकारी आज तक सामने नहीं आयी है। न ही किसी ने यह दावा किया है कि यह लकड़ी उसकी थी। उस अवैधता पर आज तक पर्दा पड़ा हुआ है। अब सैंज में बादल फटने से जो लकड़ी जीवा नाला से होकर पंडोह तक पहुंची है उसको लेकर भी रहस्य बना हुआ है कि यह लकड़ी किसकी है। टनों के हिसाब से पंडोह डैम में लकड़ी पहुंची है। वन निगम जिसके माध्यम से वन विभाग लकड़ी का निस्तारण करता है उसके उपाध्यक्ष ने साफ कहा है कि यह लकड़ी वन निगम की नहीं है। क्षेत्र के वन विभाग के अधिकारियों ने भी इस लकड़ी के बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है इसे बालन की लकड़ी कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है। इस लकड़ी के जो वीडियो सामने आये हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि यह करोड़ो की लकड़ी है। यदि किसी प्राइवेट आदमी की इतनी मात्रा में वैध लकड़ी इस तरह बह जाती तो वह तो तूफान खड़ा कर देता। परन्तु ऐसा भी कुछ सामने नहीं आया है। टनों के हिसाब से लकड़ी सामने है लेकिन इसका मालिक कोई नहीं है। सरकार के वन विभाग का लकड़ी के निस्तारण का काम वन विभाग के माध्यम से होता है और वन विभाग लकड़ी का मालिक होने से इन्कार कर रहा है तो स्वभाविक है कि यह लकड़ी अवैध कटान की ही है क्योंकि बारिश में आसमान से तो यह टपकी नहीं है? सरकार ने अभी तक इस लकड़ी का स्रोत पता लगाने के लिये कोई कदम नहीं उठाये हैं इस बारे में कोई जांच गठित नहीं की गयी है। वन विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। सरकार में किसी मंत्री ने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया है। केवल अखिल भारतीय कांग्रेस प्रवक्ता विधायक कुलदीप राठौर ने इसकी जांच किये जाने की मांग की है। सरकार की ओर से आधिकारिक रूप से इस पर कुछ न कहने से और भी कई सवाल खड़े हो जाते हैं। यहां तक पॉवर प्रोजेक्ट का निर्माण कर रही कंपनी तक सवाल उठने लग पड़े हैं।