शिमला/शैल। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान जो दस गारंटीयां जनता को दी थी उनमें से एक युवाओं को रोजगार देने की थी। सरकार ने इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए तीन मंत्रियों की एक कमेटी बनाकर सरकार में खाली पदों की जानकारी हासिल करने का प्रयास किया था। इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार में 70,000 पद खाली होने की जानकारी आयी थी। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश में 185698 पद नियमित 5726 अंशकालिक और 4593 दैनिक वेतन भोगी है। तदर्थ और अनुबन्ध आदि की जानकारी सर्वेक्षण में नहीं दी गयी है ऐसा क्यों है इसका कोई कारण नहीं बताया गया है। सरकार में 70,000 पद खाली होने से युवाओं में नौकरी मिलने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन विधानसभा के इस बजट सत्र में जिस भी विधायक ने यह जानकारी मांगी है कि 15-01-24 तक सरकार कितने लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा पायी है तो इसमें ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ का ही जवाब आया है। सरकार इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दे पा रही है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल सरकार ने एक समय अनुबन्ध के आधार पर सरकारी नौकरी देने का नियम बनाया था। एक तय समय अवधि के बाद ऐसे नियुक्त हुये कर्मचारी नियमित हो जाते थे। लेकिन इन्हें पूरे सेवा लाभ नहीं मिल पाते थे और यह सरकार की बचत होती थी। परन्तु पिछले दिनों तीन कान्ट्रेक्ट के अलग-अलग मामलों में यह व्यवस्था दी है कि कान्ट्रेक्ट काल सारे सेवा लाभों पदोन्नति और पैन्शन आदि में गणना में आयेगा तो उससे सरकार के लिये कठिनाई बढ़ी है। बल्कि कान्ट्रेक्ट की जगह नियमित नौकरी देने को ही बेहतर माना जा रहा है।
इस समय सरकार की जो स्थिति चल रही है उसमें प्रदेश की वरिष्ठ नौकरशाही ने कान्ट्रेक्ट का विकल्प तलाशने के लिये मुख्य सचिव की अध्यक्षता में छः फरवरी को एक बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में अठारह वरिष्ठ नौकरशाहों ने भाग लिया। इस बैठक में अदालती आदेशों की अनुपालना करने से बढ़ने वाले आर्थिक बोझ से बचने के लिए गुजरात मॉडल अपनाने पर चर्चा की गई। इसमें प्रधान सचिव कार्मिक को गुजरात मॉडल का अध्ययन करने और उसकी कानूनी स्थिति जांचने की जिम्मेदारी दी गई है। अफसरशाही के इस प्रयास का सीधा सा अर्थ है कि सरकार नौकरी देने के लिये ऐसी व्यवस्था लाना चाहती है जिसमें वित्तीय बोझ कम से कम पड़े। दूसरे शब्दों में अब सरकार ऐसी व्यवस्था लाना चाहती है जिसमें सरकार पर कोई बाध्यता न पड़े। कहने के लिये तो सरकारी नौकरी हो परन्तु व्यवहार में नहीं। सरकार के इस प्रयास का बेरोजगार युवाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका पता आने वाले समय में चल जाएगा।