शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को पिछले एक वर्ष में 33000 करोड़ दिये हैं। आपदा में भी केन्द्र ने प्रदेश सरकार को 3000 करोड़ दिये यह दावा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुलह के विधायक विपिन सिंह परमार ने एक ब्यान में किया है। परमार भाजपा के कांगड़ा चम्बा के प्रभारी हैं। परमार से पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ.राजीव बिन्दल ने भी केन्द्रीय सहायता के विस्तृत आंकड़े जारी किये। हमीरपुर के सांसद केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी इस आश्य के आंकड़े जारी करते रहे हैं। लेकिन भाजपा नेताओं के इन दावों का प्रमाणिक खण्डन करने की बजाये केन्द्र पर हिमाचल की सहायता न करने का आरोप सुक्खू सरकार के मंत्री और कांग्रेस नेता लगाते आ रहे हैं। केंद्रीय सहायता को जिस तरह से मुद्दा बनाकर परोसने का काम किया जा रहा है उससे यह लग रहा की आने वाले लोकसभा चुनाव इसी मुद्दे के गिर्द केन्द्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस परिदृश्य में पूरी वस्तुस्थिति का आकलन करना आवश्यक हो जाता है। पूर्व सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन और प्रदेश को कर्ज में डूबने के आरोप लगाते हुये सुक्खू सरकार वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लेकर भी आयी है। इस श्वेत पत्र के अनुसार जयराम सरकार सुक्खू सरकार पर 92000 करोड़ की देनदारियां छोड़ गयी है। कुप्रबंधन के कई आंकड़े और तथ्य इस श्वेत पत्र में दर्ज हैं। लेकिन इस कुप्रबंधन के लिये किसी को भी चिन्हित नहीं किया गया है। जब कोई विशेष रूप से चिन्हित ही नहीं है तो किसी के भी खिलाफ कोई कारवाई किए जाने का प्रश्न ही नहीं उठा। कुप्रबंधन के साथ ही केन्द्र सरकार पर यह आरोप है की प्रदेश के कर्ज लेने की सीमा में भी केन्द्र ने कटौती कर दी है। विदेशी सहायता पर भी सीमा लगा दी गयी है। किसी भी राज्य को कर्ज जीडीपी के एक तय अनुपात के अनुसार मिलता है। जिन राज्यों में इस नियम की अनुपालना नहीं हुई है वह इसके विरुद्ध अदालत में गये हैं। लेकिन हिमाचल ने ऐसा नहीं किया है। इसी के साथ जब राजीव बिन्दल ने सुक्खू सरकार द्वारा लिये गये कर्ज के आंकड़े आरटीआई के माध्यम से सूचना लेकर जारी किये तो स्थिति एकदम बदल गयी। इस सरकार पर प्रति माह 1000 करोड़ से भी अधिक का कर्ज लेने का खुलासा सामने आ गया।
इस वस्तुस्थिति में यह देखना रोचक हो गया है की क्या सुक्खू सरकार और कांग्रेस संगठन केन्द्र की अनदेखी को प्रमाणिकता के साथ चुनावी मुद्दा बन पायेंगे? क्योंकि इस सरकार ने पहले दिन से ही कर्ज लेना शुरू कर दिया है। कर्ज के साथ आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं के दामों में भी बढ़ौतरी की है। राजस्व वृद्धि के दावों के साथ यह प्रश्न लगातार अनुतरित रह रहा है कि सरकार चुनावों में दी हुई गारंटीयों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठा पा रही है? आज बेरोजगार युवाओं को आश्वासनों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल पा रहा है। यह युवा सरकार के खिलाफ अपना रोष सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने पर मजबूर क्यों होते जा रहे हैं। आने वाले लोकसभा चुनावों में सरकार का कर्ज़ के खर्च और गारंटीयों पर घिरना तय माना जा रहा है।