प्रदेश की स्थिति पर कांग्रेस हाईकमान का मौन सवालों में

Created on Tuesday, 09 January 2024 12:43
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुक्खू अपने नवनियुक्त मंत्रियों को अभी तक विभागों का आवंटन नहीं कर पाये हैं। बारह दिसम्बर को राजेश धर्माणी और यादवेन्द्र गोमा को मंत्री बनाया गया था। इतने अरसे तक इन्हें विभाग क्यों नहीं दिये जा सके हैं। इसको लेकर अब चर्चाएं उठाना शुरू हो गयी हैं। यह सवाल उठने लग पड़ा है कि क्या कांग्रेस किसी गहरे संकट से गुजर रही है? क्या सरकार को अपरोक्ष में कोई बड़ा खतरा खड़ा होता दिखाई दे रहा है? क्योंकि जब मंत्री बना ही दिये गये हैं तो उन्हें विभाग देने में इतना समय लगने का कोई तर्क सामने नहीं आ रहा है। फिर इस मुद्दे पर कांग्रेस हाईकमान से लेकर प्रदेश तक हर नेता चुप बैठा हुआ है। जबकि मुख्यमंत्री को राय देने के लिये एक दर्जन के करीब सलाहकारों और विशेष कार्यअधिकारियों की टीम मौजूद है। मंत्रियों को विभाग देने में ही देरी नहीं की जा रही है बल्कि पुलिस में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एक वरिष्ठ अधिकारी को भी पोस्टिंग नहीं दी जा सकी है। यह कुछ ऐसे सवाल बनते जा रहे हैं जिन पर हर आदमी का ध्यान जाना शुरू हो गया है। वैसे ही कांग्रेस को लेकर यह धारणा है कि उसकी सरकारों को कुछ अफसरशाह चलाते हैं। जबकि भाजपा की सरकारों को संघ और कार्यकर्ता चलाते हैं।
आने वाले दिनों में लोकसभा के चुनाव होने हैं और चुनावों में सरकार की उपलब्धियां और योजनाएं चर्चा और आकलन में आती है। हिमाचल सरकार की इस एक वर्ष में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसके आधार पर आने वाले लोकसभा चुनाव जीतने का दावा किया जा सके। क्योंकि कांग्रेस द्वारा चुनावों के दौरान दी गयी गारंटीयों को पूरा न कर पाना विपक्षी भाजपा का सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है। सरकार की जो वित्तीय स्थिति चल रही है उसके मध्यनजर 31 मार्च तक महिलाओं को 1500 रूपये प्रतिमाह देने की गारंटी पर अमल कर पाना संभव नहीं है। जबकि इन चुनावों में महिला वोटरों की संख्या 29 लाख के लगभग रहने की संभावना है। इसलिये यह 1500 रूपये प्रतिमाह देने की गारंटी ही सारे राजनीतिक गणित को बिगाड़ कर रख देगी। इसी के साथ युवाओं को घोषित रोजगार न देना दूसरा बड़ा मुद्दा है। कठिन वितीय स्थिति और प्रदेश में आयी प्राकृतिक आपदा के आवरण में भी इन मुद्दों को इसलिये नहीं ढका जा सकेगा क्योंकि सरकार ने अपने खर्चों पर कोई लगाम नहीं लगायी है। भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरैन्स के दावों पर भी सरकार व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर यू टर्न ले चुकी है। बल्कि भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप लगने शुरू हो गये हैं। व्यवस्था परिवर्तन के कारण ही प्रशासन में कोई बड़ा फेरबदल नहीं हो पाया है। आपदा में केन्द्र द्वारा प्रदेश की उचित सहायता न कर पाने के आरोप को नड्डा ने यह कहकर धो दिया कि आपदा का पैसा अपनी जेब में गया है। केंद्रीय सहायता के जो आंकड़े अब नड्डा ने और पहले अनुराग तथा डॉ. बिन्दल ने जारी किये हैं उनका कोई सशक्त प्रति उत्तर सरकार और संगठन की ओर से नहीं आ पाया है। इस परिदृश्य में जब राजनीतिक सवाल भी सरकार के अपने ही व्यवहार से खड़ा हो जाये तो क्या उसे विपक्ष को परोस कर देने की संज्ञा नहीं कहा जायेगा। हाईकमान की प्रदेश की स्थिति पर चुप्पी ने इन सवालों को और भी गंभीर बना दिया है।