कुंडू प्रकरण में सरकार और विपक्ष दोनों की विश्वसनीयता सवालों में
- Details
-
Created on Tuesday, 02 January 2024 12:39
-
Written by Shail Samachar
- मुख्यमंत्री फैसला ही पढ़ते रहे और कुंडू सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंच गये
- क्या आम आदमी इस व्यवस्था से सुरक्षित रह पायेगा?
शिमला /शैल। डीजीपी कुंडू ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 29 दिसंबर को एसएलपी दायर कर दी है। जिसमें उच्च न्यायालय ने डीजीपी और एसपी कांगड़ा को उनके पदों से हटाने के निर्देश दिए थे। स्मरणीय है कि उच्च न्यायालय ने यह आदेश पालमपुर के एक कारोबारी निशांत शर्मा की 28-10-23 को आयी शिकायत का स्वतःसंज्ञान लेते हुए दायर हुई याचिका पर किए हैं । निशांत शर्मा ने 28-10- 2023 को यह शिकायत हिमाचल सरकार, डीजीपी, उच्च न्यायालय और कुछ अन्य को भेजी थी। इसमें डीजीपी के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगाए गए थे। लेकिन इस शिकायत पर सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। बल्कि डीजीपी ने उनके खिलाफ आई शिकायत पर 4-11-23 को निशांत शर्मा के खिलाफ ही एक एफआईआर दर्ज करवा दी। इस पर उच्च न्यायालय ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया और तब निशांत की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई। एफ आई आर दर्ज होने के बाद एसपी कांगड़ा और शिमला से रिपोर्ट तलब की। यह रपट अदालत ने सरकार को भी भेजी लेकिन सरकार ने इसके बाद भी कुछ नहीं किया। सरकार द्वारा इस तरह आंखें बंद कर लेना अपने में ही कई सवाल खड़े कर जाता है ।एक्योंकि शिकायतकर्ता ने अपने को इन लोगों से जान और माल के खतरे का गंभीर आरोप लगाया हुआ था। सरकार की बेरुखी के बाद उच्च न्यायालय ने 26 दिसंबर को निर्देश दिए की डीजीपी और एसपी को तुरंत अपने पदों से हटकर अन्यत्र तैनात किया जाए जहां वह जांच को प्रभावित न कर सके। क्योंकि डीजीपी के पद पर बने रहते उनके खिलाफ निष्पक्ष जांच हो पाना संभव नहीं हो सकता।
डीजीपी को पद से हटाने के निर्देश उच्च न्यायालय ने 26 दिसंबर को दिए थे और यह निर्देश उसी दिन मुख्यमंत्री के संज्ञान में आ गए थे। लेकिन मुख्यमंत्री की इस मामले पर प्रतिक्रिया 29 दिसंबर को आयी। जिसमें उन्होंने यह कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया देंगे। 29 को जब मुख्यमंत्री यह प्रतिक्रिया दे रहे थे तब तक शायद कुंडू सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुके थे। इस मामले में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। जबकि हर मामले उनकी प्रतिक्रियाएं आती हैं। जिस मामले में एक डीजीपी के खिलाफ कोई यह शिकायत करें कि उसे डीजीपी से ही जान और माल का खतरा है और ऐसे मामले में सरकार उच्च न्यायालय के फैसले पर भी खामोश बैठी रहे तथा विपक्ष भी मौन साध ले तो स्वभाविक है कि ऐसी व्यवस्था परिवर्तन पर आम आदमी कैसे और कितना विश्वास कर पायेगा? इस मामले में सरकार और विपक्ष दोनों का ही राजनीतिक आचरण सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। इस आचरण से यह संदेश चला गया है की उच्च पदस्थों के बारे में इस व्यवस्था से कोई उम्मीद करना संभव नहीं होगा। क्योंकि जब शिकायतकर्ता की शिकायत पर ही किसी जांच से पहले उसी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाये तो ऐसा व्यक्ति किस से न्याय की उम्मीद करेगा।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या आता है और उच्च न्यायालय क्या संज्ञान लेता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इससे यह स्पष्ट हो गया है कि शीर्ष अफसरसाही ही सरकार पर पूरी तरह प्रभावी है।
कुंडू प्रकरण में सरकार और विपक्ष दोनों की विश्वसनीयता सवालों में
मुख्यमंत्री फैसला ही पढ़ते रहे और कुंडू सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंच गये
क्या आम आदमी इस व्यवस्था से सुरक्षित रह पायेगा?
शिमला /शैल। डीजीपी कुंडू ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 29 दिसंबर को एसएलपी दायर कर दी है। जिसमें उच्च न्यायालय ने डीजीपी और एसपी कांगड़ा को उनके पदों से हटाने के निर्देश दिए थे। स्मरणीय है कि उच्च न्यायालय ने यह आदेश पालमपुर के एक कारोबारी निशांत शर्मा की 28-10-23 को आयी शिकायत का स्वतःसंज्ञान लेते हुए दायर हुई याचिका पर किए हैं । निशांत शर्मा ने 28-10- 2023 को यह शिकायत हिमाचल सरकार, डीजीपी, उच्च न्यायालय और कुछ अन्य को भेजी थी। इसमें डीजीपी के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगाए गए थे। लेकिन इस शिकायत पर सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। बल्कि डीजीपी ने उनके खिलाफ आई शिकायत पर 4-11-23 को निशांत शर्मा के खिलाफ ही एक एफआईआर दर्ज करवा दी। इस पर उच्च न्यायालय ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया और तब निशांत की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई। एफ आई आर दर्ज होने के बाद एसपी कांगड़ा और शिमला से रिपोर्ट तलब की। यह रपट अदालत ने सरकार को भी भेजी लेकिन सरकार ने इसके बाद भी कुछ नहीं किया। सरकार द्वारा इस तरह आंखें बंद कर लेना अपने में ही कई सवाल खड़े कर जाता है ।एक्योंकि शिकायतकर्ता ने अपने को इन लोगों से जान और माल के खतरे का गंभीर आरोप लगाया हुआ था। सरकार की बेरुखी के बाद उच्च न्यायालय ने 26 दिसंबर को निर्देश दिए की डीजीपी और एसपी को तुरंत अपने पदों से हटकर अन्यत्र तैनात किया जाए जहां वह जांच को प्रभावित न कर सके। क्योंकि डीजीपी के पद पर बने रहते उनके खिलाफ निष्पक्ष जांच हो पाना संभव नहीं हो सकता।
डीजीपी को पद से हटाने के निर्देश उच्च न्यायालय ने 26 दिसंबर को दिए थे और यह निर्देश उसी दिन मुख्यमंत्री के संज्ञान में आ गए थे। लेकिन मुख्यमंत्री की इस मामले पर प्रतिक्रिया 29 दिसंबर को आयी। जिसमें उन्होंने यह कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया देंगे। 29 को जब मुख्यमंत्री यह प्रतिक्रिया दे रहे थे तब तक शायद कुंडू सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुके थे। इस मामले में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। जबकि हर मामले उनकी प्रतिक्रियाएं आती हैं। जिस मामले में एक डीजीपी के खिलाफ कोई यह शिकायत करें कि उसे डीजीपी से ही जान और माल का खतरा है और ऐसे मामले में सरकार उच्च न्यायालय के फैसले पर भी खामोश बैठी रहे तथा विपक्ष भी मौन साध ले तो स्वभाविक है कि ऐसी व्यवस्था परिवर्तन पर आम आदमी कैसे और कितना विश्वास कर पायेगा? इस मामले में सरकार और विपक्ष दोनों का ही राजनीतिक आचरण सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। इस आचरण से यह संदेश चला गया है की उच्च पदस्थों के बारे में इस व्यवस्था से कोई उम्मीद करना संभव नहीं होगा। क्योंकि जब शिकायतकर्ता की शिकायत पर ही किसी जांच से पहले उसी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाये तो ऐसा व्यक्ति किस से न्याय की उम्मीद करेगा।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या आता है और उच्च न्यायालय क्या संज्ञान लेता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इससे यह स्पष्ट हो गया है कि शीर्ष अफसरसाही ही सरकार पर पूरी तरह प्रभावी है।