आपदा में गिरे अवैध निर्माणों के लिये राहत का मानदण्ड क्या होगा?

Created on Monday, 18 September 2023 11:18
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। विधानसभा में आपदा और राहत को लेकर सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में जोरदार बहस होने की संभावना है। केन्द्र से कितनी राहत मिली है और राज्य सरकार ने कहां और किसको कितनी राहत प्रदान की है यह सारे आंकड़े सदन में सामने आने की उम्मीद है। लेकिन क्या इस सवाल पर भी चर्चा होगी कि इस आपदा में जो अवैध रूप से बनाये गये निर्माण गिरे हैं या क्षतिग्रस्त हुये हैं उन मामलों में राहत प्रदान करने का मापदंड क्या रहेगा? क्या जिस प्रशासन के क्षेत्र में ऐसे अवैध निर्माण गिरे हैं और जान माल की हानि हुई उसके लिये संबंधित प्रशासन को जिम्मेदार ठहराकर उनसे इसकी वसूली की जायेगी? प्रदेश के हर क्षेत्र में आपदा से सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार की संपत्तियों को भारी नुकसान हुआ है। इस नुकसान के लिए अवैध खनन को बड़ा कारण माना गया है। बल्कि सरकार के मंत्रियों के बीच भी इसको लेकर द्वंद्व की स्थिति उभर चुकी है। ऐसे इस आपदा से सबक लेते हुये अवैध निर्माणों को लेकर एक कठोर फैसला लेने की आवश्यकता है क्योंकि यह राहत भी तो सार्वजनिक संसाधनों से ही दी जा रही है।
अवैध निर्माणों और उनके गिरने का प्रश्न राजधानी शिमला के कृष्णा नगर में हुये नुकसान से उभरा है। यहां हुये भूस्खलन से गिरे मकान और 28 करोड़ से नगर निगम शिमला द्वारा बनाये गये स्लॉटरहाउस के गिरने से जो सवाल उठे हैं उन्हें आसानी से नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। स्थानीय पार्षद ने भी यह सवाल उठाया है कि जब यह क्षेत्र सिंकिंग जोन में आता है तो यहां पर यह स्लॉटर हाउस बनाया ही क्यों गया। इसको लेकर एक जांच भी चल रही है। लेकिन एक ओम प्रकाश की आरटीआई के माध्यम से आई जानकारी के अनुसार कृष्णा नगर में करीब दो हजार अवैध निर्माणों की जानकारी सामने आयी है। नगर निगम ने यह सूची देते हुये स्वीकारा है कि इन अवैध निर्माणों को गिराने के लिये उच्च न्यायालय के निर्देशों पर इन अवैध निर्माणों के खिलाफ एसी टू डीसी और एसडीएम ;शहरीद्ध तथा संयुक्त आयुक्त की अदालत में अवैध निर्माणकर्ताओं के खिलाफ कारवाई अमल में लाकर इनको गिरने के आदेश 2006 और 2007 में पारित हो चुके हैं। उस समय यह निर्माण कच्चे ढारों के रूप में रिकॉर्ड पर आये हैं। यह भी रिकॉर्ड पर आया है कि किसी भी ढारे में बिजली और पानी के कनैक्शन उपलब्ध नहीं थे।
इन अदालतों ने इन अवैध निर्माणों को गिराने के स्पष्ट आदेश किये हुए हैं। लेकिन अब जब आपदा में नुकसान हुआ तो पक्के बहुमंजिला निर्माण गिरे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब 2006, 2007 में यह कच्चे ढारे थे और अवैध करार देकर गिराने के आदेश हुये थे तो फिर वहां पर पक्के निर्माण कैसे बन गये? क्या यह पक्के निर्माण अवैध नहीं थे? यह भी जानकारी सामने आयी है कि निगम इसमें प्रॉपर्टी टैक्स भी वसूलता रहा है। जब यह धंसने वाला क्षेत्र चिह्नित और घोषित था तब यहां बने निर्माणों के लियेे प्रशासन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये यह सवाल सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है।