अब लोक सेवा आयोग की भर्तियों पर भी उठने लगे सवाल

Created on Wednesday, 05 July 2023 12:24
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश लोक सेवा आयोग में भी विभिन्न भर्तियों के प्रश्न पत्र लीक हो रहे हैं और बिक भी रहे हैं। यह आरोप मुख्यमंत्री को भेजे एक शिकायत पत्र में तीन लोग गौरव चौहान, रणेश और दीप्ति नेगी ने लगाये हैं। दो पन्नों के पत्र में इन आरोपों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। आयोग के अध्यक्ष ने इन आरोपों को जांच से पहले ही सिरे से खारिज़ कर दिया है। यह शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री को भेजी गयी है। इस नाते इस शिकायत की जांच करवानी है या नहीं इसका फैसला मुख्यमंत्री और सरकार को करना है और सरकार के किसी फैसले से पहले आयोग द्वारा इनको खारिज़ कर देना कुछ अटपटा सा लगता है। इस पत्र को पढ़ने से ही यह समझ आ जाता है कि इस शिकायत के पीछे ऐसे लोग हैं जो आयोग की कार्यशैली को अन्दर तक जानते हैं। इसलिये इन आरोपों को सोर्स सूचना मानते हुये इनकी जांच करवाकर आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवालों का जवाब दिया जा सकता है। इस पत्र पर नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी भाजपा की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आयी है जबकि पावर कॉरपोरेशन को लेकर पिछले दिनों आये बेनामी पत्र पर इन लोगों ने सीबीआई जांच की मांग की थी। यह बेनामी पत्र प्रधानमंत्री को संबोधित किया गया था और वहां से यह ईडी तक पहुंच चुका है। जब पीएमओ एक बेनामी पत्र का संज्ञान ले सकता है तो उसी गणित से इस तीन लोगों के पत्र पर कार्यवाही क्यों नहीं?
हिमाचल लोक सेवा आयोग द्वारा एक समय भर्ती किये गये एक्साईज़ इंस्पैक्टरों का मामला भी प्रदेश उच्च न्यायालय पहुंच चुका है। इसके बाद इसी आयोग में अध्यक्ष और सचिव में प्रश्नपत्र चेस्ट की चाबी का विवाद उठ चुका है और तुरन्त प्रभाव से सचिव को हटा दिया गया था। इस शिकायत पत्र में आरोप लगाया गया है कि पिछले दो वर्षों से ऐसा हो रहा है। स्मरणीय है कि इसी दौरान यह आयोग 48 दिनों तक बिना अध्यक्ष के केवल एक सदस्य के सहारे रह चुका है। चर्चा है कि सरकार आयोग पर दबाव बनाना चाहती थी। क्या इस दौरान लिये गये फैसलों पर सरकार का दबाव नहीं रहा होगा। आयोग द्वारा ली गयी परीक्षाओं और साक्षात्कारों का परिणाम एक समय एक तय अवधि के दौरान निकाल दिया जाता था। लेकिन उसके बाद परिणाम निकालने में एक वर्ष से भी अधिक का समय लगता रहा है। क्या परिणाम निकालने में इतना समय लग जाना अपने में ही सन्देहों को जन्म नहीं देगा। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि जिस आयोग को प्रदेश की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं के लिये भर्ती करने की जिम्मेदारी दी गयी है उसके आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की अपनी नियुक्तियों को लेकर ही कोई तय प्रक्रिया नही है। सर्वोच्च न्यायालय ने साहिल सबलोक मामले में सरकारों को ऐसी प्रक्रिया तय करने के निर्देश दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को इन नियुक्तियों के बारे में एक प्रक्रिया निर्धारित करने के निर्देश दिये हैं जिन पर न तो पूर्व सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही व्यवस्था परिवर्तन करने का दम भरने वाली इस सरकार ने सात माह में कोई कदम उठाया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सरकार अदालत के निर्देशों की अनुपालना क्यों नही कर रही है? क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि सरकार आयोग पर अपना दबाव बनाये रखने के लिये इन निर्देशों की अनुपालन नहीं करना चाहती है।