नगर निगम में किसके वायदों पर क्यों और कैसे भरोसा करेगी शिमला की जनता

Created on Saturday, 29 April 2023 19:11
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला का चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में है। आप 21 वार्डों में और सी.पी.एम. चार वार्डों में चुनाव लड़ रहा है। यदि यह दल इस चुनाव में खाता खोल पाये तो स्थिति त्रिशंकु सदन की होने की हो जायेगी। क्योंकि जब सी.पी.एम. के पास महापौर और उपमहापौर के दोनों पद सीधे मुकाबले में थे तब भी उनके पार्षदों की संख्या बहुत कम थी। अब भी अपने संसाधनों के अनुसार वह वहीं चुनाव लड़ रहे हैं जहां उनकी स्थिति मजबूत है। शिमला में सी.पी.एम. के पास वोट हैं जो निर्णायक भूमिका अदा करेगा। आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने उस समय आधार दे दिया जब उसके एक प्रत्याशी को मुख्यमंत्री से मिलकर कांग्रेस में शामिल होने और चुनाव से हटने की खबरें फोटो के साथ छप गयी। लेकिन बाद में यह प्रकरण सिरे नहीं चढ़ा और आप को यह आरोप लगाने तथा शिकायत करने का आधार मिल गया कि सरकार उनके प्रत्याशियों को डराने धमकाने का प्रयास कर रही है। इसलिये माना जा रहा है कि यह छोटे दल बड़ों का गणित निश्चित रूप से बिगाड़ेंगे।

कहां खड़ी है कांग्रेस

इस परिदृश्य में कांग्रेस का आकलन करते हुए जो स्वभाविक प्रश्न उठते हैं उन पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। कांग्रेस की प्रदेश में सरकार है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में जनता को दस गारंटीयां दी थी। यह गारंटीयां देने के बाद कांग्रेस को 40 सीटें तो मिली गयी। लेकिन प्रदेश स्तर पर कांग्रेस को केवल 0.6% वोट ही भाजपा से ज्यादा मिल पाये। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में काफी समय लग गया। फिर मंत्रियों की शपथ से पहले मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलानी पड़ी। मुख्य संसदीय सचिवों का मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है। अदालत इसमें नोटिस जारी कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट जुलाई 2017 में ही असम के मामले में ऐसी नियुक्तियों को गैरकानूनी कह चुका है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल की एस.एल.पी. का भी संज्ञान लिया हुआ है। इसलिये यह माना जा रहा है कि हिमाचल की यह नियुक्तियां अदालत में ठहर नहीं पायेंगी। संभवतः इसी संभावित वस्तु स्थिति को लेकर जयराम और विपिन परमार सरकार के गिरने की ब्यानबाजी कर रहे हैं। कानून के जानकार जानते हैं कि यह होना तय है।
इससे हटकर दूसरा पक्ष सरकार के प्रशासन का है। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर कोई ऐसा प्रशासनिक फेरबदल नहीं हुआ जिससे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और आम जनता को यह सीधा सन्देश जा पाता कि सरकार बदल गयी है। सरकार बदलने पर प्रदेश भर में पार्टी के पांच-सात हजार कार्यकर्ता शिमला से लेकर चुनाव क्षेत्रों तक विभिन्न कमेटियों में समायोजित हो जाते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। जिन चार-पांच लोगों को पदों से नवाजा गया है उनसे भी यही सन्देश गया है कि कालान्तर में यह लोग अपने-अपने क्षेत्रों में चयनित विधायकों/मंत्रियों के लिये समानान्तर सत्ता केंद्र हो जायेंगे। सरकार ने पदभार संभालते प्रदेश की वित्तीय स्थिति के श्रीलंका जैसे होने की बात की थी। परन्तु इस स्थिति पर न तो सदन में श्वेत पत्र ला पायी न ही अपने खर्चों पर कोई नियंत्रण किया। उल्टे डीजल, सरसों का तेल, बिजली और पानी के रेट बढ़ा दिये। जो 300 यूनिट बिजली देने का वायदा किया था उस पर अब यह शर्त लगा दी कि पहले दो हजार मेगावाट पैदा करेंगे उसके बाद तीन सौ यूनिट मुफ्त देने का वादा पूरा करेंगे।
युवाओं को जो रोजगार उपलब्ध कराने का वायदा किया था उसमें खाली पदों का आंकड़ा तो जारी हो गया लेकिन शिक्षा विभाग में प्रस्तावित नयी नियुक्तियों पर मुख्यमंत्री और मंत्री में ही तालमेल न होने का कड़वा सच बाहर आ गया है। नगर निगम चुनाव जीतने के लिये आचार संहिता को अंगूठा दिखाते हुये शिमला के भवन मालिकों को एटिक और बेसमैन्ट के नियमों में संशोधन करके राहत देने और फीस के रूप में अपना राजस्व बढ़ाने का प्रयास किया गया है। शिमला में भवन निर्माण में 2016 में एन.जी.टी. का फैसला आने से जटिलता बढ़ी है। इस फैसले को सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है लेकिन इस पर कोई स्टे नहीं है। ऐसे में कानून की समझ रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि फैसले के निरस्त हुए बिना सरकार केवल आश्वासन दे सकती है और कुछ नही कर सकती। वाटर सैस लगाने के मामले को केंद्र सरकार ने असंवैधानिक और गैरकानूनी कह रखा है। उच्च न्यायालय में यह मामला भी पहुंच चुका है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि संसाधन जुटाने के लिये कर्ज और कर का ही सहारा लेना पड़ेगा। पूर्व सरकार भी ऐसा ही करती रही है।
इस समय सुक्खू सरकार पर प्रतिदिन चालीस करोड का कर्ज लेने का आरोप लग चुका है। भाजपा कांग्रेस की दस गारंटीयों पर दस सवाल दाग चुकी है। इन सवालों को घर-घर तक पहुंचा दिया गया है। जबकि कांग्रेस अपने घोषणापत्रा को भाजपा की तर्ज पर छाप कर व्यापक प्रसार नहीं कर पायी है। इस परिदृश्य में कांग्रेस के पास सरकार होने के अतिरिक्त और कुछ पक्ष में नही है। जयराम ने कांग्रेस के पोस्टरों में खड़गे और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के फोटो गायब होने पर चुटकी ली है।