शिमला की मूल समस्याओं पर कौन बात करेगा?

Created on Monday, 24 April 2023 10:17
Written by Shail Samachar

एनजीटी के फैसले पर स्टे नहीं है
इस फैसले के बाद बने निर्माणों के लिये जिम्मेदार कौन?
शिमला प्लान अदालत रिजैक्ट कर चुकी है फिर एटिक के लिये नियमों में संशोधन कैसे संभव
स्मार्ट सिटी में शिमला को लोहे का जंगल बनाने का प्रयास क्यों?
क्या चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी इन सवालों पर अपना पक्ष स्पष्ट करेंगे?

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला को हिमाचल माना जाता है क्योंकि राजधानी नगर होने के नाते प्रदेश के हर जिले के लोग यहां पर मिल जाते हैं। राज्य सरकार का सचिवालय और विभागों के निदेशालय तथा विश्वविद्यालय यहां होने के कारण इन अदारों में काम करने वाले कई अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद यहीं के स्थाई निवासी बन गये हैं। यह वह वर्ग होता है जो सरकार के फैसलों की गुण दोष के आधार पर सबसे पहले समीक्षा कर लेता है। शिमला नगर निगम क्षेत्र में इसी वर्ग का बहुमत है। इसलिये यहां की नगर निगम का चुनाव वार्ड की समस्याओं और उनके समाधानों के आश्वासनों पर ही आधारित नहीं रहता है। क्योंकि नगर निगम के अपने संसाधन बहुत अल्प रहते हैं और उसे हर चीज के लिये सरकार पर ही आश्रित रहना पड़ता है। इसलिये नगर निगम के चुनाव में सरकार की कारगुजारियों की एक बड़ी भूमिका रहती है। नगर निगम के चुनावों का कोई आकलन इस व्यवहारिक पक्ष को नजरअन्दाज करके नही किया जा सकता। शिमला को स्मार्ट बनाने के लिये स्मार्ट सिटी परियोजना का काम चल रहा है। स्मार्ट सिटी से पहले एशियन विकास बैंक से पोषित शिमला के सौन्दर्यकरण की परियोजना चल रही थी। अभी शिमला की जलापूर्ति के लिये एक विदेशी कंपनी से साइन किया गया है। यह सारी परियोजनाएं कर्ज पर आधारित हैं जिसकी भरपाई प्रदेश के हर आदमी को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष करनी है। क्योंकि नगर निगम के अपने पास इस सब के लिये पर्याप्त आर्थिक साधन नहीं है। शिमला एक पर्यटक स्थल भी है। यहां पर्यटकों को मैदानों जैसी सुविधाएं प्रदान करने के नाम पर पहाड़ को मैदान बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पूरा हिमाचल गंभीर भूकम्प जोन में आता है और शिमला इसमें अति संवेदनशील क्षेत्र है। 1971 में जो लक्कड़ बाजार और रिज प्रभावित हुए थे वह आज तक नहीं संभल पाये हैं। भवन निर्माण सबसे बड़ी समस्या है। अभी तक शिमला के लिये सरकार स्थाई प्लानिंग नीति नहीं बना पायी है। पिछली सरकार ने एनजीटी के निर्देशों के बाद जो प्लानिंग नीति तैयार की थी उसे अदालत रिजैक्ट कर चुकी है क्योंकि उसमें एनजीटी के निर्देशों को भी नजरअन्दाज कर दिया गया था। वोट की राजनीति के चलते दोनों दलों की सरकारें शिमला में नौ बार रिटैन्शन पॉलिसियां लाकर यहां की समस्याओं को बढ़ाती रही है। आज जो चुनाव चल रहा है उसमें किसी भी दल ने अभी तक शिमला की इन समस्याओं पर अपना रुख साफ नहीं किया है। बल्कि राजधानी नगर और प्रदेश के सबसे बड़े नगर निगम का चुनाव वार्ड के मुद्दों के गिर्द घुमाकर मूल समस्याओं पर चुप रह कर काम निकालने का प्रयास किया जा रहा है। एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। सरकार इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गयी हुई है। लेकिन शीर्ष अदालत ने एनजीटी के फैसले को स्टे नहीं किया है। स्टे न होने से यह फैसला लागू है। इसके बावजूद फैसले के बाद नगर निगम क्षेत्र में सैकड़ों निर्माण एनजीटी के निर्देशों की अवहेलना करके खड़े हो गये हैं जिन पर सरकार को रुख स्पष्ट करना होगा। शिमला प्लान रिजैक्ट होने के बाद भी अब एटिक को रहने योग्य बनाने के लिये नियमों में संशोधन करने की घोषणा कर दी गयी है क्योंकि चुनाव चल रहा है। क्या सरकार एनजीटी की अनुमति के बिना ऐसी घोषणा कर सकती है शायद नहीं। इसलिये आज चुनाव लड़ रहे हर प्रत्याशी और राजनीतिक दल को शिमला के मूल मुद्दों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये। क्योंकि एन जी टी का फैसला 2016 में आ गया था। उसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाकर स्थिति को अधर में लटका कर अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास शिमला के हित में नही होगा।