क्या सरकार गारंटीयों की दिशा में कोई कदम उठा पायेगी बजटीय आंकड़ों के परिदृश्य में उठा सवाल

Created on Monday, 03 April 2023 08:21
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने 17 मार्च को 53412.72 करोड़ का बजट अनुमान वर्ष 2023-24 के लिए सदन में रखा था जो 29 मार्च को पारित होने तक बढ़कर 56684 करोड़ का हो गया है। यह बढ़ौतरी राजस्व व्यय में हुई है। जब बजट पेश किया गया था तब राजस्व व्यय 42704 करोड़ आंका गया जो बढ़कर अब 45925 करोड़ हो गया है। पूंजीगत व्यय बजट पेश करते समय 8708.72 करोड़ आंका गया जो बढ़कर 10758.68 करोड़ हो गया है। वर्ष 2022-23 में राजस्व व्यय 45115 करोड़ संशोधित अनुमानों में आंका गया है। वर्ष 2022-23 के लिये 13141.07 करोड़ की अनुपूरक मांगे भी लायी और पारित की गयी है। इनके खर्चे का अंतिम ब्योरा जब आयेगा तब वर्ष 2022-23 के राजस्व व्यय और बजट के कुल आकार का आंकड़ा भी बढ़ेगा। आंकड़ों के इस गणित में वर्ष 2023-24 के लिये जो बजटीय अनुमान सदन में पारित किये गये हैं वह शायद अंतिम अनुमानों में वर्ष 2022-23 से कम पड़ जाएंगे और सरकार को पहले से भी ज्यादा आकार की अनुपूरक मांगे लानी पड़ेगी। बजट के इन आंकड़ों का आम आदमी पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि यह गणित आम आदमी का विषय ही नहीं होता है परन्तु इन आंकड़ों का व्यवहारिक प्रभाव आदमी पर ही पड़ता है। अभी सरकार को बने चार माह हुए हैं और उसका पहला बजट आया है। यह सरकार लोगों को 10 गारंटीयां देकर सत्ता में आयी है। दो गांरटीयों को अमलीजामा पहनाने का फैसला ले लिया गया है। लेकिन जब पिछले वर्ष और इस वर्ष के राजस्व व्यय के आकड़ों पर नजर डाली जाये और यह सामने आये कि यह आंकड़ा तो लगभग एक जैसा ही है तो कुछ सवाल और शंकाएं अवश्य उभरती हैं। क्योंकि इसमें पिछले वर्ष की तुलना में राजस्व व्यय में केवल 800 करोड़ की बढ़ौतरी है। इतनी बढ़ौतरी तो सामान्य तौर पर कर्मचारियों को वार्षिक वेतन वृद्धि और महंगाई भत्ते की किस देने में भी कम पड़ जायें। इस वस्तुस्थिति में नये खर्चे कैसे समायोजित किये जायेंगे यह प्रश्न और जिज्ञासा बनी रहेगी। बजट सरकार के विजिन के अतिरिक्त उसकी व्यवहारिकता का भी प्रमाण रहता है। अभी सरकार को बिजली और पानी की दरें बढ़ानी पड़ गयी है। अन्य सेवाओं में भी दरां में बढ़ौतरी होगी क्योंकि सरकार ने कर राजस्व में करीब पांच हजार करोड़ जुटाने का लक्ष्य तय कर रखा है। अभी कुछ आउटसोर्स कंपनियों के साथ नये सिरे से अनुबंध नहीं हुआ है और परिणाम स्वरूप हजारों लोगों को एकदम बेरोजगार होना पड़ा है। स्वास्थ्य जैसे विभाग में आवश्यक सेवाएं प्रभावित हुई हैं। किन्नौर में आउटसोर्स कर्मचारीयों पिछले छः माह से वेतन नहीं मिल पाने के समाचार लगातार आ रहे हैं ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस स्थिति का पूर्व संज्ञान क्यों नहीं लिया गया। संबद्ध प्रशासन इसके प्रति कितना संवेदन रहा है यह एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है क्योंकि आऊटसोर्स पर रखे गये कर्मचारियों की सभी विभागों में ऐसी ही स्थिति रहेगी। क्योंकि नयी सरकार है और संयोगवश नया वित्तीय वर्ष भी साथ ही शुरू हो रहा है और यह नहीं लगता कि आऊटसोर्स कंपनियों के साथ पूर्व सरकार के समय में ही इस वित्तीय वर्ष के लिये भी अनुबंध कर लिये गये हों। ऐसे में जो बजटीय आकलन इस वित्तीय वर्ष के लिये रखे गये हैं उन्हें सामने रखते हुए सरकार के लिये गारंटीयों पर कोई व्यवहारिक कदम उठा पाना संभव नहीं लगता। विकासात्मक बजट का आंकड़ा इस वर्ष भी पिछले वर्ष जीतना है। अधिकांश विभाग बाह्य सहायता प्राप्त योजनाओं के सहारे ही चल रहे हैं। इन योजनाओं के लिये राज्य सरकार के अपने साधन नहीं के बराबर हैं। यह योजनाएं बन्द हो जायें तो कई नये विभाग बन्द होने के कगार पर पहुंच जायेंगे।