2023-24 के लिए 53412.72 करोड़ रहेगा बजट का आकार

Created on Monday, 20 March 2023 14:29
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खु सरकार के पहले बजट पर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी हुई थी। क्योंकि जब से यह सरकार आयी है तब से प्रदेश के 75000 करोड़ के कर्ज और 11000 करोड़ की देनदारियों विरासत में मिलने की बात लगातार करती आयी है। वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुये यहां तक आशंका व्यक्त की है कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इस परिदृश्य में यह स्वभाविक है कि यह सरकार कैसे स्थिति से बाहर निकलती है इस पर सबका ध्यान रहेगा ही। सरकार कैसे प्रबन्ध करती है इसका प्रमाण केवल बजट होता है। बजट सत्र में सबसे पहले चालू वित्त वर्ष की अनुपूरक मांगे लायी जाती हैं। जब रैगुलर बजट में किया हुआ वित्तीय प्रावधान कम पड़ जाये तो इसके लिये सदन में अनुपूरक मांगे रखी जाती हैं और सदन से पारित करवाई जाती हैं। इस कड़ी में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 13141 करोड़ 07 लाख की अनुपूरक मांगे सदन में लायी और पारित की गयी है। जिनमें 11707 करोड़ राज्य योजनाओं और 1433 करोड़ 9 लाख केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु प्रावधित किये गये हैं। यह अनुपूरक मांगे भी अन्त में वित्तीय वर्ष 2022-23 के आकार में जुड़ जायेगी। वर्ष 2022-23 के लिए सदन में 51364.75 करोड़ के आकार का बजट प्रस्तुत किया गया था। जिसमें कुल राजस्व व्यय 40278.80 करोड़ था। अब मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में यह स्पष्ट किया है कि वर्ष 2022-23 के लिये संशोधित व्यय 45115 करोड़ रहने का अनुमान है। इस संशोधित अनुमान के अनुसार वर्ष 2022-23 का खर्च 4836.20 बढ़ जाता है और इस तरह कुल बजट का आकार 55700.95 करोड़ हो जाता है। संभव है कि 13000 करोड़ की अनुपूरक मांगां के लेखे-जोखे के बाद यह आकार और बढ़ जायेगा। इसका अर्थ यह होगा कि सुक्खु सरकार को वित्त वर्ष 2022-23, 55700.95 करोड़ के खर्च वाला मिला है और ऐसे में वर्ष 2023-24 के लिए न्यूनतम खर्च इतना तो रहेगा ही।
लेकिन सुक्खु सरकार वर्ष 2023-24 के लिए 53412.72 करोड़ के कुल खर्च का बजट लेकर आयी है। यह अनुमान पिछले बजट की तुलना में 2288.23 करोड़ कम है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह सरकार पिछली सरकार के मुकाबले कम खर्च करके कैसे लोगों को दी हुई गारंटीयां पूरी करेगी? यह संभव है कि बजट के पास होने तक यह सरकार भी आकार बढ़ा ले। लेकिन जो बजट दस्तावेज अभी जारी हो चुके हैं उनके मुताबिक आंकड़े इसी तरह के हैं। जबकि कर राजस्व में करीब तीन हजार करोड़ की बढ़ौतरी दस्तावेज में दिखायी गयी है। लेकिन इसके बावजूद सरकार के विकासात्मक बजट का आकार भी नही बदला है। पिछले वर्ष भी यह आकार 9523.82 करोड़ था और इस बार भी यही आंकड़ा है। बल्कि कई विभागों के आबंटन में कमी आयी है। इस तरह बजट दस्तावेजों से यह सवाल उठता है कि या तो सरकार के सामने यह आंकड़े रखे ही नहीं गये हैं और केवल बजट भाषण पर ही सारा ध्यान केंद्रित रखा गया। जबकि बजट की अनुपालना उसके दस्तावेजों के आधार पर होती है। राजस्व व्यय का विकासात्मक व्यय के साथ कोई संबंध नहीं होता है। क्योंकि राजस्व व्यय सरकार के प्रतिबद्ध खर्चे होते हैं जो करने ही पड़ते हैं। लेकिन सरकार का आकलन उसके विकास कार्यों के आधार पर होता है। जब सरकार के बजट का आकार भी पहले से कम हो जाये और विकासात्मक बजट का आकार पहले जितना ही रहे तो देर सवेर इसका व्यवहारिक असर जनता पर पड़ना शुरू हो जायेगा। क्योंकि यह स्वभाविक होगा की बहुत सारी चालू योजनाएं बिना घोषणाओं के ही बन्द हो जायेंगी और उनके संभावित लाभाथियों में रोष पनपेगा जो सरकार की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा।
क्योंकि मुख्यमंत्री के बजट भाषण में जिस तरह का विजिन सामने आया है और 90000 रोजगार पैदा होने की बात की गयी है उससे बहुत सारी उम्मीदें बंधी हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिये जिस तरह से ई-वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिये इतनी बड़ी सब्सिडी घोषित की गयी है उसके लक्ष्यों को बजट के इन आंकड़ों के माध्यम से पूरा कर पाना संभव नही होगा। क्योंकि जब बजट में प्रावधान ही नहीं होगा तो कोई काम कैसे हो पायेगा। सरकार के 53412.72 करोड़ के खर्च का जो ब्यौरा दिया गया है उसमें 2021- 22, 2022-23 और 2023-24 के आंकड़े मानकवार दिये गये हैं उनको देखकर सरकारी क्षेत्र में 25000 नौकरियां दे पाने का वायदा पूरा कर पाना संभव नही होगा क्योंकि वेतन का आंकड़ा पिछले वर्ष 92.95% था जो कि अब 91.27% रखा गया है। ऐसे बहुत सारे मानक हैं जिनमें इस तरह की विसंगतियां देखने को मिल रही हैं। इसलिये बजट के कुछ दस्तावेज पाठकों की सामने यथास्थिति रखे जा रहे हैं ताकि एक समझ बन सके।