शिमला/शैल। राहुल गांधी की भारत छोड़ो यात्रा को आगे बढ़ाने के लिये कांग्रेस ने हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा शुरू कर दी है। भारत जोड़ो यात्रा का कोई सीधा राजनीतिक लक्ष्य नहीं था जबकि हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक है। इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने का लक्ष्य है। वहीं पर यह भी आवश्यक है कि कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में एकजुटता का व्यवहारिक संदेश जाये। यह सवाल अभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद प्रतिभा वीरभद्र सिंह के मण्डी में उस वक्तव्य के बाद उभरा है जिसमें उन्होंने यह कहा कि यदि ठाकुर कौल सिंह विधानसभा चुनाव न हारते तो वह प्रदेश के मुख्यमंत्री होते। यह बात सही हो सकती है लेकिन व्यवहारिक सच यह रहा है कि कांग्रेस ने यह चुनाव सामूहिक नेतृत्व तले लड़ा है। चुनावों से पहले और इनके दौरान किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया था। क्योंकि जयराम सरकार के कार्यकाल में कांग्रेस के कई छोटे-बड़े नेताओं के भाजपा में जाने की चर्चाएं उठती रही हैं। कांग्रेस सदन के अंदर जितनी आक्रमक रही है उतनी आक्रमकता सदन के बाहर नहीं रख पायी है। कई बार तो सदन के अंदर की आक्रमकता तब के नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर में व्यक्तिगत होने के कगार पर पहुंचती रही है। इसी आक्रमकता का परिणाम था की जयराम सरकार में कांग्रेस चारों उपचुनाव और दो नगर निगम जीत गया था। सदन के बाहर कांग्रेस संगठन में पदाधिकारियों की लंबी सूची बनाकर कुलदीप राठौर ने कार्यकर्ताओं को फील्ड में उतरने पर पहुंचा दिया था।
इस परिदृश्य में कांग्रेस हाईकमान ने सामूहिक नेतृत्व का सूत्र देकर किसी एक को नेता घोषित करने से परहेज किया था। अब जब सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में सरकार बनी और इसमें पहला मंत्रिमण्डल विस्तार हुआ तो इसमें तीन पद खाली रखने तथा मंत्रियों से पहले ही मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलाने की बाध्यता ने अनचाहे ही पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिये हैं। यही नहीं जीन गैर विधायकों को कैबिनेट रैंक में सरकार के अंदर जिम्मेदारियां दी गयी हैं उनमें कई वरिष्ठ नेताओं को इसमें जगह न मिल पाने से भी एकजुटता पर ही प्रश्नचिन्ह लगे हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की शपथ के बाद मंत्रिमण्डल के विस्तार में लंबा समय लग जाने से इसी धारणा को बल मिला है।
ऐसे में जब पार्टी अध्यक्ष की ओर से पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता कॉल सिंह को लेकर ऐसा ब्यान आयेगा तो दूसरे लोग निश्चित रूप से इसके राजनीतिक अर्थ ही निकालेंगे। क्योंकि कौल सिंह को उनकी वरीयता के अनुसार सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं मिल पायी है। अभी सरकार को शिमला नगर निगम के चुनावों का सामना करना है और निगम क्षेत्रों में ही पानी की दरें 10% बढ़ा दी गयी हैं। इससे पहले डीजल पर वैट बढ़ा दिया गया है। यह फैसले क्या सरकार के ही स्तर पर लिये गये हैं या इन्हें संगठन का भी अनुमोदन प्राप्त है यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। जबकि चुनावों में सरकार से ज्यादा संगठन की भूमिका रहती है और इसमें सरकार के फैसले ही ज्यादा चर्चा में आते हैं। इस परिदृश्य में कांग्रेस के हर बड़े नेता का ब्यान चर्चा का विषय बनेगा ही। इस समय सरकार हर मंच पर वित्तीय कुप्रबंधन और पिछली सरकार द्वारा हजारों करोड़ की वेतन और पैन्शन की जिम्मेदारियां छोड़ जाने का आरोप लगा रही है। लेकिन इस वित्तीय स्थिति से उबरने के लिये सरकार क्या प्रयास कर रही है और इसमें संगठन की क्या भागीदारी है इस बारे में भी कोई ज्यादा जानकारी सामने नहीं है और यही आगे चलकर ऐसे बयानों की पृष्ठभूमि में कई सवालों को जन्म देगा।