नड्डा जयराम का सिहासन संकट में
कांग्रेस अप्रत्याशित जीत की ओर अग्रसर
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का प्रतिशत रहा अधिक
रामपुर में अनाधिकृत वाहन में मिली ईवीएम मशीनें
शिमला/शैल। मतदान का अन्तिम आंकड़ा 77.6% पर पहुंच गया है। इस मतदान में भी पुरुषों की अपेक्षा करीब 4.5% प्रतिशत महिलाओं ने अधिक मतदान किया है। यह अब तक का सबसे अधिक प्रतिशत रहा है और इस तरह के मतदान से हमेशा सत्ता परिवर्तन हुआ है। इसलिये इस बार भी सत्ता का भाजपा के हाथ से निकलना तय माना जा रहा है। यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई माना जा रहा है। हालांकि आप ने भी 67 सीटों पर चुनाव लड़ा और माकपा के भी 11 उम्मीदवार चुनाव में थे और पिछली बार 1 सीट पर जीत भी हासिल की थी। इनके अतिरिक्त निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के भी कुछ उम्मीदवार मैदान में थे। लेकिन राजनीति में राष्ट्रीय परिदृश्य जिस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है उसको सामने रखते हुए यही लगता है कि भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर अन्य की भूमिका इस चुनाव में ज्यादा प्रभावी नहीं रहेगी।
इस चुनाव में भाजपा ने रिवाज बदलने का नारा दिया था। क्योंकि हिमाचल में अब तक कोई भी मुख्यमंत्री सत्ता में वापसी नहीं कर पाया है। यहां हर पांच वर्ष बाद सत्ता बदलती आयी है। जयराम इस परम्परा को तोड़ने के दावे के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं और विधानसभा के मानसून सत्र के तुरन्त बाद उन्होंने हर चुनाव क्षेत्र का दौरा करके करोड़ों की घोषणाएं और शिलान्यास किये। सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों के दर्जनों सम्मेलन आयोजित किये। एक एक कार्यक्रम का मीडिया में इस तरह से प्रचार किया गया कि प्रदेश में जयराम सरकार से पहले शायद कोई विकास हुआ ही नहीं था। बल्कि इन कार्यक्रमों में भाजपा के ही पूर्व मुख्यमन्त्रियों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल की भागीदारी नहीं के बराबर रही। मुख्यमंत्री के इतने प्रचार प्रयासों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक दर्जन चुनाव रैलियां प्रदेश में संबोधित की हैं। गृह मन्त्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का योगदान अतिरिक्त रहा है। बल्कि नड्डा तो मतदान के बाद प्रदेश से दिल्ली गये हैं। क्योंकि हिमाचल उनका गृह राज्य है। केन्द्रीय नेतृत्व का जितना घेरा इस चुनाव प्रचार में प्रदेश में रहा है उसके बावजूद यदि प्रदेश भाजपा के हाथ से निकल जाता है जो कि तय माना जा रहा है तो उसके मायने क्या होंगे यह विश्लेषकों के लिए रोचक विषय बना हुआ है।
2017 का चुनाव भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमन्त्री घोषित करके लड़ा था। भाजपा तो यह चुनाव जीत कर सता में आ गई लेकिन धूमल और उनके कुछ विश्वस्त स्वयं चुनाव हार गये। बड़े बाद में कुछ मन्त्रियों के ब्यानों से ही यह सामने आया कि धूमल की हार प्रायोजित थी। धूमल ने इसकी जांच करवाने की गुहार लगाई जिसे राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने अस्वीकार कर दिया। बल्कि इसी दौरान धूमल को मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण में घेरने का प्रयास किया गया। भाजपा के अन्दर का यह विरोधाभास यहीं नहीं रुका बल्कि निर्दलीय विधायक होशियार सिंह और प्रकाश राणा को पार्टी में शामिल करके धूमल के विश्वसतों रविन्द्र रवि और गुलाब सिंह को हाशिये पर धकेलने का सफल प्रयास हुआ। इस पर संगठन के भीतर किस तरह की तनातनी के हालत बने यह पूरा प्रदेश जानता है। हिमाचल में गुजरात और उत्तराखंड की तर्ज पर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चायें चली मन्त्रीयों को हटाने और उनके विभाग बदलने की चर्चायें चली। लेकिन यह सब कुछ नड्डा के संरक्षण के चलते चर्चाओं से आगे नहीं बढ़ा। 2017 में जब जयराम मुख्यमंत्री बने थे तब विधायकों का एक बड़ा वर्ग धूमल को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में आ गया था। लेकिन तभी नड्डा भी मुख्यमंत्री बनने के प्रयासों में आ गये थे। 2017 की यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधि रही है और इस ने भाजपा की प्रदेश राजनीति को लगातार प्रभावित किया है।
इस परिदृश्य में जब भाजपा में चुनावी टिकटों के आवंटन का अवसर आया तो मन्त्री महेंद्र सिंह का टिकट काटकर उनके बेटे को टिकट दे दिया। पूर्व मंत्री स्व. बरागटा के बेटे को उपचुनाव में परिवारवाद के नाम पर टिकट नहीं दिया गया था लेकिन इस बार दे दिया गया। दो मन्त्रीयों सुरेश भारद्वाज और राकेश पठानिया के चुनाव क्षेत्र बदल दिये गये। इस टिकट बांट में भाजपा के अन्दर रोष उभरा और करीब दो दर्जन बागियों ने चुनाव लड़ लिया। प्रधानमंत्री को कृपाल परमार को फोन करके चुनाव से हटने का आग्रह करना पड़ा और परमार ने यह आग्रह अस्वीकार कर दिया। जगत प्रकाश नड्डा के बिलासपुर सदर में बागी सुभाष शर्मा ने नड्डा से मिलने से ही इन्कार कर दिया। नड्डा बिलासपुर में ही किसी बागी को मना नहीं पाये। अनुराग ठाकुर और महेश्वर सिंह के सार्वजनिक मंच पर आंसू निकल आये। प्रेम कुमार धूमल को एक टीवी साक्षात्कार में स्वीकार करना पड़ा कि बागियों के कारण चुनाव में नुकसान होगा। सरकार की अपनी प्रशासनिक छवि कैसी रही है इसका अन्दाजा इसी से लग जाता है कि पांच वर्षों में मुख्यमंत्री को सात मुख्यसचिव बदलने पड़े। मुख्यमन्त्री के नाम तय तमगा लगा कि वह सबसे अधिक कर्ज लेने वाले मुख्यमंत्री जाने जायेंगे।
प्रदेश में दो नगर निगम चुनाव हारने के बाद जब तीन विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव जयराम सरकार हार गयी थी तब इस हार के लिये महंगाई और बेरोजगारी को जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन तब से लेकर अब तक महंगाई और बेरोजगारी पर नियंत्रण पाने के उपाय करने के बजाय कांग्रेस को तोड़ने की रणनीति पर लग गये। यहां तक ब्यान आ गये कि कांग्रेस चुनाव लड़ने लायक ही नहीं रहेगी। कांग्रेस के आरोपपत्र को रोकने के लिये अपने आरोप पत्र को सीबीआई को सौंपने के ब्यान आ गये। लेकिन अन्त में कांग्रेस अपना आरोप ले आयी। सरकार पर नौकरियां बेचने और खुली लूट के आरोप जनता की अदालत में पहुंचा दिये गये। पुलिस भर्ती में हुआ पेपर लीक एक ऐसा प्रकरण है जो लम्बे समय तक भाजपा का पीछा नहीं छोड़ेगा। ऐसी पृष्ठभूमि के साथ जो भी सरकार चुनाव में उतरेगी वह कैसे सत्ता में वापसी के दावे कर पायेगी यह कोई भी अनुमान लगा सकता है।
दूसरी ओर कांग्रेस नेे कर्मचारियों के लिये ओ.पी.एस. बहाली का वायदा करके भाजपा को ऐसे संकट पर लाकर खड़ा कर दिया जहां वह उसकी दस गारन्टियों की कोई काट नहीं कर पायी है। ओ.पी.एस. के समझौता ज्ञापन का दस्तावेज जारी करके भाजपा के उन आरोपों को वही दफन कर दिया जहां वह इसके लिये कांग्रेस पर जिम्मेदारी डाल रही थी। महिलाओं को प्रतिमाह पंद्रह सौ देने की गारन्टी का परिणाम है की 4.5% महिलाएं पुरुषों से ज्यादा वोट डालने पहुंची है। जिन युवाओं ने प्रधानमंत्री के धर्मशाला आगमन पर अग्निवीर योजना का भाजपा के बैनर पोस्टर फाड़ कर विरोध प्रदर्शन किया था उन्हें आज कांग्रेस के पांच लाख नौकरियां देने के वायदे पर प्रधानमन्त्री के दो करोड नौकरियां और पन्द्रह लाख देने के वायदे पर ज्यादा विश्वास है। कांग्रेस की दस गारन्टीयों से जो हताशा भाजपा को मिली है उसी का परिणाम है कि पार्टी के आईटी सेल को कांग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला के नाम से एक फर्जी चुनाव सर्वेक्षण जारी करना पड़ा। जिसकी कांग्रेस ने विधिवत शिकायत दर्ज करवाई है। यही नहीं इसी हताशा का परिणाम है कि मतदान के बाद रामपुर में एक अनाधिकृत वाहन में ईवीएम मशीनें पकड़ी गयी। कांग्रेस की शिकायत पर ड्राइवर को गिरफ्तार करके चुनाव कर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है। लेकिन ऐसा हुआ क्यों यह खुलासा होना अभी बाकी है। इस सब से यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि चुनाव परिणाम क्या रहने वाले है।