यदि डबल इंजन सरकार लाभदायक है तो इन सवालों के जवाब क्या हैं?

Created on Friday, 11 November 2022 11:09
Written by Shail Samachar

2018 में सौ योजनाओं पर सरकार एक पैसा भी खर्च क्यों नहीं कर पायी

2019 में स्कूलों में वर्दियां क्यों नहीं मिल पायी
तीन वर्ष कुछ योजनाओं में केन्द्र से कोई भी सहायता अनुदान क्यों नहीं मिल पाया?
जीएसटी में 544.82 करोड़ की क्षतिपूर्ति क्यों नहीं मिल पायी?
तीन वर्षों में बजट अनुमानों से वास्तविक खर्च 72826 करोड़ कैसे बढ़ गया?
क्या बढे़ हुये खर्च के लिये धन कर्ज लेकर जुटाया गया

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा, कांग्रेस और आप तथा निर्दलीयों तक के घोषणा पत्र आ चुके हैं। सभी ने मतदाताओं से लम्बे चौड़े वादे कर रखे हैं। लेकिन किसी ने भी प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर कुछ नहीं कहा है। वादे पूरे करने के लिये धन कहां से आयेगा उस पर सब खमोश हैं। 2014 में जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तब से लेकर आज तक यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सरकार सरकारी क्षेत्र की जगह प्राइवेट क्षेत्र को ज्यादा अधिमान दे रही है। इसी के चलते सारे सार्वजनिक उपक्रम योजनाबद्ध तरीके से प्राइवेट सैक्टर के हवाले किये जा रहे हैं। यहां तक कि इन्हें कारोबार के लिये पूंजी भी सरकारी क्षेत्र से ही उपलब्ध करवाई जा रही है। प्राइवेट क्षेत्र को इस तरह से अधिमान दिये जाने का अर्थ है कि सरकारी क्षेत्र को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करना। इस कमजोर करने के प्रयास का परिणाम होता है महंगाई और बेरोजगारी। लेकिन इस तथ्य से लोग सीधे अवगत ही नहीं हो पाये हैं। इसलिए उनका ध्यान बांटने के लिये सभी भावनात्मक मुद्दे उनके सामने परोसे जाते हैं। आज हिमाचल के चुनाव में भी डबल इंजन की सरकार का तर्क दिया जा रहा है। केन्द्र में 2014 से प्रदेश में 2017 से भाजपा की सरकारें हैं। केन्द्र और राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें होना प्रदेश के विकास के लिये अच्छा होता है। लेकिन क्या हिमाचल के संद्धर्भ में ऐसा हो पाया है? क्या हिमाचल को कोई अतिरिक्त सहायता मिल पायी है? या हिमाचल को उसका अपना जायज हिस्सा भी नहीं मिल पाया है और प्रदेश का नेतृत्व डबल इंजन के कारण आवाज भी नहीं उठा पाया है? इन सवालों की पड़ताल करने के लिये सीएजी रिपोर्ट से ज्यादा प्रमाणिक दस्तावेज और कोई नहीं हो सकता। जयराम सरकार ने दिसम्बर 2017 को पदभार संभाला था। इस सरकार के आने के बाद 31 मार्च 2019 को कैग की पहली रिपोर्ट आयी और इसके मुताबिक यह सरकार 100 योजनाओं पर एक नया पैसा भी खर्च नहीं कर पायी है। रिपोर्ट आने पर यह प्रमुखता से छपा था लेकिन इसका जवाब आज तक नहीं आ पाया है। इस रिपोर्ट में जीएसटी को लेकर यह दर्ज है कि प्रदेश को जो क्षतिपूर्ति केन्द्र द्वारा की जानी थी उसमें 544.82 करोड रुपए केन्द्र से नहीं मिल पाया है। जुलाई 2017 में प्रदेश में जीएसटी लागू हो गया था और एक्ट के मुताबिक राज्य को होने वाले घाटे की भरपाई केन्द्र को करनी थी जो नहीं हो पायी। इसके बाद 31 मार्च 2020 को अगली के रिपोर्ट आयी है। 2019 में सरकार स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं दे पायी है। ऐसा क्यों हुआ है इसके कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। 31 मार्च 2020 को आयी इस रिपोर्ट के दूसरे पन्ने पर भारत सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान की तालिका छपी है। इसके मुताबिक 2017-18 और 19-20 के 3 वर्षों में कुछ योजनाओं में केन्द्र कोई अनुदान नहीं मिला है। इसी रिपोर्ट के पहले पन्ने पर सरकार के बजट और व्यय के आंकड़े छपे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक इन्हीं तीन वर्षों में सरकार के बजट अनुमानों से उसका खर्च 72,826 करोड बढ़ गया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि इस बढ़े हुये खर्च के लिये धन का प्रावधान कैसे किया गया क्या सरकार के पास कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प उपलब्ध था इन सवालों का जवाब सत्ता पक्ष की ओर से आज तक नहीं आया है। इसलिए यह दस्तावेजी साक्ष्य पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं। इन साक्ष्यों से यह आशंका बनी हुई है कि प्रदेश का कर्ज भार कहीं एक लाख करोड से तो नहीं बढ़ गया है। फिर अब तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना भी बन्द हो चुकी है और इसमें भी 203 सड़कें अधूरी हैं। क्या यही डबल इंजन सरकार के लाभ हैं।