‘‘पन्द्रह साल नड्डा ने जलील किया है’’ कृपाल परमार का आरोप

Created on Tuesday, 08 November 2022 10:02
Written by Shail Samachar

शर्मनाक हार की ओर बढ़ रही है स्थितियां
सभी मंत्री संकट में
मुख्यमंत्री को कांग्रेसियों से मांगना पड़ रहा है सहयोग

शिमला/शैल। भाजपा के बागियों को मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को उन्हें फोन करने पड़े हैं। यह प्रधानमंत्री की पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार से हुये संवाद के वायरल होने से बाहर आ गयी हैं। मोदी कृपाल परमार को फोन पर चुनाव से हट जाने का अनुरोध करते हैं और परमार ने उन्हें दो दिन लेट हो गये कि बात करके यह भी साफ सुना दिया की नड्डा ने उन्हें पन्द्रह साल जलील किया है। नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। हिमाचल के बिलासपुर से आते हैं और बिलासपुर में ही कुछ बगियों ने उन्हें मिलने तक से इन्कार कर दिया यह भी सामने आ गया है। हिमाचल को छोड़कर उन सभी भाजपा शासित राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन हुआ या होने के प्रयास हुये जहां चुनाव होने थे। लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं हो पाया। कुछ मंत्रियों की छुट्टी करने कुछ के विभाग बदले जाने का प्रचार गोदी मीडिया के माध्यम से लगातार करवाया जाता रहा। लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए आज भाजपा के करीब दो दर्जन बागी चुनाव लड़ रहे हैं। आज धूमल को जिस तरह हाशिये पर धकेल दिया गया उसकी पीड़ा अनुराग ठाकुर के आंसुओं से सार्वजनिक हो चुकी है। महेश्वर सिंह के बेटे ने महेश्वर को टिकट दिये जाने से पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। नड्डा को यह जानकारी होने के बाद भी महेश्वर सिंह को दिल्ली बुलाया गया और टिकट दिया गया। इस टिकट को अन्तिम दिन बेटे के चुनाव से न हटने के दण्ड के रूप में बदल दिया गया। महेश्वर का दर्द उनके आंसूओं में सार्वजनिक हो गया। क्या महेश्वर को टिकट देने से पहले बेटे को चुनाव से हटाने की शर्त रखी गयी थी यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। जब निर्दलीय विधायक होशियार सिंह और प्रकाश राणा को पार्टी में शामिल किया गया था तब यह आरोप लगा कि इन्हें लाने से पहले धूमल जैसे वरिष्ठ नेताओं से राय नहीं ली गयी है। बल्कि संबंधित मण्डल तक को विश्वास में नहीं लिया गया। इस पर उभरी नाराजगी लखविंदर राणा और पवन काजल के शामिल होने तक जारी रही। फिर हर्ष महाजन और विजय सिंह मनकोटिया को शामिल करने में क्या शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल से राय ली गयी थी। शायद नहीं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस समय पार्टी में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए केवल नड्डा और जयराम ही जिम्मेदार हैं।
हिमाचल में यह स्थिति लगभग पहले दिन से ही बन गयी थी। इसी का परिणाम है कि 2019 के लोकसभा चुनाव इतने प्रचण्ड मार्जन से जीतने के बाद भाजपा ने दो नगर निगम के चुनाव हारे फिर तीन विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव हारा। बीस विधानसभा चुनाव क्षेत्र इससे प्रभावित हुये। जुब्बल-कोटखाई जो 2017 में भाजपा के पास थी वहां भाजपा जमानत नहीं बचा पायी। जबकि कांग्रेस ने अर्की और फतेहपुर पर अपना कब्जा बरकरार रखा। यहां पर 2017 के चुनाव के इस तथ्य पर भी नजर डालना आवश्यक हो जाता है कि इस चुनाव के समय भाजपा में नेतृत्व को लेकर कोई प्रश्न नहीं थे। बागियों की कोई समस्या नहीं थी। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ कोई प्रश्न मुखर नहीं थे। तब भी उस समय भाजपा की पन्द्रह सीटों पर जीत दो हजार से कम के अन्तर से हुई है। दस सीटों पर निर्दलीयों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा था। आज यह पच्चीस सीटें सीधे भाजपा के हाथ से निकलती नजर आ रही है। क्योंकि जब प्रधानमन्त्री को बागियों को फोन करने की नौबत आ जाये और उसका कोई असर तक न हो तो संगठन के भीतर की स्थिति सार्वजनिक चर्चा का विषय बन जाती है। आज भाजपा इन सारी स्थितियों से बुरी तरह घिरी हुई है। 2017 के चुनाव के दौरान मण्डी की एक जनसभा में हिमाचली कर्मचारियों को नामतः यह आश्वासन दिया था कि जो काला धन वापस आने वाला है उसमें से कुछ हिस्सा हिमाचली कर्मचारियों को भी मिलेगा। प्रधानमंत्री के ब्यान का यह वीडियो चुनावों में वायरल हो चुका है। बिलासपुर में डाªेन ज्ञान और चम्बा में रेल पहुंचने की उपलब्धियां गिनाता केंद्रीय नेतृत्व भी आज प्रदेश में प्रसांगिक हो गया है। क्योंकि उसके दिये हुये 69 राष्ट्रीय उच्च मार्ग आज सैद्धांतिक स्वीकृति से आगे नहीं बढ़े हैं।
आज महंगाई और बेरोजगारी के आगे धारा 370 और तीन तलाक बहुत छोटे हो गये हैं। 2014 से आज तक लगातार आम आदमी के जमा पर कम होता गया ब्याज और कर्ज के महंगा होने तथा डॉलर के मुकाबले रुपए के लगातार कमजोर होते जाने के सच के सामने राम मंदिर का निर्माण भी इससे राहत नहीं दिलवा पाता है। आज सरकार की वित्तीय स्थिति उस मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी है कि वह दिसम्बर के बाद गरीबों को सस्ता राशन देने की योजना को आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं रह गयी है। क्योंकि बैंकों से जो लाखों करोड़ कर्ज दिलवाया गया था वह आज तक वापस नहीं आ पाया है। ऊपर से आरबीआई द्वारा जारी नौ लाख करोड़ के नोट कहीं गायब हो गये हैं जिनकी विधिवत जांच तक नहीं हो पायी है। यह सारे घाटे आम आदमी की जेब से पूरे करने के लिये हर सेवा को लगातार महंगा किया जा रहा है। यह सारे सच अब आम आदमी को समझ आ चुके हैं। इसी का प्रमाण है कि प्रधानमंत्री को ही करीब एक दर्जन चुनाव सभाएं करने के साथ ही बागियों को मनाने के लिये स्वयं फोन करने पड़ रहे हैं। इस स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा को इन चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करने की आशंका डराने लग गयी है। क्योंकि संघ पार्टी आईबी और सीआईडी किसी के भी सर्वेक्षण में 15 से 20 सीटों से ज्यादा आंकड़ा नहीं बढ़ा है।
भाजपा की यह स्थिति इसलिये हुई है क्योंकि जो कुछ विज्ञापनों में विज्ञापित किया जा रहा है वह जमीन पर देखने में मिल नहीं रहा है। स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं दी जा सकी हैं। मिड डे मील के पैसे अध्यापकों को अपनी जेब से देने पड़े हैं। घटिया वर्दी सप्लाई करने के लिये जिन फर्मों पर कांग्रेस सरकार ने करोड़ों का जुर्माना लगाया था इस सरकार ने उसे माफ करके फर्मों को अभयदान दे दिया। इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय से अपील दायर करने की अनुशंसा स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने फाइल पर कर रखी है। जिस पर पांच वर्षों में अमल नहीं हो पाया। क्योंकि प्रशासन ने विकास की सीमा ओक ओवर के दो मंजिला मकान में लिफ्ट लगने से आगे बढ़ने ही नहीं दी। इससे मुख्यमंत्री की प्रशासन पर पकड़ इतनी कमजोर पड़ गयी कि सवैधानिक पदों पर बैठे लोग उद्योगपतियों के लिये आयोजित इन्वैस्टर मीट में शिरकत रहे और सरकार में किसी का भी इसका संज्ञान लेने का साहस तक नहीं हुआ। ऐसी स्थितियों से जो सन्देश आम आदमी तक पहुंचा वह आज गले पड़ गया है। यह माना गया है कि इस प्रशासन में सब को लूट की बराबर छूट है। शर्त यह थी कि लूट की जिम्मेदारी किसी बड़े पर नहीं आनी चाहिये। इसी का परिणाम है कि चुनाव में मुख्यमंत्री को कांग्रेसियों से सहयोग की अपील करनी पड़ रही है। नड्डा के सहयोग से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक यह अन्दर की कहानी नहीं पहुंचने दी गयी। आम आदमी और पार्टी के जिम्मेदार लोगों तथा सरकार के बीच संवाद का ऐसा संकट खड़ा हुआ जिसने आज प्रधानमंत्री तक की बात न सुनने के सार्वजनिक हालात पैदा कर दिये। क्या इस परिदृश्य में हो रहे चुनाव में उम्मीद की जा सकती है कि सरकार किसी भी गणित से पुनः सत्ता में वापसी की सोच सकती है।