जब बागीयों ने ही नही सुनी नेतृत्व की बात तो जनता क्यों सुनेगी

Created on Sunday, 30 October 2022 17:16
Written by Shail Samachar

क्या यह हार का पहला संकेत है

शिमला/शैल। नामांकन वापसी के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के बागी चुनाव मैदान में हैं और दोनों के लिये परेशानी का कारण बनेगे यह तय है। भाजपा प्रदेश में सत्ता में है और केन्द्र में भी उसी की सरकार है तथा प्रदेश में सत्ता में वापसी करके रिवाज बदलने का दावा कर रही है। इसलिये भाजपा की स्थिति का आकलन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। भाजपा त्रिदेवों और पन्ना प्रमुखों की नीव पर आधारित विश्व की सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी होने का दम भरती हैं। इसलिये आज इसके बागियों की संख्या कांग्रेस से तीन गुना फील्ड में होना उसके अनुशासन के दावों पर पहला गंभीर सवाल है। बागियों को मनाने के लिये राष्ट्रीय ंअध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्वयं फील्ड में उतरे थे लेकिन नड्डा बिलासपुर तथा जयराम मण्डी में ही बुरी तरह असफल रहे हैं। इस असफलता को चुनावी हार का पहला संकेत माना जा रहा है। इसलिये भाजपा का केन्द्रिय नेतृत्व पार्टी की स्थिति से बुरी तरह विचलित हो रहा है। शायद इसी कारण से नड्डा और जयराम को दिल्ली तलब किया गया था। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी बड़े साफ शब्दों में कहा है कि मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला चुनाव परिणामों के बाद होगा। मुख्यमंत्री ने भी अपने कुछ विश्वसतों के साथ इस आशंका को साझा किया है। मुख्यमंत्री के अपने ही चुनाव क्षेत्र में जब कॉलेज और सड़क जनता के मुद्दे बन जाये तो तान्दी ने बनाया गया होटल सिराज क्षेत्र के विकास का प्रतीक नहीं बन पाता है। क्योंकि सरकार के इस निवेश का लाभ जनता को न मिलकर केवल क्लब महिन्द्रा को मिल रहा है।
पार्टी की यह स्थिति क्यों हो गयी इसको लेकर संघ में भी अब चिन्ता और चिन्तन चल रहा है। क्योंकि संघ के अपने चुनावी सर्वेक्षणों में भी भाजपा सरकार बनाने से बहुत दूर रह रही है। शायद इसीलिये सुरेश भारद्वाज और वीरेन्द्र कंवर जैसे मंत्रियों को चुनाव प्रचार में जाने के लिये अपने को अगला मुख्यमंत्री प्रचारित करना पड़ रहा है और विक्रम ठाकुर को बाबा राम रहीम के आशीर्वाद लेना पड़ रहा है। आज पार्टी जिस मुकाम पर आ पहुंची है वहां यह सवाल गंभीरता से उठ गया है कि नेतृत्व और कार्यकर्ता में संवाद की कमी क्यों रह गयी। इसी संवाद हीनता के कारण तो जयराम को उड़ने वाले मुख्यमंत्री की संज्ञा मिली है। अब यह खुलकर कहा जा रहा है की मुख्यमंत्री गोदी मीडिया की गोद से एक क्षण भी बाहर नहीं निकल पाये। सूचना और जनसंपर्क विभाग ने भी गोदी मीडिया के घेरे से मुख्यमंत्री को बाहर नहीं निकलने दिया। इसी का प्रमाण है कि चार वर्षों में विज्ञापनों पर आये सवालों का जवाब तक नहीं दिया गया। केवल कड़वा सच लिखने वालों को ही दण्डित करने की योजनाएं बनती रही। सरकार धूमल को राजनीति से बाहर करने के एजैण्डे पर ही चलती रही। जिस मुख्यमंत्री के फैसलों की पटकथा गोदी मीडिया पहले ही लिख देगा उसे न तो सरकार की पारदर्शिता माना जाता और न ही मीडिया की दूदर्शिता। जो मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के अन्तिम दिनों लोकसेवा आयोग पर लिये गये फैसले को अमलीजामा न पहना सके ? जिस लोकसेवा आयोग का सदस्य अपने को चुनावी उम्मीदवार प्रचारित करवाने से परहेज न करवाये और सरकार भी इस पर चुप्पी साधे रखे तो उस सरकार को लेकर आम आदमी में क्या संदेश जा रहा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। शायद सरकार का सारा ध्यान धनबल के सहारे कांग्रेस को दो फाड़ करने में लगा रहा। जब कांग्रेस नहीं टूटी तो अपने ही घर में बगावत का यह रूप देखने को मिल गया।