पेड कार्यकर्ताओं के सहारे कब तक चल पायेगी हिमाचल की आप ईकाई

Created on Thursday, 22 September 2022 18:22
Written by Shail Samachar

पार्टी के भीतर चर्चित होने लगा है यह मुद्दा

शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी ने चार चुनाव क्षेत्रों फतेहपुर, नगरोटा श्री पांवटा साहिब और लाहौल स्पीति से उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। लेकिन जब पार्टी इन नामों को अन्तिम रूप दे रही थी उसी दौरान कुछ नेता आप छोड़कर कांग्रेस में जा रहे थे। पंजाब में जीत दर्ज करने के बाद आप ने हिमाचल में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था और बहुत लोग आप में शामिल भी हुये थे। लेकिन जैसे ही भाजपा के अनुराग ठाकुर ने इसमें सेन्ध लगाकर प्रदेश संयोजक सहित तीन नेताओं को भाजपा में शामिल करवा दिया उसके बाद से पार्टी में कोई बड़े चेहरे शामिल नहीं हो पाये हैं। बल्कि उसके बाद जो नई कार्यकारिणी का गठन हुआ उसमें बहुत सारे पुराने महत्वपूर्ण लोगों को हाशिये पर धकेल दिया गया। पूर्व डी.जी.पी. भण्डारी एक बड़ा नाम था जो अब निष्क्रिय होकर बैठ गया है। अभी तक पार्टी प्रदेश भाजपा और जयराम सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा लेकर जनता में नहीं आ पायी है। हिमाचल में पार्टी आगे बढ़ने के लिये पंजाब में आप की सरकार होने को आधार बनाकर चल रही है। अब जब पंजाब सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने शुरू हो गये हैं तब प्रदेश इकाई में ऐसा कोई चेहरा सामने नहीं है जो उन सवालों का जवाब देने के लिये सामने हो बल्कि अब जब राजन सुशान्त फिर से आप में आ गये हैं तब से फिर यह आशंका हो गयी है कि प्रदेश कार्यकारिणी के नेतृत्व में फिर से कोई बदलाव हो जाये। इस समय यदि किसी कारण से पंजाब की सरकार आने वाले दिनों में विवादित हो जाती हैं तो हिमाचल इकाई के पास अपना कुछ भी नहीं रह जायेगा। क्योंकि प्रदेश में जो भी नेतृत्व अब तक सक्रिय है वह व्यवहारिक रूप से दिल्ली सरकार के अच्छा शासन देने और भ्रष्टाचार पर नकेल डालने तथा भ्रष्टाचार के आरोपी अपने ही मंत्री को जेल भेजने के सूत्र वाक्यों से आगे नहीं बढ़ पाया है।
प्रदेश इकाई पर इस समय कौन निवेश कर रहा है? यह धन कहां से आ रहा है? इस समय प्रदेश में आप हाईकमान द्वारा भेजे करीब डेढ़ सौ लोगों की टीम सक्रिय है। यही टीम प्रदेश के नेताओं कार्यकर्ताओं को निर्देश जारी करती है। यह टीम की व्यवहारिक रूप से सर्वेसर्वा है। इसके सामने स्थानीय कार्यकर्ता और नेता केवल मोहरे हैं। यह टीम पार्टी के अपने पदाधिकारियों या कार्यकर्ताओं की नहीं है। बल्कि एक तरह व्यवसायिक लोग हैं जो मोटी पगार लेकर राजनीतिक काम कर रहे हैं। अब यह चर्चा पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर चल पड़ी है। यहां तक कहा जा रहा है कि नयी कार्यकारिणी के गठन में भी इन्हीं लोगों का हाथ है। पार्टी के भीतरी सूत्रों के मुताबिक इस समय तक करीब दो करोड़ प्रतिमाह का निवेश प्रदेश में हो रहा है। चुनावों के दौरान यह निवेश कई गुना बढ़ेगा यह तय है। स्वभाविक है कि राजनीतिक दल के लिये पैसा तो चाहिये ही। फिर आज के राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली एकदम कारपोरेट घरानों जैसी हो गयी है। इसके लिये निवेश तो चाहिये ही। यह निवेश उद्योगपतियों के अतिरिक्त और कहीं से मिल नहीं सकता। क्योंकि पार्टी के सदस्यों के शुल्क से तो कार्यालय का बिजली-पानी का बिल भी नहीं भरा जा सकता है।
आम आदमी पार्टी के संद्धर्भ में यह चर्चा इसलिये प्रसांगिक हो जाती है क्योंकि इसका नेतृत्व भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दावा करता है। यह भी दावा करता है कि उसकी सरकार कर्ज के सारे नहीं चल रही है। जबकि केजरीवाल सरकार पर भी पचास हजार करोड़ का कर्ज होने का खुलासा आर.बी.आई. की उस रिपोर्ट के बाद सामने आ चुका है जिसमें तेरह राज्यों की सूची जारी की गयी थी। इस सूची में पंजाब भी शामिल है। आर.बी.आई. के मुताबिक यह कर्ज लेने की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में पंजाब की वित्तीय स्थिति बिगड़ेगी। तब संसाधन बेचने और कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जायेगा। यही स्थिति हिमाचल की होने वाली है। अभी कर्ज लेने के लिये प्रतिभूतियों की नीलामी करनी पड़ी है। लेकिन इस स्थिति पर आज कोई भी विपक्षी दल सरकार से सवाल पूछने का साहस नहीं कर रहा है। आप का नेतृत्व दिल्ली और पंजाब की जो स्थिति हिमाचल में परोसकर एक राजनीतिक माहौल खड़ा करने का प्रयास कर रहा है उसके परिदृश्य में आप से यह सवाल उठाने आवश्यक हो जाते हैं। क्योंकि अब तक यही होता रहा है कि दिल्ली से आकर कोई भी नेता प्रदेश को गारंटी की घोषणा कर के चला जाता है और स्थानीय नेतृत्व उस की माला जपता रहता है। इससे यही संदेश जाता है कि हिमाचल का संचालन दिल्ली से ही होगा।