शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी की हिमाचल इकाई में कांगड़ा के पूर्व सांसद और धूमल सरकार में राजस्व मन्त्री रहे डॉ. राजन सुशान्त फिर से शामिल हो गये हैं। स्मरणीय है डॉ. सुशान्त 2014 में भी आप में थे और इसके टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। लेकिन आगे चलकर स्थितियां बदली और सुशान्त ने आप से किनारा कर लिया। 2017 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा बल्कि उसके बाद आया उप चुनाव भी लड़ा। इसी बीच अपना राजनीतिक दल भी पंजीकृत करवा लिया। ओ.पी.एस. को लेकर सरकार के खिलाफ संघर्ष भी छेड़ रखा है। ‘‘हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी’’ अपना राजनीतिक दल बनाकर प्रदेश को इस के बैनर तले चुनाव लड़ने का भरोसा भी दे चुके हैं। इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि वह कारण सार्वजनिक हो जिनके चलते आप को छोड़ने की नौबत आयी थी और आज फिर से उसी में वापस जाने की बाध्यता खड़ी हुई। राजनीति करना और राजनीतिक दल बनाना या किसी में शामिल होना या उससे बाहर जाना सार्वजनिक जीवन का हिस्सा होते हैं। ऐसे में यह सब जानना आम आदमी का हक हो जाता है। फिर आम आदमी पार्टी बीते आठ वर्षों में हिमाचल में नेतृत्व को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है। बल्कि इन्हीं कारणों से आप को भाजपा की बी टीम होने का तमगा भी मिल चुका है। क्योंकि जिस दिल्ली में विधानसभा पर तो उसका कब्जा लगातार पुख्ता होता गया परन्तु उसी दिल्ली में वह लोकसभा में दोनो बार शून्य रही। बल्कि नगर निगम भी उसके हाथ नहीं लग पाये। जिस दिल्ली मॉडल को देशभर में भुनाने के प्रयास हो रहे हैं आज उसी की व्यवहारिकता पर पंजाब में गंभीर सवाल उठने लग पड़े हैं और आप की ओर से उन पर कोई जवाब नहीं आ रहा है। यही नहीं आज मुफ्ती की जो गारंटीयां आप घोषित करती जा रही है कांग्रेस और भाजपा ने तो उनकी संख्या भी कहीं अधिक बढ़ा दी है। ऐसे में जो मतदाता इन गारंटीयों के लिए आप पर भरोसा जताएगा वह इन्ही के लिये कांग्रेस और भाजपा पर अविश्वास किस आधार पर कर पायेगा। इस समय आप के नेता दिल्ली से थोड़ी देर के लिये हिमाचल आकर गारंटीयां घोषित करके वापस चले जाते हैं। लेकिन प्रदेश का नेतृत्व बाद में उनकी आर्थिकी लोगों को समझा नहीं पाता है। बल्कि यही संदेश जाता रहा है कि हिमाचल को भी दिल्ली से ही संचालित करने की योजना चल रही है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि इस स्टेज पर आप का सुशान्त प्रयोग किसके पक्ष में कितना सफल रहता है।