जब अंतिम सत्र में भी सूचना एकत्रित करने का ही जवाब आये तो सत्ता में वापसी का दावा....?

Created on Tuesday, 16 August 2022 11:07
Written by Shail Samachar

पांच वर्ष में लोकायुक्त न लगा पाना भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स है क्या?

शिमला/शैल। जयराम सरकार के कार्यकाल का अंतिम विधानसभा सत्र समाप्त हो गया है। इस सत्र की समाप्ति पर मीडिया को संबोधित करते हुये मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि प्रदेश की जनता इस बार ‘‘एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस’’ के चलन को समाप्त कर भाजपा को पुनः सत्ता में लायेगी। एक राजनेता और वर्तमान मुख्यमन्त्री होने के नाते ऐसा दावा करना उनका न केवल अधिकार ही है बल्कि कर्तव्य भी है। क्योंकि यदि एक वर्तमान मुख्यमंत्री ही ऐसा दावा नहीं करेगा तो फिर पार्टी किस मनोबल के साथ चुनाव में जायेगी। क्योंकि इस बार जनता पार्टी के वायदों पर नहीं बल्कि पांच वर्षों की कारगुजारी पर वोट देगी। सरकार की कारगुजारी का प्रमाण पत्र जितना जनता होती है उतना ही बड़ा प्रमाण पत्र विधानसभा में विधायकों द्वारा सरकार से पूछे गये सवाल पर सरकार द्वारा सदन में दिये गये जवाब होते हैं। इस परिपेक्ष में विधानसभा का अंतिम सत्र बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसी सत्र में विधायकों का तीखापन और उसी अनुपात में सरकार की तैयारी उसके जवाबों से सामने आती है। जब सरकार सदन में किसी सवाल का जवाब यह कहकर टाल जाती है कि अभी सूचना एकत्रित की जा रही है तो उससे पता चलता है कि पूछे गये सवाल के जवाब में कुछ ठोस कहने लायक सरकार के पास नहीं है। बल्कि कई बार ऐसे जवाब आगे चलकर विजिलैन्स जांच तक का विषय बन जाते हैं। इस परिदृश्य में यदि इस सत्र में आयें ऐसे सवालों पर नजर डाली जाये जिनके जवाब में ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ कहा गया है क्योंकि ऐसे सवाल अंतिम सत्र के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। पिछले कई सत्रों से सरकार से यह पूछा जा रहा था कि उसने अपने प्रचार प्रसार पर कितना खर्च किस माध्यम से किया है। उसने कितने और कौन-कौन से समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी किये हैं। सरकार ने हर सत्र में ‘‘सूचना एकत्रित की जा रही है’’ का ही जवाब दिया है इस अंतिम सत्र में भी यही जवाब दिया है कि अभी भी सूचना एकत्रित की जा रही है। स्मरणीय है कि पिछले दिनों कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता में सरकार की प्रचार प्रसार नीति पर ऐसे गंभीर सवाल उठाये हैं जो निश्चित रूप से विजिलैन्स जांच का विषय बनते हैं। यह एक सामान्य नियम है कि सरकार जो भी किसी भी माध्यम से विज्ञापित करती है उस पर प्रिंट लाइन का होना कानूनी आवश्यकता है। जो बड़े-बड़े होर्डिंग लगाये जाते हैं उन पर प्रिंट लाइन के साथ ही उन्हें किसी सार्वजनिक स्थल पर लगाने के लिए प्रशासन से भी अनुमति लेनी पड़ती है। कई बार ऐसे होर्डिंग सार्वजनिक स्थलों पर लगे देखने को मिले हैं। जिन पर प्रिंट लाइन नहीं थी। माल रोड पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बिना प्रिंटलाइन के होर्डिंग लग चुके हैं। जब शैल ने यह विषय उठाया था तब तुरन्त उन्हें हटा लिया गया था। प्रचार प्रसार के संद्धर्भ में पूछे गए सवाल का जवाब इसलिये नहीं दिया गया क्योंकि इसमें सरकार से तीखा सवाल पूछने वाले समाचार पत्रों को विज्ञापनों से वंचित रखा गया है। लेकिन सरकार तो इस सवाल का जवाब भी नहीं दे पायी है कि सरकार के कितने विभागों/निगमों में कितने पद सृजित है, स्वीकृत हैं- कितने पद रिक्त हैं- कितनों को रोजगार दिया गया है। यह सवाल भी पूछा गया था कि प्रदेश में विभिन्न स्तर के कितने अस्पताल-औषधालय हैं। इनमें डॉक्टरों के कितने पद सृजित और रिक्त हैं। इस पर भी सूचना एकत्रित की जा रही है का ही जवाब दिया गया है। ऐसे और भी कई सवाल हैं जिन में सूचना एकत्रित किये जाने का ही जवाब दिया गया है। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य ऐसे विषय हैं जो प्रदेश के हर व्यक्ति को सीधे प्रभावित करते हैं। इनमें सरकार अपनी उपलब्धियों के ढोल पीटती रही है। लेकिन जहां जिस मंच पर इन से जुड़े तथ्य रखे जाने थे वहां जब सरकार के पास कार्यकाल के अन्त में भी सूचना एकत्रित की जा रही है कहकर जवाब से टलना पड़े तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की करनी और कथनी में दिन रात का अन्तर है। शायद इसी व्यवहारिक जमीनी हकीकत के कारण अब तक हुये सभी चुनावी सर्वेक्षणों में सरकार सत्ता में वापसी नहीं कर पायी है। वैसे भी जो सरकार पांच वर्ष में लोकायुक्त का पद न भर पायी हो उसके भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स के दावों पर कोई कैसे विश्वास कर पायेगा। आरटीआई के माध्यम से कोई सूचना न मांग ले इसलिये सूचना आयुक्त के पद को खाली रखने में ही भलाई मानी जा रही है। ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि जो सरकार संवैधानिक पदों को भरने में विश्वास न रखती हो और विधानसभा के अन्तिम सत्र में भी जनहित के तीखे सवालों पर अभी सूचना ही एकत्रित कर रही हो वह सत्ता में वापसी की हकदार कितनी और कैसे हो सकती है।