भ्रष्टाचार को संरक्षण जयराम सरकार की नीयत या नीति पर्यावरण पर विजिलेंस जांच से उठी चर्चा

Created on Monday, 09 May 2022 08:56
Written by Shail Samachar

कमेटियों का कार्यकाल 12-07-2021 को समाप्त हो गया था
इस दौरान सचिव पर्यावरण की जिम्मेदारी पहले के.के.पंथ के पास थी और अब प्रबोध सक्सेना के पास है
क्या इस दौरान क्लियर किये गये मामले वैध माने जा सकते हैं जबकि कमेटी ही नहीं थी
सुप्रीम कोर्ट की पर्यावरण पर गंभीरता के बाद मामला हुआ रोचक

शिमला/शैल। प्रदेश विजिलैन्स के पास सरकार के पर्यावरण विभाग को लेकर 11-04-22 को एक शिकायत आयी है। इस शिकायत का संज्ञान लेते हुये विजिलैन्स ने इसमें प्रारंभिक जांच आदेशित करते हुये निदेशक पर्यावरण से आठ बिन्दूओं पर रिकॉर्ड तलब किया है। इसमें जानकारी मांगी गई है कि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने प्रदेश की एस ई ए सी का 1-1-2021 से अब तक कब गठन किया गया था या उसको विस्तार दिया था। दूसरा बिंदु है कि केंद्र ने हिमाचल के एस ई आई ए का 1-1- 21 को अब तक कब गठन किया या विस्तार दिया। तीसरा है की 1-1- 21 से अब तक पर्यावरण क्लीयरेंस के कितने मामले आये हैं। चौथा है कि इन कमेटियों की बैठकों में क्या-क्या एजेंडा रहा है। पांचवा है कि इन कमेटियों की कारवायी का विवरण। 1-1- 21 से अब तक प्रदेश की इन कमेटियों द्वारा पर्यावरण के कितने मामले क्लियर किये गये तथा सदस्य सचिव द्वारा उनके आदेश जारी किये गये। कितने मामलों की सूचना डाक द्वारा भेजी गई और कितनों में हाथोंहाथ दी गयी।
विजिलेंस के पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण से जुड़ी इन कमेटियों का महत्व कितना है। किसी भी छोटे बड़े उद्योग की स्थापना के लिए इन कमेटियों की क्लीयरेंस अनिवार्य है। क्योंकि पर्यावरण आज एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने तो एक मामले में यहां तक कह दिया है कि पर्यावरण आपके अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। पर्यावरण की इस गंभीरता के कारण ही भारत सरकार वन एवं पर्यावरण मंत्रालय प्रदेशों के लिए इन कमेटियों का गठन स्वयं करता है। यह अधिकार राज्यों को नहीं दिया गया है। पर्यावरण से जुड़ी क्लीयरेंस के बिना कोई भी उद्योग स्थापित नहीं किया जा सकता है। इसलिए जितने बड़े आकार का उद्योग रहता है उतने ही बड़े उससे जुड़े हित हो जाते हैं और यहीं पर बड़ा खेल हो जाता है। प्रदेश में पर्यावरण विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में नियुक्तियां इसी कारण से अहम हो जाती हैं। इन्हीं को लेकर समय-समय पर संबद्ध अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें आती रही हैं। कसौली कांड इसका सबसे बड़ा प्रमाण रहा है। सरकार अपने विश्वसतों को बचाने के लिए किस हद तक जाती रही है उसका उदाहरण भी यही कसौली कांड बन जाता है। क्योंकि इसमें नामित और चिन्हित लोगों के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हो पायी है।
इसी प्ररिपेक्ष में विजिलेंस तक पहुंचे इस मामले में भी अंतिम परिणाम तक पहुंचने को लेकर संशय उभरना शुरू हो गया है। क्योंकि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित यह कमेटी 12-07-2021 को समाप्त हो गई थी। केंद्र को यह सूचना प्रदेश सरकार द्वारा दी जानी थी। ताकि नई कमेटीयों का गठन हो जाता। यह जिम्मेदारी सरकार के सचिव पर्यावरण और संबंधित मंत्री की थी। सचिव की जिम्मेदारी पहले के.के. पंथ के पास रही है और अब प्रबोध सक्सेना के पास है। मंत्री स्तर पर पर्यावरण विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। 12-07-2021 को समाप्त हो चुकी कमेटियों का गठन क्यों नहीं किया गया? क्या इस दौरान प्रदेश में किसी नए उद्योग का प्रस्ताव ही नहीं आया। सरकार ने 2019 की अपनी उद्योग नीति में भी संशोधन किया है। क्या इस संशोधन के दौरान भी इन कमेटियों का कोई जिक्र नहीं आया। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जो सरकार की नीयत और नीति पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। अब जब किसी ने विजिलेंस के पास यह शिकायत कर दी है तो इसी दौरान भारत सरकार ने भी प्रदेश से इसमें जवाब तलब किया है। लेकिन यह चर्चा भी सामने आ रही है कि भारत सरकार में भी इस मामले को रफा-दफा करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। संबद्ध अधिकारी अपनी गलती मान कर भारत सरकार से क्षमा कर दिये जाने की गुहार लगा रहे हैं। राजनीतिक स्तर पर भी प्रयास किये जा रहे हैं। जिस तरह की गंभीरता सुप्रीम कोर्ट पर्यावरण को लेकर दिखा चुका है उसके परिदृश्य में इस पर गंभीर कारवाई बनती है। क्योंकि इस दौरान जितने भी उद्योगों के मामले मामलों में पर्यावरण क्लीयरेंस जारी किये गये होंगे उनकी कानूनी वैधता संदिग्ध हो जाती है। क्योंकि जिसने भी यह क्लीयरेंस अनुमोदित की होगी वह उसके लिए अधिकृत ही नहीं था। चुनावी वर्ष में यह मामला सरकार की सेहत पर कितना असर डालता है और विपक्ष की इसी पर क्या प्रतिक्रिया रहती है यह देखना दिलचस्प होगा।