क्या सरकार कर्ज लेकर घी पीने पर अमल कर रही है?

Created on Wednesday, 30 March 2022 13:51
Written by Shail Samachar

45 लाख की कैमरी खरीद से उठी चर्चा
भ्रष्टाचार दबाने के लिए उसे उजागर करने वालों को ही डराने धमकाने पर आयी सरकार
चार मंजिला मकान की खरीद चर्चा में

शिमला/शैल। प्रदेश के मुख्य सचिव के लिये 45 लाख की कैमरी गाड़ी खरीदे जाने को लेकर चर्चाओं का दौर चल निकला है। यह चर्चा इसलिए उठनी शुरू हुई है कि जिस वक्त इस गाड़ी की जानकारी सार्वजनिक हुई उसी वक्त जनता को रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल और दवाइयां महंगी होने का तोहफा मिला। इससे पहले प्रदेश पर बढ़ते कर्ज तथा सरकार की फिजूल खर्ची की जानकारी कैग की रिपोर्टों के माध्यम से मिल चुकी है। कैग रिपोर्ट से यह खुलासा भी सामने आ चुका है कि 96 योजना पर इस सरकार ने एक पैसा भी खर्च नहीं किया है और न ही इसका कोई कारण बताया है। यही नहीं राजधानी शिमला में ही लक्कड़ बाजार बस स्टैंण्ड के पास कुछ दिन पहले कुछ दुकानें बनायी और अब उनको तोड़ दिया गया हैं। संजौली में महापौर के अपने वार्ड में कुछ दिन पहले एक रेन सैल्टर बनाया गया अब उसे वहां पर सीढ़ियां बनाने के लिये तोड़ दिया गया। सचिवालय में एनजीटी के आदेशों को नजरअंदाज करके निर्माण किया जा रहा था। एन जी टी के आदेश के खिलाफ सरकार प्रदेश उच्च न्यायालय में गयी थी लेकिन उच्च न्यायालय ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। अब या तो सरकार इस निर्माण को अदालती आदेशों की अवहेलना करके जारी रखें या उन अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करें जिनके कारण यह स्थिति खड़ी हुई है। शिमला का टाउन हॉल पिछले चार वर्षों से उचित उपयोग में लाये जाने के लिये तरस रहा है जबकि कर्ज के पैसे से इसकी रिपेयर हुई है। ऐसे कई मामले हैं जिनके सामने यह तस्वीर उभरती है कि सरकार सिर्फ कर्ज लेकर घी पीने के सिद्धांत पर चल रही है। अभी गाड़ी की खरीद की चर्चा शांत नहीं हो पायी है कि मुख्यमंत्री के आवास पर इको पार्क आदि बनाये जाने की खबरें बाहर आने लग गयी है।
सरकारी कर्मचारियों का हर वर्ग मांगे लेकर खड़ा हो चुका है। आउट सोर्स के माध्यम से रखे गये कर्मचारियों को बार-बार यह भरोसा दिया जा रहा है कि सरकार उनके लिए स्थाई नीति बनाने जा रही है। यह व्यवहारिक सच्चाई कोई नहीं बता रहा है कि इन कर्मचारियों को लेकर सरकार कोई नीति बना ही नहीं सकती। क्योंकि यह लोग प्राइवेट कंपनियों/ठेकेदारों के नौकर हैं। सरकारी कर्मचारी बनने के लिये इन्हें पूरी सरकारी प्रक्रिया से गुजरना होगा। जिसमें आरक्षण, रोस्टर आदि सबकी अनुपालन सुनिश्चित करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर कर्मचारियों के फ्रंट पर सरकार सुखद स्थिति में नहीं है। ऊपर से इस सबकी जिम्मेदारी पार्टी और सरकार का ही एक वर्ग पार्टी के ही दूसरे नेताओं पर डालने लग गया है। इससे पार्टी के अन्दर भी गुटबाजी को अनचाहे ही उभार मिल गया हैं। कर्मचारियों की पैंशन की मांग पर जब सदन में मुख्यमंत्री ने यह कह दिया कि इसके लिए चुनाव लड़ना पड़ता है। मुख्यमंत्री के इस बयान ने आग में घी का काम किया है। अब यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या कोई मुख्यमंत्री चुनावी वर्ष में अपने कर्मचारियों के प्रति इस तरह का स्टैंड ले सकता है। जब उपचुनाव में हार मिली थी तब उस हार के लिए महंगाई को जिम्मेदार ठहरा दिया गया था। महंगाई तो अब फिर पहले से भी ज्यादा बढ़ गयी है और निकट भविष्य में इसके कम होने के आसार नहीं हैं।
पार्टी के अंदर और बाहर इस वस्तुस्थिति पर नजर रखने वालों के सामने यह सवाल बड़ा होता जा रहा है कि क्या इस परिदृश्य में पार्टी पुनः सत्ता में वापसी कर पायेगी? क्या मुख्यमंत्री का राजनीतिक आकलन गड़बड़ा रहा है? क्या मुख्यमंत्री को उसके सलाहकारों और विश्वस्त अधिकारियों से सही राय नहीं मिल रही है? क्योंकि जब प्रशासन अपने भ्रष्टाचार और नालायकी को ढकने के लिये उसे उजागर करने वालों को ही डराने धमकाने का प्रयास करने लग जाये तब यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सलाहकार अब नेतृत्व को डूबो कर ही दम लेंगे। क्योंकि ऐसे सलाहकार ऐसे हालात में अपने भ्रष्टाचार की कमाई को निवेश करने में लगा देते हैं। एक सलाहकार का ऐसा ही एक निवेश चार मंजिला मकान की खरीद के रूप में विशेष चर्चा में चल रहा है। चर्चा है कि दो करोड के इस निवेश की रजिस्ट्री केवल पच्चास लाख में करवायी गयी है। कहते हैं कि जिस परिजन के नाम पर यह खरीद दिखाई गयी है उसकी आयकर रिटर्न से यह निवेश मेल नहीं खाता है। चर्चा है कि यह सब कुछ दिल्ली दरबार तक भी पहुंच चुका है।