क्या पूर्व सरकार पर उठते सवालों का रूख आक्रामकता से मोड़ा जा सकेगा?

Created on Monday, 06 March 2023 12:30
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, अध्यक्ष सुरेश कश्यप, प्रभारी अविनाश राय खन्ना और मंत्री सुरेश भारद्वाज सुक्खु सरकार के खिलाफ लगातार आक्रामक होते जा रहे हैं। आक्रामकता के मुद्दे हैं पिछली सरकार के अन्तिम छः माह के फैसलों को पलटना। कुछ ऐसे संस्थानों को भी बन्द कर देना जो इनके मुताबिक क्रियाशील भी हो चुके थे। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस सरकार को सलाहकार चला रहे हैं। गैर विधायकों को कैबिनेट मंत्रियों का दर्जा दिया जा रहा है। सुरेश भारद्वाज ने तो सुक्खु सरकार की तुलना पाकिस्तान की शहबाज सरकार तक से कर डाली है। मुख्य संसदीय सचिवों के पदों को असंवैधानिक करार दे दिया है लेकिन इस मुद्दे पर भाजपा उच्च न्यायालय में अभी तक नहीं गयी है। इससे यह इंगित होता है कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये इन मुद्दों के सहारे अपनी आक्रामकता को धार देने का प्रयास कर रही है। वैसे यह भाजपा का राजनीतिक धर्म भी है। बल्कि इस आक्रामकता पर यह भी कहा जा रहा है कि जयराम नेता प्रतिपक्ष की भूमिका जितने अच्छे से निभा रहे हैं यदि सरकार चालाने में इससे आधी ईमानदारी भी दिखाई होती तो स्थितियां बहुत सुखद होती। कांग्रेस और सुक्खु सरकार भाजपा के आरोप का क्या जवाब देती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। यह सही है कि हर सरकार में सलाहकार प्रभावी हो ही जाते हैं। कुछ तो इतने बड़े सत्ता केंद्र हो जाते हैं कि सरकार के बड़े-बड़े अधिकारी इन केंद्रों के चरण स्पर्श करने लग जाते हैं। बल्कि सरकार से पहले इनसे फाइलों पर विमर्श लेने लग जाते हैं। जयराम सरकार भी इस दोष से मुक्त नहीं थी। बल्कि जनवरी 2018 में ही इससे ग्रसित होकर कार्यकाल के अन्तिम दिन तक इस ग्रहण से बाहर नहीं निकल पायी। इसी परिदृश्य में अभी पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने धर्मशाला में दिशा की बैठक में जिला प्रशासन को जो कुछ सुनाया है वह सही में सुरेश भारद्वाज और जयराम के आरोपों का सीधा जवाब हो जाता है। भारद्वाज जयराम सरकार में शहरी विकास मंत्री थे। शिमला और धर्मशाला की स्मार्ट सिटी परियोजनाएं उनके अधीन थी। धर्मशाला स्मार्ट सिटी के काम की गति को लेकर जो टिप्पणीयां अनुराग ठाकुर ने की है वह पूर्व सरकार और पूर्व मंत्री की कार्यप्रणाली पर बहुत गंभीर सवाल खड़े कर जाती है। जिस सरकार में परियोजना की डी.पी.आर. काम करने वाली ठेकेदार कंपनी से ही तैयार करवाई जाये उसमें सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है कि ठेकेदार ने डी.पी.आर. तैयार करते हुए सरकार या अपना किसका ज्यादा ध्यान रखा होगा और ऐसा कब किया जाता है। एन.जी.टी. के फैसले के बाद ओक ओवर में जो निर्माण हुआ है और लिफ्ट तक लगी उसकी स्वीकृति किसने दी है यह सवाल आज तक अनुतरित है। यही नही इस फैसले के बाद और हजारों निर्माण कैसे खड़े हो गये इसका भी जवाब नहीं आया है। नगर निगम शिमला के क्षेत्र में कितने निर्माण निर्माणाधीन स्टेज पर गिर गये उसके लिये किसको दंडित किया गया यह आज तक सामने नहीं आया है। आज पूर्व सरकार पर सबसे बड़ा आरोप प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में फंसाने और वित्तीय कुप्रबन्धन का लग रहा है। भाजपा के दो पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल अपने-अपने समय का जवाब दे चुके हैं। लेकिन जयराम या उनका कोई भी पूर्व मंत्री कर्ज और कुप्रबन्धन का जवाब क्यों नहीं दे पा रहा है। आज शिमला का जल प्रबन्धन तन्त्र सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। शिमला के लिये बनाई गयी जल प्रबन्धन निगम पर कई आरोप लग रहे हैं। डॉ. बन्टा द्वारा आर.टी.आई. में ली गयी जानकारी से कई गंभीर सवाल पूर्व मंत्री से जवाब मांग रहे हैं। लेकिन इन सवालों का रुख आक्रामकता अपना कर मोड़ने का प्रयास कितना सफल हो पायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।