सरकार पर लगे हिमाचल बेचने के आरोप कांग्रेस ने दिया राज्यपाल को ज्ञापन

Created on Tuesday, 28 December 2021 18:42
Written by Shail Samachar

उद्योग लगाने के लिए तीन वर्ष तक सरकार से किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं
कर्ज लेकर संपत्ति बनाये और दोहन के लिए प्राइवेट सैक्टर को दे दे तो...
क्या यह सब धारा 118 पर पिछले दरवाजे से हमला नहीं
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता में चार साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री के गृह जिला मण्डी में प्रधानमंत्री को बुलाकर जहां एक बड़ा जश्न मनाया है वहीं पर विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार पर हिमाचल बेचने के आरोप लगाते सरकार की नाकामियों पर एक सात पन्नों का ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा है। ज्ञापन में राज्यपाल से स्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुए तुरंत हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। हिमाचल में गैर कृषकों को और गैर हिमाचलीयों पर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जमीन खरीद पर प्रतिबंध है। ऐसे में जब भी किसी भी तरह का कोई उद्योग लगाने का प्रस्ताव सरकार के पास आता है तब ऐसे उद्योग पर यह नियम लागू होते हैं। यही नहीं जमीन खरीद की पूरी अनुमति के अतिरिक्त और भी कई विभागों से पूर्व अनुमतियां लेनी पड़ती हैं। इसमें प्रायः कई बार नियमों की अनदेखी होने के आरोप भी लगते आये हैं । शांता, वीरभद्र और प्रेम कुमार धूमल सभी की सरकारों पर यह आरोप लगे हैं। इन आरोपों की जांच के लिए एस एस सिद्धु जस्टिस रूप सिंह ठाकुर और जस्टिस डी पी सूद की अध्यक्षता में जांच कमेटीयां भी बनी है। इन कमेटियों की रिपोर्ट भी आयी है। लेकिन यह कभी सामने नहीं आया है कि इन पर कार्रवाई क्या हुई है।
अब जयराम सरकार भी इस आरोप से बच नहीं पायी है। इस सरकार पर इस की नीति को लेकर ही आरोपों की स्थिति बन गयी है। क्योंकि इस सरकार ने उद्योगों को यह छूट दे रखी है कि उन्हें उद्योग स्थापित करने के लिए पहले तीन वर्षों में किसी भी तरह की कोई भी पूर्व अनुमति या एनओसी किसी भी विभाग से लेने की आवश्यकता नहीं होगी। स्वभाविक है कि जब तीन वर्ष तक किसी भी तरह की पूर्व अनुमति की आवश्यकता ही नहीं होगी तो इससे एक अलग तरह का प्रशासनिक वातावरण प्रदेश में स्थापित हो जायेगा। जिसको जहां पर भी जिस भी तरह से जमीन मिल पायेगी वह ले ली जायेगी। जमीन बेचने वाला जमीन बेचकर स्वंय भूमिहीन तो नहीं होने जा रहा है इसका ध्यान रखने का कोई प्रावधान ही नहीं है। प्रस्तावित उद्योग पर्यावरण मानकों की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं इसका भी उद्योग स्थापित होने से पहले कोई संज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं रखी गयी है। जब उद्योग लगाने से पहले सरकार से कोई वास्ता ही नहीं रखा गया है तो निश्चित रूप से तीन वर्षों में उद्योग लग भी जायेगा। आप्रेशन में भी आ जायेगा और यह भी पता चल जायेगा कि संबंधित उद्योग का भविष्य क्या होगा। तीन वर्ष बाद इस पर सरकार के कायदे कानून लागू होंगे। तब भ्रष्टाचार के लिये अधिकारिक रूप से स्थान मिल जायेगा। उद्योग के अनुसार सारे मानक गढ़े जायेंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि तब किस तरह की कार्य संस्कृति प्रदेश में आ जायेगी। सरकार की इस उद्योग नीति को लेकर आज तक प्रदेश में कोई सार्वजनिक बहस नहीं हो पायी है। माना जा रहा है कि तब उद्योग स्वंय ही एक पत्रा देकर यह घोषित करेंगे कि उन्होंने किसी भी तरह के नियमों की कोई अनदेखी नहीं की है और प्रशासन इसे स्वीकार कर लेगा।
अभी जिस तरह से पर्यटन के नाम पर जंजैहली, बड़ा गांव और क्यारी घाट में एशियन विकास बैंक से ऋण लेकर कन्वैन्शन सेंटर स्थापित किये गये और उन्हें आप्रेशनल होने से पहले ही प्राइवेट सेक्टर को सौंप दिया गया है उससे कांग्रेस के इस हिमाचल बेचने के आरोप को स्वतः ही अधिमान मिल जाता है। क्योंकि स्वयं कर्ज लेकर संपत्तियां बनाओ और फिर उसे दोहन के लिए निजी क्षेत्रा को सौंप दो तो निश्चित रूप से सरकार की नीयत और नीति दोनों पर ही सवाल उठेंगे। क्योंकि सरकार की इस तरह की नीति से भू- सुधार अधिनियम की धारा 118 के औचित्य पर भी सवाल उठेंगे। सरकार जब उद्योगों को सारे कायदे कानूनों से छूट दे देगी और स्वयं कर्ज लेकर प्राइवेट सैक्टर को संपत्तियां सौंपेगी तो इसे पिछले दरवाजे से धारा 118 पर हमला माना जायेगा।