शिमला/शैल। मण्डी लोकसभा क्षेत्र के सांसद स्व. राम स्वरूप शर्मा ने 17 मार्च को अपने दिल्ली स्थित आवास पर आत्महत्या कर ली थी। सांसद ने यह आत्महत्या क्यों की और इसके पीछे क्या कारण रहे हैं इसकी जांच दिल्ली पुलिस कर रही है। लेकिन इस जांच मे न तो अभी तक फारैन्सिक रिपोर्ट सामने आयी है और न ही सांसद की कॉल डिटेल अभी तक सामने लायी गयी है। स्मरणीय है कि जब यह आत्म हत्या हुई थी तब दिल्ली में कुछ न्यूज़ साईटस ने इस पर सन्देह जताया था और इसे आत्महत्या का मामला मानने से इन्कार कर दिया था। उस समय मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने भी यह कहा था कि यदि रामस्वरूप के परिजन- परिवार के सदस्य कहेंगे तो सरकार सीबीआई जांच के आदेश कर देगी। अब इस आत्महत्या को चार माह का समय हो गया और अब तक न तो कॉल डिटेल आयी हैं और न ही फारैन्सिक डिटेल। रामस्वरूप का बेटा आनन्द इस जांच प्रौग्रेस जानने के लिये दिल्ली जा आया है। वह दिल्ली पुलिस की जांच से सन्तुष्ट नहीं है और केन्द्रिय मन्त्री नितिन गडकरी से इसकी जांच सीबीआई से करवाने की गुहार लगा चुका है। लेकिन इसका कोई परिणाम अभी सामने नहीं आया है। ऐसे में अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यदि एक सांसद की मौत की जांच को लेकर इस तरह के हालात होंगे तो आम आदमी के साथ क्या हो सकता है।
इस समय प्रदेश विधानसभा का सत्र चल रहा है। क्या इस सत्र में 18 लाख जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद की आत्महत्या की जांच की प्रौग्रेस को लेकर सदन में चिन्ता नहीं जताई जानी चाहिये थी? स्मरणीय है कि जब बॉलीवुड अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले पर देशभर में शिमला तक हंगामा खड़ा कर दिया गया था तो क्या प्रदेश के सांसद को लेकर विधानसभा में यह मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिये था जब राम स्वरूप के बेटे की ओर से यह ब्यान आ चुका हो कि उनके पिता आत्म हत्या नहीं कर सकते। रामस्वरूप दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे इसलिये आम आदमी को उम्मीद थी कि प्रदेश भाजपा ही प्रदेश सरकार से इस मामले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग करेगी। लेकिन जब भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया और मण्डी संसदीय क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस विधायकों जगत सिंह नेगी, नंद लाल और सुन्दर सिंह ठाकुर ने नियम 67 के तहत इस पर चर्चा की मांग की तो इस मांग को अस्वीकार कर दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस चर्चा की अनुमति न दिये जाने पर कांग्रेस विधायक नारे लगाते हुए सदन से बाहर चले गये। कांग्रेस विधायक इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे क्योंकि रामस्वरूप का बेटा ऐसी मांग कर चुका है। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर स्वयं एक समय जब यह हादसा हुआ था तब कहा था कि अगर परिवार के लोग कहेंगे तो सरकार सीबीआई जांच के आदेश कर देगी। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने इस मामले पर सदन में यह चर्चा जताई कि एक सांसद आत्महत्या कर ले और उसके पीछे के कारणों की जांच भी न हो तो इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है।
अब मण्डी लोसभा के लिये उपचुनाव होना है। इस उपचुनाव में यह आत्महत्या का मामला उठना स्वभाविक है। क्योंकि यदि एक सांसद के मामले में जांच की गति इतनी धीमी हो सकती है तो आम आदमी को लेकर सरकार से क्या अपेक्षा की जा सकती है। ऐसे मामलों में यह प्रायः देखा गया है कि जांच में जितनी देरी होगी साक्ष्यों के नष्ट होने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। यह सही है कि इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा कर रही है और उस पर कोई दबाव डालना उचित नहीं होगा। लेकिन क्या इसी के साथ यह चिन्ता का विषय नहीं हो जाना चाहिये कि क्यों आज तक सांसद की कॉल डिटेल तक सामने नहीं आ पायी है? क्यों फॉरेन्सिक रिपोर्ट आने में इतनी देर लग रही है? क्या इस जांच गति से उपचुनावों से पहले इस आत्महत्या पर से पर्दा उठ पायेगा? इस समय जिस तरह का रूख सरकार का हो रहा है उससे राम स्वरूप के परिजनों और उनके समर्थकों का जांच पर विश्वास बन पायेगा?