एक बार जयराम भी कर चुके हैं बारह करोड़ का जिक्र
क्या कांग्रेस पत्र लिखने वालों को चिन्हित कर पायेगी
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को लेकर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी को पचास से अधिक लोगों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र भेजा जाना इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पत्र में प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ कुछ आरोप लगाते हुए यह कहा गया है कि वह संगठन को चलाने में असमर्थ हैं। राठौर के अतिरिक्त पत्र में अन्य ग्यारह वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर, जी एस बाली, सुखविन्दर सिंह सुक्खु, मुकेश अग्निहोत्री, हर्षवर्धन चौहान, राजमाता प्रतिभा सिंह, सुधीर शर्मा, राजेन्द्र राणा और विपल्व ठाकुर को लेकर भी टिप्पणीयां की गयीं हैं। इसमें राम लाल ठाकुर को छोड़कर शेष सभी नेताओं की छवि पर कुछ न कुछ सवाल उठाते हुए यह कहने का प्रयास किया गया है कि यह लोग नेतृत्व के योग्य नहीं हैं। बड़ी चालाकी से इन नेताओं के बीच एक दिवार खड़ी करने का प्रयास किया गया है। इस समय प्रदेश में चार उपचुनाव होनें हैं और सभी दल इन चुनावों की तैयारियों में लग गये हैं। इन उपचुनावों के बाद अगले वर्ष नगर-निगम शिमला के चुनाव होने हैं। इस नगर निगम को प्रदेश की मिनी विधानसभा के रूप में देखा जाता है। इसके परिणामों का असर विधानसभा चुनावों पर पड़ता है जो इसके बाद होंगे। इस समय नगर निगम शिमला पर भाजपा का कब्जा है और भाजपा के पार्षदों ने ही अपनी मेयर के खिलाफ किस कदर मोर्चा खोल रखा है वह सबके सामने आ चुका है। इससे नगर निगम से लेकर विधानसभा तक का आकलन करना आसान हो जाता है। इस परिदृश्य में कांगेस पार्टी को लेकर इस समय लिखे गये पत्र का मतलब आसानी से समझा जा सकता है।
इसी परिपेक्ष में यदि पत्र के तथ्यों पर विचार किया जाये तो इसमें सबसे बड़ा आरोप अध्यक्ष के खिलाफ यह लगाया गया है कि उसने इस कोरोना काल में 12 करोड़ का जाली खर्च किया जाना दिखाया है। इसके लिये फर्जी बिल तैयार करने का आरोप है। इस आरोप पर विचार करने पर सबसे पहले ता यह सामने आता है कि आरोप लगाने वाले ने यह खुलासा नहीं किया है कि प्रदेश ईकाई के पास यह 12 करोड़ आये कहां से? क्या केन्द्र ने दिये या कार्यकर्ताओं द्वारा इकट्ठे किये गये। क्या यह बिल बनाकर केन्द्र को भेजे जाने थे और केन्द्र ने यह पैसा प्रदेश को देना था। क्या यह पैसा यदि आना भी था तो क्या पार्टी के खाते में आना था या कुलदीप राठौर के नीजि खाते में आना था। इन स्वभाविक सवालों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह बारह करोड़ का आरोप केवल गंभीरता लाने के लिये ही लगाया गया है। वैसे यह बारह करोड़ का जिक्र एक समय मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर भी कर चुके हैं। वैसे इस पत्र में जितने भी नेताओं की जिक्र किया गया है उनमें से अधिकांश के खिलाफ भाजपा के आरोप पत्रों में आरोप रहे हैं। कुलदीप राठौर कभी विधायक या मन्त्री नहीं रहे हैं इस नाते वह आरोपों से बचे हुए हैं। दूसरी और भाजपा की कार्यशैली ही यह है कि वह आरोपों और जांच ऐजैन्सीयों के सहारे ही अपने विरोधियों पर हावी होने का प्रयास करती है। 2014 और 2019 के चुनावों में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से लेकर नीचे प्रदेश नेताओं तक ने कैसे स्व. वीरभद्र के खिलाफ आयकर, ईडी और सीबीआई द्वारा बनाये गये केसों को उछाला था यह पूरा प्रदेश जानता है। लेकिन आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा के पास ऐसा कोई हथियार कांग्रेस और उसके नेताओं के खिलाफ नहीं होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक वीरभद्र के खिलाफ बनाये गये केसों का परिवार पर कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि सभी मामलों में मुख्य दोषी वही थे।
इस वस्तुस्थिति में यह पत्र लिखकर कांग्रेस को कमज़ोर करने का जो प्रयास किया गया है उससे कांग्रेस का नुकसान होने की कोई संभावना नहीं रह जाती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि कुलदीप राठौर ने जनवरी 2019 में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्भाली थी। उस समय राठौर के नाम पर वीरभद्र सिंह, आन्न्द शर्मा, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री सभी ने लिखित में सहमति दी है। उस समय भी हाई कमान के सामने सभी नाम थे और उन पर हाई कमान की सहमति नहीं थी। इसलिये अब अध्यक्ष को परफारमैन्स के आधार पर ही बदलने की बात आ सकती है। राठौर ने जिम्मेवारी संभालने के बाद 2019 के लोकसभा और फिर दो उपचुनाव हुए हैं। लोकसभा चुनाव में किस तरह स्व. वीरभद्र और पंडित सुखराम के अहंकार का टकराव रहा है उससे चुनाव में नुकसान होना तय था, शैल ने उस समय यह स्पष्ट लिखा हुआ है। लोकसभा चुनाव लड़ने तक के लिये वरिष्ठ नेता तैयार नहीं थे। उपचुनाव तक वही स्थिति बनी रही। लेकिन इसके बाद जब राष्ट्रीय स्तर पर हालात बदलने लगे तो उसका लाभ प्रदेश की पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में मिला। जब चार नगर निगमों के चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़े गये तब दो निगमों में हुई सीधी जीत ने पार्टी और उसके सामूहिक नेतृत्व की क्षमता पर मोहर लगा दी है। इस समय मोदी और भाजपा के खिलाफ जासूसी प्रकरण तथा किसान आन्दोलन से राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की परिस्थितियों का निर्माण होता जा रहा है उससे आने वाले समय में निश्चित रूप से कांग्रेस को लाभ मिलेगा। फिर जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच तीसरा कोई नहीं है वहीं पर काग्रेंस को सत्ता में आने से रोकना कठिन है। हिमाचल में तीसरा कोई नहीं है ऐसे में इस तरह के पत्रों और कुछ तीसरों को खड़ा करने जैसे प्रयास आने वाले दिनों में देखने को मिलते रहेंगे ऐसा माना जा रहा है। कांग्रेस ऐसी चुनौतियों का कैसे सामना करेगी यह देखना दिलचस्प होगा।