पंचायत चुनाव परिणामों के परिदृश्य में आसान नहीं होगा 2022 में सत्ता बचाये रखना

Created on Thursday, 28 January 2021 06:44
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। सत्तारूढ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ही इसमें अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं क्योंकि यह चुनाव पार्टीयों के अधिकारिक चुनाव चिन्हों पर नहीं लड़े गये हैं। इसलिये दोनों दल जीत का दावा कर पा रहे है। जहां पर किसी उम्मीदवार के साथ उसके पोस्टर पर क्या मन्त्री या पार्टी के अन्य बड़े नेता का फोटो सामने देखने को मिला हैं उन्हें इस पार्टी के साथ जोड़ना तो सही है अन्य को नहीं। ऐसे में जिन उम्मीदवारों ने अपनी पहचान को सार्वजनिक किया है उनकी हार जीत से पार्टीयों के दावे की पुष्टि की जा सकती है। इसके अतिरिक्त जहां पार्टीयों ने अधिकारिक तौर पर हार जीत के आंकड़े जारी किये हैं उनसे भी पार्टीयों की स्थिति का आकलन किया जा सकता है। वैसे इन चुनावों का पूर्व इतिहास यही रहा है कि सत्तारूढ दल ही ज्यादा जीत का दावा करता आया है। ऐसे दावों के बावजूद भी सत्तारूढ़ दल ही विधान सभा चुनाव हारता आया है।
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव तीन चरणों में हुए हैं। हर चरण के परिणाम के बाद पार्टीयों ने आंकड़े जारी किये हैं। पहले चरण के परिणामों का असर दूसरे और तीसरे चरण पर पड़ना स्वभाविक है। भाजपा ने दूसरे चरण के परिणामों के आंकड़े जारी किये हैं। भाजपा ने अपनी सुविधा के लिये प्रदेश को संगठनात्मक जिलों में बांट रखा है। भाजपा द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पार्टी के पंचायत चुनावों में नुरपूर 61%, देहरा 69%, पालमपुर 70%, कांगड़ा 70%, चम्बा 81%, मण्डी 57%, सुन्दरनगर 63%, बिलासपुर 68%, हमीरपुर 71%, ऊना 76%, सोलन 72%, सिरमौर 65% महासू 55%, शिमला 46% और किन्नौर 61% सफलता मिलने का दावा किया गया हैं इन सोलह जिलों में से केवल पांच में 70% से अधिक सफलता मिली हैं इसमें कुल्लु, मण्डी, शिमला और महासू का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा है। इन्हीं आंकड़ों का आकलन यह प्रमाणित कर देता है कि लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के बाद जनता भाजपा से दूर जाने लग पड़ी है। हर जिले में जिला परिषदों के लिये वह उम्मीदवार हार गये हैं जिन्हें वहां के मन्त्रीयों ने खुला समर्थन दिया था और उम्मीदवारों के साथ अपने फोटो लगवाये थे।
इन चुनावो में पहली बार यह देखने को मिला है कि महेन्द्र सिंह जैसे मन्त्री के अपने क्षेत्र में ‘‘गौ बैंक’’ के नारे लगे। भले ही इन नारों के बावजूद महेन्द्र सिंह की बेटी चुनाव जीत गयी है। भाजपा संसद रामस्वरूप के भाई का अपने वार्ड में चुनाव हारना और मुख्यमन्त्री के अपने जिला परिषद वार्ड से भाजपा उम्मीदवार का हारना भी इस चुनाव की महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनायें हैं जिनका असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। इन चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा पर जनमत का अपमान करने और विजयी उम्मीदवारों को अगवा करने और उनके घरों में छापामारी तक करने के आरोप लगाये हैं। ऐसा करने के बाद भी भाजपा के अपने आंकड़ोे के अनुसार ही पार्टी को 60% से कम सफलता मिली है। अभी लोकसभा चुनावों को हुए एक वर्ष समय हुआ है। इसी समय में पार्टी के आधार का इतना टूटना भविष्य को लेकर एक बहुत बड़ा संकेत हो जाता है। इस चुनाव में अधिकांश मन्त्रीयों को उनके अपने ही बीडीसी और जिला परिषद बार्डों में हार का सामना करना पड़ा है। जबकि इन चुनावों में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मुद्दों पर कहीं कोई चर्चाएं नहीं उठी हैं। स्थानीय मुद्दों और आपसी रिश्तों के आधार पर लड़े गये इन चुनावों में भी उम्मीदवारों ने लाखों के हिसाब खर्च किया है। मन्त्रीयों द्वारा भी अपने समर्थकों की जीत सुनिश्चित करने के लिये लाखों खर्च किये जाने की चर्चाएं हैं इस सबके बावजूद पार्टी की परफारमैन्स मेें लोकसभा के मुकाबले में कमी आना यह स्पष्ट करता है कि 2022 में सत्ता में वापसी कर पाना सरकार के लिये आसान नहीं होगा।