शिमला/शैल। जयराम सरकार ने तीन वर्ष पूरे कर लिये हैं। यह तीन वर्ष पूरा होने पर आयोजित कार्यक्रम में इस अवधि को ‘‘सुशासन के तीन साल’’ कहा गया है और इसके लिये प्रदेश की जनता का भी आभार व्यक्त किया गया है। यह आभार व्यक्त करने और सुशासन का संदेश देने के लिये सरकार के सूचना एवम् जन संपर्क विभाग की ओर से मुख्यमन्त्री के चित्र के साथ एक बड़ा होर्डिंग भी माल रोड़ जैसे प्रदेश के प्रमुख स्थलों पर लगाया गया है।लेकिन मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिमला के सांसद सुरेश कश्यप के चित्र वाला होर्डिंग भी शिमला की माल रोड़ की दीवार पर लगाया गया है। इसमें भी सुशासन के तीन साल का सन्देश प्रदेश की जनता को दिया गया है। परन्तु पार्टी अध्यक्ष के चित्र वाला यह होर्डिंग सार्वजनिक स्थल पर किसकी ओर से लगाया गया है इसका कोई जिक्र होर्डिंग पर बिना किसी जारी कर्ता के उल्लेख से सार्वजनिक स्थल पर लग जाना अपने में ही सुशासन के दावे पर एक सवाल खड़ा कर देता है क्योंकि प्रचार की कोई भी सामग्री प्रकाशक और मुद्रक के नाम-पत्ते के बिना नहीं छापी जा सकती है यह एक स्थायी नियम है। इसी तरह कोई भी होर्ड़िंग किसी भी सार्वजनिक स्थल पर जारीकर्ता के जिक्र के बिना टांगा नहीं जा सकता है। फिर सार्वजनिक स्थल पर ऐसा होर्डिंग टांगने के लिये संबंधित प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी होती है और उसके लिये कुछ शुल्क भी अदा करना पड़ता है।
माल रोड़ पर टंगे इस होर्डिंग पर जब किसी जारी कर्ता का नाम ही नहीं है तो स्वभाविक है कि प्रशासन से इसकी अनुमति भी नहीं ली गयी होगी। फिर जब इस होर्डिंग पर सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चित्र है तो स्वभाविक है कि प्रशासन की ओर से भी इस पर चुप रहने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह गया होगा। माल रोड़ प्रदेश का प्रमुख स्थल है जहां पर प्रशासन का हर छोटा बड़ा शिमला स्थित अधिकारी, और हर राजनीतिक दल का पदाधिकारी तथा मीडिया कर्मी प्रायः चक्कर काटता है लेकिन किसी ने भी इस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी है। भारत सरकार की आईवी के लोग भी रोज़ माल रोड़ पर होते हैं। इस होर्डिंग से किसी को कोई नुकसान नही पहुंच रहा है। लेकिन सवाल नियमों की अनुपालना का है और नियमों की निश्चित रूप से अवहेलना हुई है जिसकी सामान्यतः कोई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन क्या ऐसा ही कोई दूसरा होर्डिंग बिना किसी जारी कर्ता के नाम से ऐसे किसी भी सार्वजनिक स्थल पर टंग जाये तो क्या प्रशासन उसका भी कोई संज्ञान नहीं लेगा? किसी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनाया जायेगा? क्या यह छोटी से कोताही पूरे प्रशासन को कटघरे में खड़ा नहीं कर देती है? वैसे माल रोड़ पर लगे इस होर्डिंग के राजनीतिक मायने ही निकाले जाने लगे हैं क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है कि ऐसे अवसर पर मुख्यमन्त्री के बराबर पार्टी अध्यक्ष का होर्डिंग लगा हो। इस होर्डिंग को अध्यक्ष का राजनीतिक कद बढ़ाने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है। लेकिन यह होर्डिंग लगाने में जिस तरह से नियमों /कानूनों को अंगूठा दिखाया गया है वह देर सवेर मुद्दा अवश्यक बनेगा क्योंकि यह होर्डिंग पंचायत और निकाय चुनावों के लिये लगाई गयी आचार संहिता का भी खुला उल्लघंन है क्योंकि आचार संहिता तीन वर्षीय आयोजन से पहले ही लग चुकी थी। ऐसे में सुशासन का संदेश देने वाली होर्ड़िंग का अपने में ही नियमों/ कानूनों का उल्लंघन होना कई सवाल खड़े कर जाता है।