प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड फिर सवालों में

Created on Wednesday, 09 December 2020 08:43
Written by Shail Samachar

बाॅस फार्मा, वर्धमान और विनसम उद्योगों सेे उठी चर्चा

शिमला/शैल। पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण पर नियन्त्रण रखने की जिम्मेदारीयों के लिये ही केन्द्र से लेकर राज्यों तक प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डों का गठन किया गया है। किसी भी उद्योग को उसकी स्थापना और आप्रेशन शुरू करने से पहले उद्योग तथा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से आवश्यक अनुमति लेनी अनिवार्य होती है। यही नहीं आप्रेशन शुरू होने के बाद भी उद्योगों का समय -समय पर निरीक्षण करके यह सुनिश्चित करना की कहीं पर्यावरण और प्रदूषण के मानकों का उल्लघंन तो नहीं हो रहा है यह जिम्मेदारी भी प्रदूषण बोर्ड की ही है। मानकों की उल्लघंना पर संबंधित उद्योग को बन्द करने तक का फरमान प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड जारी कर सकता है। प्रदूषण बोर्ड के इन अधिकारों का क्या संबंधित अधिकारी ईमानदारी से प्रयोग कर रहे हैं या यह अधिकार उत्पीड़न का माध्यम बनते जा रहे हैं इसको लेकर अब कई तरह की चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं।
चर्चाएं बद्दी, नालागढ़ क्षेत्र में बाॅस फार्मा उद्योग, वर्धमान और विनसम उद्योगों को लेकर सामने आयी हैं। बाॅस फार्मा उद्योग में बोर्ड ने अपने ही पूर्व के फैसलों को मानने से इन्कार कर दिया। इस इन्कार पर उद्योग को प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है। वर्धमान और विनसम उद्योगों पर प्रदूषण के मानकों की अनुपालना न करने का आरोप है। इस आरोप पर इन उद्योगों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने की बात आयी। यहां तक प्रस्ताव आया कि इनकी बिजली-पानी काटकर इनमें उत्पादन बन्द करवा दिया। यह प्रस्ताव उच्च स्तर तक गया लेकिन इसी बीच किसी कोने से दबाव आ गया और उच्च स्तर पर जाकर भी यह प्रस्ताव अमली शक्ल नहीं ले पाया। स्वभाविक है कि जब इस स्तर पर जाकर इस तरह की स्थिति होगी तो उस पर चर्चाएं तो उठेंगी ही।
स्मरणीय है कि जब होटलों और अन्य अवैध निर्माणों को लेकर उच्च न्यायालय में याचिकाएं आयी थी तब अदालत ने पर्यटन, टीसीपी, लोक निर्माण के साथ-साथ प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से भी जवाब तलबी की थी। इसी जवाब तलबी की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप कसौली कांड घटा था। एनजीटी ने प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और टीसीपी के कुछ अधिकारियों को वाकायदा नामजद करते हुए उनके खिलाफ कारवाई करने के आदेश दिये थे। लेकिन इन आदेशों पर आज तक कोई अमल नही हुआ है। स्वभाविक है कि इसके लिये बड़े स्तर का दबाव रहा होगा।
इसके बाद एनजीटी के पास कांगड़ा के मंड क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन का एक मामला आया था। मंड पर्यावरण संरक्षण परिषद ने यह मामला उठाया था। इस पर जिलाधीश कांगड़ा और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से 21-12-2018 को जबाव मांगा गया था। बोर्ड ने 6-3-2019 को इस पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। शपथ पत्र के साथ सौंपी गयी इस रिपोर्ट में बोर्ड ने इस मामले को सीधे अवैध खनिज का मामला करार देते कह दिया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं है। इसे उद्योग विभाग के जियोलोजिकल प्रभाग का मामला बताते हुए यह कह दिया कि यह 1957 के खनिज अधिनियम के तहत संचालित और नियन्त्रित होता है।
प्रदूषण बोर्ड के इस जबाव का कड़ा संज्ञान लेते हुए यह कहा कि बोर्ड के सदस्य सचिव को पर्यावरण के नियमों का ही पूरा ज्ञान नहीं है। पर्यावरण को लेकर प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। एनजीटी ने अपने आदेश में प्रदेश के मुख्य सचिव को भी निर्देश दिये हैं कि वह बोर्ड के सदस्य सचिव को पर्यावरण के नियमों का पूरा ज्ञान अर्जित करने की व्यवस्था करें। 26 मार्च 2019 को आये इस आदेश पर सरकार में आज तक कोई अमल नहीं हुआ है। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में सदस्य सचिव और चेयरमैन की शैक्षणिक योग्यता को लेकर बहुत पहले ही मामला अदालत तक जा चुका है। अदालत ने साफ निर्देश दिये हैं कि इन पदों पर उन्ही लोगों को नियुक्त किया जाये जो पर्यावरण के नियमों का पूरा ज्ञान रखते हों। अदालत के इन निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के ज्यादा प्रयास नही हुए हैं। कसौली कांड़ में तो बोर्ड के अधिकारियों ने ही अदालत को नियमों की अलग-अलग जानकारी और व्याख्या दे दी थी। अदालत को ही यह कह दिया था कि उसके नियमों में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है। इस पर सदस्य सचिव ने सही स्थिति अदालत के सामने रखी थी। अदालत ने अधिकारी की गलत ब्यानी का कडा संज्ञान लेते हुए इस अधिकारी के खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये थे जिन पर आज तक अमल नहीं हुआ है। इसी सब का परिणाम है कि आज प्रदूषण बोर्ड बाॅस फार्मा, वर्धमान और विनसम उद्योगों के संद्धर्भ में फिर चर्चाओं का केन्द्र बन गया है।