अदालत के निर्देशों के बावजूद अब तक क्यों नही बन पाये लोकसेवा आयोग के लिये नियम

Created on Tuesday, 17 November 2020 19:34
Written by Shail Samachar

देवाशीष भट्टाचार्य ने मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव को भेजी ई-मेल
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय में 2017 के विधानसभा चुनावों से बहुत पहले एक याचिका दायर हुई थी। इस याचिका में प्रदेश लोक सेवा आयोग में नियुक्त सदस्य श्रीमति मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती दी गयी थी। आरोप लगाया गया था कि उनकी नियुक्ति नियमों के विरूद्ध है और उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला भी लंबित है। विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदेश भाजपा ने ‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ के नाम से एक बड़ा पत्र जनता में जारी किया था। इस पत्र में मीरा वालिया की नियुक्ति पर सवाल उठाया गया था। लेकिन चुनावों के बाद जब जयराम नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गयी तब नियमों में संशोधन किये बिना ही लोक सेवा आयोग में सदस्यों के दो पद सृजित करके एक को उसी दिन भर भी दिया गया। इस पद पर उस समय दैनिक जागरण में कार्यरत पत्रकार रचना गुप्ता की नियुक्ति हो गयी। लेकिन दूसरे पद को नही भरा गया। इस एक नियुक्ति पर यह सवाल उठना स्वभाविक था कि यदि मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों के विरूद्ध थी तो फिर रचना गुप्ता की नियुक्ति नियमों में कैसे क्योंकि नियम तो अब भी पुराने ही चल रहे थे। बल्कि इसी बीच एक देवाशीष भट्टाचार्य ने 2016 में जोगिन्दर नगर की जे एम आई सी की अदालत में रचना गुप्ता के खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित होने का खुलासा करते हुए महामहिम राज्यपाल को एक पत्र भी भेज दिया। यह सब चर्चा में आने पर प्रदेश के हर आदमी की निगाहें इस मामले पर लग गयी। क्योंकि 2018 के अपने बजट सत्र में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश लोक सेवा आयोग की कार्यशैली पर काफी गंभीर टिप्पणीयां की हुई थी।
प्रदेश लोक सेवा आयोग एक ऐसी संस्था है जो राज्य की शीर्ष सेवाओं के लिये चयन का काम करती है। लोक सेवा आयोग के सदस्य अपना काम पूरी निष्पक्षता और निर्भिकता से निभा सके इसके लिये यह व्यवस्था की गयी है कि इन सदस्यों की नियुक्ति एक चयन मण्डल की सिफारिश पर राज्यपाल करता है। लेकिन राज्यपाल और इस चयन मण्डल को इन्हे हटाने का अधिकार नही है। हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है और वह भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच किये जाने के बाद। निष्पक्षता के लिये ही यह प्रावधान भी किया गया है कि यह सदस्य सेवा निवृति के बाद राज्य या केन्द्र सरकार में कोई पद स्वीकार नही कर सकते। लेकिन लोक सेवा आयोग की निष्पक्षता पर अक्सर सवाल भी उठते रहे हंै। हिमाचल में ही तीन बार गंभीर सवाल उठ चुके हैं। आयोग के सदस्यों/अध्यक्ष की नियुक्तियों को लेकर न तो कोई ठोस नियम है और न ही कोई प्रक्रिया। इस संद्धर्भ में एक मामला पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय से अपील में सर्वोच्च न्यायालय में पहंुचा था। इस पर फरवरी 2013 में आये फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को इन नियुक्तियों को लेकर नियम बनाने और प्रक्रिया तय करने के निर्देश दिये थे। हिमाचल उच्च न्यायालय में भी मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका का भी फैसला आ गया है। इस फैसले में भी उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिये हैं कि सरकार इन नियुक्तियों के लिये नियम और प्रक्रिया शीघ्र बनाये।The court said that it hopes that the State of H.P must step in and take urgent steps to frame memorandum of Procedure, administrative guidelines and parameters for the selection and appointment of the Chairperson and Members of the Commission, so that the possibility appointments is eliminated.
प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद जयराम सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई कदम नही उठा रखे हैं। आने वाले दिनों में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष का पद खाली होने वाला हैै। सदस्यों के पद इस समय भी खाली हैं। यह सब आगे भरे जाने हैं। यदि इन नियुक्तियों से पहले नये नियम नही बनाये जाते हैं तब पुराने ही नियमों के तहत सरकार अपनी सुविधा के अनुसार इन्हे भरेगी जो कि प्रदेश उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना होगी। देवाशीष भट्टाचार्य ने इस आश्य की एक ई मेल भी मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव को भेज दी है। मुख्य सचिव ने इसे आवश्यक कारवाई के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव कार्मिक प्रबोध सक्सेना को भेज दिया है। यह माना जा रहा है कि यदि नये नियम और प्रक्रिया तय किये बिना यह नियुक्तियां हो जाती है तो यह मामला अदालत तक अवश्य पहुंचेगा।