जब मुख्यमन्त्री वित्तिय घोषणाएं कर रहे हैं तो विधायक क्षेत्र विकास निधि भी बहाल हो

Created on Monday, 20 July 2020 12:01
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल की जयराम सरकार ने कोरोना काल में बिजली की दरों का युक्तिकरण करने के नाम पर 100 करोड़ का बोझ प्रदेश की जनता पर डाला है। इस बोझ के कारण प्रदेश में बिजली के रेट बढ़ गये हैं। इसी काल में एपीएल परिवारों को सस्ते राशन के दायरे से बाहर कर दिया और बीपीएल परिवारों को मिलने वाले सस्ते राशन की मात्रा में भी कमी की है। अब बस किराये में भी बढ़ौत्तरी की जा रही है। सरकारी स्कूलों मे तीन माह की फीस आदि लेने का भी फैसला हो गया है। यह भी चर्चा है कि बिजली बोर्ड को भी प्राईवेट सैक्टर को दिया जा रहा है। उसमें शायद प्राईवेट सैक्टर बोर्ड के मौजूदा करीब नौ हजार करोड़ के कर्ज की जिम्मेदारी लेने को तैयार नही है। लेकिन यह पक्का है कि विनिवेश के नाम पर बोर्ड प्राईवेट सैक्टर को दिया जा रहा है। वैसे तो सरकार मन्त्रीमण्डल की हर बैठक में किसी
न किसी विभाग में कुछ पदों पर नयी नियुक्तियां करने के फैसले लेती रही है लेकिन इसी दौरान नागरिक आपूर्ति निगम से 76 डाटा एन्ट्री आप्रेटरों को नौकरी से भी निकाल दिया गया है। पथ परिवहन निगम और पर्यटन निगम में कई कर्मचारियों को शायद नियमित वेतन भी नही मिल पाया है। कोरोना के चलते सरकार को प्रतिमाह अनुमानित राजस्व नही मिल पा रहा है। इसी कारण से वित्त सचिव ने 29 जून को सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि वह सितम्बर माह तक एस ओ ई का 20ः से अधिक खर्च नही करेंगे। भारत सरकार ने भी सीमा से
अधिक कर्ज लेने के लिये शर्तें और कड़ी कर दी हैं। इस वस्तुस्थिति से यह आभास होता है कि सरकार की वित्तिय स्थिति ठीक नही है। लेकिन वित्त विभाग के 29 जून के बाद भी मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और उनके सहयोगी मन्त्रीयों ने जनता में जितने पैसे की घोषणाएं विभिन्न कार्यों और योजनाओं के नाम पर कर दी हैं उससे यह कतई नही लगता कि सरकार को
कोई वित्तिय कठिनाई भी है। बल्कि जब से सरकार ने यह खुलासा किया है कि उसके पास 14000 करोड़ रूपये अनसपैंट पड़े हैं तब से वित्तिय स्थिति को लेकर स्थिति एकदम अस्पष्ट सी हो गयी है। क्योंकि इसी दौरान सरकार ने कर्ज भी उठाया है और केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर के ब्यानों के मुताबिक केन्द्र से भी प्रदेश को अच्छी आर्थिक सहायता मिली है। इस तरह सरकार के पास चैदह हजार करोड़ अनस्प्पैंट पड़े हो और केन्द्र से भी पर्याप्त सहायता मिल रही हो उसे बिजली के रेट तथा बस किराये में बढ़ौत्तरी करने की आवश्यकता क्यो ंपड़नी चाहिये। लेकिन सरकार न केवल इन
सेवाओं के रेट बढ़ा रही है बल्कि अलग से प्रदेश पर कर्ज का बोझ भी बढ़ाती जा रहा है। 31 मार्च 2018 तक की कैग रिपोर्ट के मुताबिक उस समय तक सरकार का कर्जभार 52000 करोड़ से ऊपर हो गया था। यह कर्ज इस समय साठ
हजार करोड़ का आंकड़ा पार करने वाला है। सरकार केवल कार्यों के नाम पर कर्ज लेती है। लेकिन विकास के नाम पर लिये गये इस कर्ज की सही तस्वीर कैग रिपोर्ट के मुताबिक इस कर्ज में से एक भी पैसा विकास कार्यों के लिये उपलब्ध नही था। सरकार ने कर्ज का उपयोग कैसे और क्या किया है इस पर कैग की टिप्पणी चैंकाने वाली है। यही नहीं सरकार आपदा प्रबन्धन के पैसे का उपयोग भी सरकारी भवनों की रिपेयर के लिये करती रही है। आपदा प्रबन्धन के पैसे में से सरकार के पास जरूरतमंद आपदा पीड़ितों को देने के लिये पैसा नहीं था। आपदा प्रबन्धन कोष का पैसा आपदा प्रभावी पर ही खर्च किया जा सकता है। इसका कहीं और उपयोग अपराध की श्रेणी में आता है।
Interest payments as percentage of Revenue Receipts increased from
9.36 per cent of 2016-17 to 10.34 per cent in 2017-18 which shows that the interest payments on public debt was increasing resulting in less availability of funds for development activities.
42.06 to 75.94 per cent of debt receipts were used for its repayments
during 2013-18. During 2017-18, 63 per cent of borrowed funds were
used for discharging existing liabilities.
The net funds available on account of the Internal debt and loans and
advances from GoI and other obligations after providing for the interest and repayments varied between minus ` 63 crore and ` 2,201 crore during 2013-18. The net debt available to the State for the year 2017-18 was minus ` 729 crore.
The State Executive Committee was not discharging its duty of ensuring that money drawn from SDRF was being properly utilised, resulting in diversion and misutilisation of ` 2.19 crore from SDRF by Deputy Commissioners for repair and restoration of Government office and residential buildings not damaged by disaster/ calamity, while claims of 3.19 crore for immediate relief to victims of natural calamities remained pending, defeating the purpose of SDRF. कैग की इन टिप्पणीयों के परिदृश्य में सरकार के वित्तिय प्रबन्धन पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े होते हैं। वित्त विभाग के पत्र के बाद भी जितनी वित्तिय घोषणाएं मुख्यमन्त्री स्वयं कर चुके हैं उस परिप्रेक्ष में शायद अब विधायक भी अपनी क्षेत्र विकास निधि की बहाली की मांग करने लग पड़े हैं। यही नहीं वित्तिय प्रबन्धन की इन्हीं विसंगतियों के कारण सरकार से श्वेत पत्र की मांग की जाने लग पड़ी है क्योंकि जब सरकार एक ओर से तो यह दावा करे कि उसके चैदह हजार करोड़ बिना खर्चे पड़े हैं और दूसरी ओर जनता पर कीमतें बढ़ाने और कर्ज का बोझ डालने का प्रयास करे तो सही स्थिति जानने के लिये श्वेतपत्र जारी किये जाने की मांग जायज हो जाती है।