ग्राम सभा के लोग -अकुशल और उपद्रवी

शिमला/शैल। ग्रामसभा के लोग अकुशल और उपद्रवी होते हैं यह फतवा दिया है प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका संख्या 8345 में। यह याचिका पर्यावरण संर्घष समिति लिप्पा और प्रदेश पावर कारपोरेशन के बीच है। नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल ने हाईडल परियोजनाओं की स्थापना से पहले ग्राम सभा का आयोजन करके स्थानीय लोगों की सहमति लेने के निर्देश दिये हैं। अब स्थानीय लोगों के मुकाबले में परियोजना लगाने वाली कंपनी की औकात कहीं बडी होगी। इसलिये ऐसे निर्देशों को ऐसी ही धारणा से बदला जा सकता है। लेकिन हिमाचल नीति अभियान कुल्लु ने सरकार की इस धारणा पर कड़ा एतराज जताया है। प्रदेश पावर कारपोरशन का अध्यक्ष प्रदेश का मुख्य सचिव होता है।
अब अगर प्रदेश के मुख्य सचिव की आदिवासियों को लेकर अकुशल और उपद्रवी होने की धारणा हो तो उसे कौन चुनौती दे सकता है। वह भी तब जब दूसरी ओर एक बड़ी हाईडल कंपनी की प्रतिष्ठा और हितों का सवाल हो। पर्यावरण संघर्ष समिति लिप्पा बन अधिकारियों की वकालत कर रही है। उसका मानना है वन अधिकार कानून की प्रस्तावना में ही वनों के आस-पास रहने वाले लोगों को वन उपयोग अधिकार दिये हुए हैं। जन जातीय मन्त्रालय भारत सरकार ने भी इन लोगों के लिये वन उपयोग अधिकारों को पूरी स्पष्टता से दर्ज करने के निर्देश दिये हैं बल्कि इसके लिये एक निगरानी समिति गठित करने के भी निर्देश दे रखे हैं। बल्कि सरकार ने एक मामले में अदालत में शपत पत्र देकर यह कहा है कि वह वन अधिकार अधिनियम को पूरी तरह लागू कर रही है।
लिप्पा में पावर कारपोरेशन की प्रस्तावित हाईडल परियोजना का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। इसके लिये ग्राम सभा के वाकयदा प्रस्ताव पारित कर रखा है। हाईडल कंपनी के हितों की रक्षा के लिये सरकार को इन आदिवासी लोगों की ग्राम सभा को अकुशल और उपद्रवी की संज्ञा देनी पड़ गयी है। अब देखना है कि अदालत भी सरकार की इस धारणा पर मोहर लगा देती है या इनकी सहमति को अधिमान देती है।