शिमला/शैल। दिल्ली विधानसभा के चुनावों में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस को शर्मनाक हार दी है। भाजपा ने इस चुनाव में अपनी पूरी राष्ट्रीय ताकत झोंक दी थी लेकिन इसके बावजूद वह दहाई के आंकड़े तक भी नही पहुंच पायी। वहीं कांग्रेस अपने पूराने शून्य के स्कोर से इस बार भी आगे नही बढ़ पायी। प्रदेश की पूरी भाजपा सरकार मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और उनके सारे सहयोगी मन्त्री तथा नवनिर्वाचित अध्यक्ष डाॅ.राजीव बिन्दल अपनी पूरी टीम के साथ दिल्ली में बैठे हजारों हिमाचलीयों को लुभाने में लगे थे। इस नाते दिल्ली की हार का असर हिमाचल पर भी होना स्वभाविक है। क्योंकि वित्त राज्य मन्त्री अनुराग हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं और अमितशाह ने उनके ब्यान को हार का एक कारण करार दिया है। दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस की टीम भी दिल्ली में डटी थी और प्रदेश कांग्रेस के अधिकांश नेता जो अब नये बनने वाले संगठन में पद पाने के लिये प्रयासरत हैं वह अलका लांबा के प्रचार में लगे थे। लेकिन उनके प्रयासों के बावजूद अलका लांबा 48000 मतों से हार गयी। इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेतृत्व की क्षमताओं का आकलन आसानी से किया जा सकता है।
दिल्ली में कांग्रेस को हार मिली लेकिन उसके नेता पूर्व वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम ने केजरीवाल और आप को जीत की बधाई देने में जो शीघ्रता दिखाई उसको लेकर पार्टी में बड़ा बबाल खड़ा हो गया। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जारी की है। लेकिन राजनितिक विश्लेषकों की नजर में चिदम्बरम का बधाई देना एक स्वभाविक प्रतिक्रिया थी। क्योंकि चिदम्बरम ने बहुत समय उस मामले में जेल में गुजारा जिसमें उनके साथ काम कर चुके अधिकारियों को किसी ने छुआ तक नही। हिमाचल के वित्त सचिव प्रबोध सक्सेना, चिदम्बरम के खिलाफ हुई एफआईआर में नामजद हैं। अदालत में उन्होने अन्तरिम जमानत की गुहार लगाई और सीबीआई ने इसका कोई बड़ा विरोध भी नही किया। सीबीआई ने कभी उनसे पूछताछ तक नही करी जबकि चिदम्बरम और उनके तत्कालीन विभागीय सचिव ने स्पष्ट कहा था कि फाईल पर सारे दस्तावेजों का आकलन करना और उसके आधार पर सचिव तथा मन्त्री के लिये सही नोट तैयार करना जूनियर अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है। सक्सेना उन्ही अधिकारियों में से एक थे और इसी नाते सी.बी.आई. की एफआईआर में उनका नाम है जो अब अदालत में पहुंचे चालान में भी यथावत है। बल्कि इसमें हिमाचल सरकार और विशेष रूप से मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने सक्सेना में जो विश्वास व्यक्त किया उससे चिदम्बरम को भी बड़ा सहारा मिला। सीबीआई की एफआईआर और चार्जशीट झेल रहा अन्तरिम जमानत पर चला रहा अधिकारी सरकार के हर मानदण्ड में ओ डी आई श्रेणी में आता है। ऐसे अधिकारी को संवेदनशील जिम्मेदारी देने की संस्तुति नही की जाती है। प्रदेश उच्च न्यायालय इसमें कई बार सरकार को निर्देश दे चुका है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने इस सबकी परवाह किये बिना सक्सेना पर अपना विश्वास बनाये रखा तथा महत्वपूर्ण विभाग उनके हवाले रहे।
स्वभाविक है कि जहां केन्द्र सरकार चिदम्बरम के पीछे पडी थी वहीं पर जब उनके साथ सहअभियुक्त अधिकारी पर भाजपा शासित राज्य का ही मुख्यमंत्री ऐसा विश्वास बनाये रखेगा तो निश्चित रूप से यह विश्वास अपरोक्ष में चिदम्बरम के लिये क्लीन चिट बन जाता है। चर्चा है कि कांग्रेस ने अपरोक्ष में मिले इस क्लीन चिट को चुनावों में खुब भुनाया है क्योंकि इसी क्लीन चिट के आधार पर चिदम्बरम के खिलाफ बनाया गया मामला राजनीतिक प्रतिशोध की परिभाषा में आता है। क्योंकि हिमाचल सरकार और उसके मुख्यमन्त्री का यह विश्वास स्पष्ट इंगित करता है कि सक्सेना के खिलाफ बनाया गया मामला आधारहीन था। फिर इस मामले से जुड़े सक्सेना सहित किसी भी अधिकारी ने कभी यह नही कहा है कि इसमें चिदम्बरम ने उनके ऊपर कभी कोई दवाब डाला था। माना जा रहा हैं कि अब भाजपा जब इस हार का आकलन करेगी तो यह सारे मामले उसके संज्ञान में रहेंगे और उसे ज्यादती करने का एहसास भी होगा।
उधर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स का दावा करती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ रिवार्ड स्कीम जैसी योजना अधिसूचित हैं। यह सही है कि भ्रष्टाचार का अन्तिम फैसला तो अदालत से ही आयेगा। लेकिन जैसे ही ऐसा कोई मामला किसी भी माध्यम से संज्ञान में आता तो उसे जांच के लिये तुरन्त ऐजैन्सी को सौंप दिया जाता है। यह जांच शुरू होते ही संबंधित व्यक्ति ओ डी आई की श्रेणी में आ जाता है और संवदेनशील पदों से हटा दिया जाता है और ऐसा करते ही सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स का दावा दोहरा देती है। लेकिन जहां ऐसा नही हो पाता है वहीं पर सरकार की नीयत और नीति पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। आज सक्सेना के मामले में जयराम सरकार ऐसे ही द्वन्द में आ गयी है। सीधा माना जा रहा है कि सरकार इस प्रकरण में सीबीआई से सहमत नही है। सीबीआई केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी ऐजैन्सी है और जब इस ऐजैन्सी ने चिदम्बरम की गिरफ्तारी की तब प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री ने दावे किये थे कि कोई भी भ्रष्टाचारी बचने नही पायेगा। लेकिन जब इसी मामले में सहअभियुक्त बने किसी भी अधिकारी के खिलाफ सीबीआई से लेकर राज्य सरकार तक ने कोई कदम नही उठाया तो पूरा मामला स्वतः ही राजनीति से प्रेरित की श्रेणी आ गया। चुनावों में सरकार की नीयत पर हमला करने का इससे कारगार हथियार और क्या हो सकता था।