जब 118 के तहत खरीद के मामले दशकों तक लंबित रहेंगे तो उपयोग और निवेश का क्या होगा

शिमला/शैल।  प्रदेश के भूसुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत कोई भी गैर कृषक हिमाचल में सरकार की पूर्व अनुमति के बिना ज़मीन नही खरीद सकता है। सरकार प्रदेश के विकास के लिये निवेश जुटाने की नीयत से इन खरीद नियमों में समय समय पर संशोधन करती रही है। प्रदेश में रही हर सरकार ऐसा करती रही है। जहां सरकारें इसके खरीद नियमों का सरलीकरण करती रही हैं वहीं पर इसके प्रावधानों की वाॅलेशन करके इसमें खरीद बेच होने के आरोप भी लगते आये हैं इन आरोपों पर एसएस सिद्धु, जस्टिस आरएस ठाकुर और जस्टिस डी.पी सूद की अध्यक्षता में तीन बार जांच कमेटीयां भी बैठ चुकी हैं और इन कमेटीयों ने हजारों की संख्या में वाॅयलेशन के मामले अपनी रिपोर्टों में सामने भी रखे हैं। कुल्लु, मण्डी और सोलन में तो कुछ जिलाधीश रहे अधिकारियों की अपनी खरीद पर भी वाॅलेशन के आरोप लग चुके हैं जिलाधीशों का जिक्र इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि 118 की अनुमति की फाईल ही जिलाधीश से शुरू होती है। इन जिलाधीशों का नाम धूमल कार्यकाल में विधानसभा में आये एक सवाल के जवाब में रखे गये 400 पृष्ठों के विवरण में उपलब्ध है।
धारा 118 के तहत अनुमति में यह प्रावधान है कि ज़मीन बेचने वाला ज़मीन बेचने के बाद स्वयं भूमिहीन तो नही हो जाता है। खरीद की अनुमति मकान बनाने, दुकान बनाने, उद्योग लगाने आदि के लिये दी जाती है। कृषि कार्य के लिये भी एक निश्चित सीमा तक अनुमति का प्रावधान है। पालमपुर के अनुप दत्ता ने इसी प्रावधान के वाॅयलेशन का आरोप लगाते हुए कुछ अधिकारियों के खिलाफ कारवाई किये जाने की मांग की है। धारा 118 के तहत मकान बनाने के लिये कितनी बार अनुमति ली जा सकती है इसको लेकर स्पष्ट रूप से कुछ नही कहा गया है और इसी अस्पष्टता का सहारा लेकर कई बड़े अधिकारियों ने एक से अधिक बार ऐसी अनुमति ली हैं। धारा 118 के तहत अुनमति लेकर जमीन खरीद कर यदि उसी जमीन को बेच देना हो तो इसके लिये भी अनुमति लेनी होती है।
धारा 118 के तहत अनुमति लेने के बाद उस जमीन पर दो वर्ष के भीतर निर्माण करना अनिवार्य होता है। यदि किन्ही कारणों से ऐसा न हो पाये तो इसके लिये एक वर्ष और की अनुमति का भी प्रावधान है। यदि इस अवधि में भी जीमन को वांच्छित उद्देश्य के उपयोग में न लाया जा सके तो ऐसी जमीन सरकार में विहित हो जायेगी और इसके लिये कोई भी मुआवजा आदि नही मिलेगा यह भी प्रावधान किया हुआ है। धारा 118 के तहत खरीद की अनुमति से लेकर उसकी वाॅयलेशन तक के हर मामले की पहली जानकारी संबंधित जिलाधीश के पास ही आती है। इसलिये इसका हर मामला अदालत में स्टेट बनाम अमुक से ही चलता है। इसके लिये पहली अदालत भी जिलाधीश की ही होती है। इसी के बाद मण्डलायुक्त और एफ सी अपील की अदालतों में यह मामलें पहुंचते हैं । इस समय प्रदेश में 118 की वाॅलेशन के 295 मामलें जिलाधीशों से लेकर एफ सी अपील की अदालतों में लंबित हैं। कई मामले तो वर्ष 2000 से लंबित चल रहे हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस संपति की खरीद के मामले दशकों तक अदालतों में लंबित रहेंगे उसका उपयोग क्या हो रहा होगा। वाॅयलेशन का जो रिकार्ड सामने आया है उसमें जिलाधीश मण्डी के पास 24 मामले दर्ज हैं। यह सभी मामले 2018 और 2019 में आये हैं। सभी स्टेट बनाम अमुक-अमुक हैं अर्थात जिलाधीश द्वारा ही दायर किये गये हैं। इसमें यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब 118 में अनुमति लेकर दो वर्ष के भीतर उसको उपयोग में लाना है तो क्या मण्डी में 118 के प्रावधानों के अनुसार खरीद की अनुमतियां नही दी जा रही हैं। क्योंकि जो मामला 2019 में अदालत में आ रहा है वह खरीद भी अभी ही हुई होगी। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या संवद्ध प्रशासन को 118 के प्रावधानों के प्रति अपडेट करने की आवश्यकता है क्योंकि इसका असर अन्ततः निवेश के अनुमानों पर पड़ेगा।