शिमला/शैल। केन्द्र की सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे वीरभद्र परिवार की मुश्किलें इन मामलों में कितनी बढे़ंगी इसका सही पता तो आने वाले दिनों में ही लगेगा। क्योंकि सीबीआई तो इसमें चालान दायर कर चुकी है लेकिन ईडी ने सहअभियुक्त आनन्द चौहान की गिरफ्तारी के बाद उनके खिलाफ जब चालान दायर किया तो उस समय इस मामले के मुख्य अभियुक्त वीरभद्र के खिलाफ चालान नही डाला। इस पर अदालत ने ईडी को इस मामले में जल्द अनुपूरक चालान डालने के निर्देश दिये। इन निर्देशों के बाद चार बार चालान के लिये वक्त मांगने के बाद भी जब ईडी वीरभद्र के खिलाफ चालान नही डाल पायी तब अदालत ने आनन्द चौहान को ज़मानत दे दी। यह ज़मानत मिलने के बाद अन्नतः ईडी को वीरभद्र के खिलाफ चालान दायर करना ही पड़ा लेकिन जब वीरभद्र, प्रतिभा सिंह और चार अन्य के खिलाफ चालान अदालत में आया तो उसमे वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर का नाम नही था। जबकि ईडी ने जो पहला अटैचमैन्ट आर्डर 23 मार्च 2016 को जारी किया था उसमें स्पष्ट लिखा था कि अभी वक्कामुल्ला को लेकर जांच पूरी नही हुई है। ईडी जब वीरभद्र के खिलाफ चालान डालने के लिये बार -बार और समय मांग रही थी उस दौरान प्रदेश विधानसभा के चुनाव चल रहे थे। चुनाव खत्म होने के बाद वीरभद्र के खिलाफ चालान दायर हुआ है। इसी दौरान जब वीरभद्र सिंह की बेटी गुज़रात हाईकोर्ट से चीफ बनकर त्रिपुरा चली गयी तो उसके बाद इसी मामले के सहअभियुक्त वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को भी ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। वह अभी तक हिरासत में ही है। इस मामले में अन्य सहअभियुक्तों और मुख्य अभियुक्तों की भी गिरफ्तारी होती है या नहीं इसको लेकर अभी अनिश्चितता बनी हुई है।
स्मरणीय है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ यह मामले 2015 में दर्ज हुए थे। वीरभद्र इनके लिये प्रेम कुमार धूमल, अनुराग ठाकुर और अरूण जेटली को जिम्मेदार ठहराता रहा है। वीरभद्र ने इन लोगों के खिलाफ मानहानि का मामला तक दायर किया था लेकिन बाद में जेटली के खिलाफ वापिस भी ले लिया था। इन मामलो में वीरभद्र या परिवार के किसी अन्य सदस्य की कभी कोई गिरफ्तारी नही हुई है जबकि आनन्द चौहान और अब वक्कामुल्ला की गिरफ्तारी पर यह सवाल उठे हैं कि मुख्य अभियुक्त को छोड़ सहअभियुक्त की गिरफ्तारी क्यों हो रही है। इस पूरे मामले में यह भी स्मरणीय है कि जब से यह मामले दर्ज हुए हैं तब से कांग्रेस के अन्दर वीरभद्र ने सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग उठा रखी है। इन्ही मामलों के बाद वीरभद्र ने अपने नाम से ब्रिगेड का गठन करवाया। सुक्खु को हटाने की मांग पर ही चुनावोें मे पूरी कमान अपने हाथ में ली। लेकिन पार्टी को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा क्योंकि वीरभद्र के इस पूरे कार्यकाल में उनका सारा समय दिल्ली में अपने केसों की पैरवी में ही निकल गया। पूरे कार्यकाल में वह प्रदेश में कुछ ठोस नही कर पाये। संगठन में भी जब सत्ता संभालते ही वह निगमो/बोर्डों की ताजपोशीयां के मामलेे में विवादित हुए तब उन्होने अधिकांश विधायकों के क्षेत्रों में अपने लोगों को ताजपोशीयां देकर समानान्तर सत्ता केन्द्र खड़े कर दिये। विधान चुनावों में अधिकांश में इन समानान्तर सत्ता केन्द्र बने नेताओं ने अधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया है जिसके परिणामस्वरूप पार्टी हार गयी।
लेकिन अब पार्टी के हारने के बावजूद वीरभद्र ने सुक्खु को हटाने की मांग चालू रखी है। अब इस मांग को और हवा देते हुए पार्टी सम्मेलन का ही बायकाट कर दिया। वीरभद्र और उनके विधायक बेटे के साथ ही वीरभद्र खेमे के माने जाने वाले विधायकों तथा पूर्व विधायकों से भी इस पार्टीे सम्मेलन का बहिष्कार करवा दिया। अब वीरभद्र बनाम सुक्खु विवाद को जितनी हवा वीरभद्र ने दे दी है उसे देखते हुए विश्लेष्कों के लिये यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि वीरभद्र ऐसा कर क्यों रहे हैं। अभी हाईकमान ने वीरभद्र को केन्द्र में भी संगठन की किसी भी कमेटी में कोई जगह नही दी है। प्रदेश में व्यवहारिक स्थिति यह बनी हुई है कि यदि आज संगठन की बागडोर वीरभद्र के हाथ में दे दी जाये तो भी कोई लाभ होने वाला नही है। क्योंकि इस कार्यकाल में उनकी उपलब्धि के नाम पर प्रदेश में कोई भी बड़ा निवेशक नही आया। जल विद्युत परियोजनाएं लेने के लिये भी कोई नही आया। उल्टे उनके कार्यकाल में प्रदेश के कर्जभार में ही बढ़ौत्तरी हुई है। उनके कार्यकाल में क्या विकास हुआ है इसका आकलन इसी से किया जा सकता है कि उन्होने अपने क्षेत्र मे डाक्टरों और अध्यापकों की कमी का रोना शुरू कर दिया जबकि यह सवाल तो उन्ही से पूछा जाना चाहिये था कि यह कमीयां क्यों है। कुल मिलाकर स्थिति यह बनती जा रही है कि जिस अनुपात में मोेदी की विश्वसनीयता में कमी आ रही है और कांग्रेस आक्रामक हो रही है उसी अनुपात में वीरभद्र प्रदेश कांग्रेस को कमज़ोर करने पर आमादा हो गये हैं। ऐसा लगने लगा है कि वही वीरभद्र किसी योजना के तहत कांग्रेस को कमज़ोर करक भाजपा को लाभ देने का जुगाड़ कर रहे हैं बल्कि अब तो विक्रमादित्य की होली के अवसर पर आयी एक फेसबुक पोस्ट में जब उन्होने भाजपा में शामिल होने की बात की तो उस पर अब यकीन करने जैसी स्थिति इस पार्टी सम्मेलन का बायकाट करने से बनती जा रही है।