शिमला/शैल। क्रिकेट जितना लोकप्रिय खेल बन चुका है इसमें उसी अनुपात में सट्टेबाजी खिलाडीयों की निलामी, मैच फिक्सिंग जैसे अवगुण भी आ चुके हैं। इन सबके साथ इस खेल का नियन्त्रण एकदम राजनेताओं के कब्जे में चला गया है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि आज हर खेल पर राजनेताओं का कब्जा हो गया है। इसमें हर छोटा- बड़ा राजनीतिक दल एक बराबर संलिप्त है। इस संलिप्ंतता का परिणाम हैं कि संसद से लेकर राज्य विधान सभाओं तक राजनीतिक दल खिलाड़ियों को टिकट देकर चुनावों में उतार रहे हैं। खेलों पर राजनेताओं का कितना नियन्त्रण हो इसको लेकर एक लम्बे अरसेे से चिन्ता और चिन्तन चल रहा है। इसी के परिणामस्वरूप क्रिकेट को लेकर मुदगल केमटी और फिर लोढ़ा कमेटी का गठन हुआ। आज सर्वोच्च न्यायालय लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को अमली शक्ल देेने के लिये पूरीे तरह प्रतिबद्ध नजर आ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रयास पर देश के किसी भी कोने से किसी भी खिलाडी या खेल प्रेमी ने कोई एतराज नहीं उठाया है।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रयास पर देश में क्रिकेट की सर्वोच्च संचालन संस्था बीसीसीआई ने जिस तरह का स्टैण्ड लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों पर सर्वोच्च अदालत के सामने लिया है उससे सर्वोच्च न्यायालय और बीसीसी आई में टकराव की स्थिति बेहद संगीन हो गयी है। क्योंकि बीसीसी आई ने शपथ पत्र के माध्यम से जो कुछ सर्वोच्च न्यायालय में कहा है। वह पूरी तरह तथ्यों के विपरीत गंभीर गल्तब्यानबाजी बन गया है। यह शपथ पत्र सर्वोच्च न्यायालय में बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के हस्ताक्षर से दाखिल हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस गल्तब्यानी का कड़ा संज्ञान लिया है। इसके लिये अनुराग ठाकुर को सर्वोच्च न्यायालय से व्यक्तिगत स्तर पर बिना शर्त माफी मांगने की नौबत आ गयी है अन्यथा इसका परिणाम गंभीर हो सकता है। क्योंकि स्टैण्ड अलग होना और तथ्यों की गलत जानकारी देना दो अलग-अलग विषय है। यह मामला तथ्यों की गलत जानकारी का बन गया है। इसमें माफी मांग कर वह बच जायेंगे लेकिन उनके विरोधी इस माफी का पूरा-पूरा राजनीतिक लाभ उठायेंगे।
बल्कि अब जिस ढंग से अमित शाह ने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति तथा किसान मोर्चाओं के अध्यक्ष बदले हैं उन्ही के साथ युवा मोर्चा अध्यक्ष भी बदला गया है। लेकिन अनुराग के विरोधी इस बदलाव को भी राजनीति के आईने से देख रहे हैं। क्योंकि अभी जब अमितशाह पार्टी के त्रिदेव सम्मेलन के लिये सोलन आये थे तब उन्हें मंच से भाषण का अवसर नही मिल पाया था। इस अवसर न मिलने और उसके चार दिन बाद ही युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद से उस समय छुट्टी हो जाना जब वह सर्वोच्च न्यायालय की एक प्रकार से प्रताड़ना झेल रहे थे। बीसीसीआई का शपथ पत्रा तथ्यों की गल्तब्यानी कैसे बन गया इसके लिये क्रिकेट बोर्ड के अन्दर क्या घटा है या फिर यह बोर्ड के किसी अधिकारी की गल्ती से हो गया है यह सारेे खुलासे तो आगे चलकर बाहर आयेंगे। लेकिन इस समय इसकी गाज अकेले अनुराग को ही झेलनी होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने क्रिकेट को लेकर लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों पर जिस तरह के रूख के संकेत दिये हैं। उससे स्पष्ट हो गया है कि क्रिकेट के सर्वोच्च प्रबन्धन में अब बदलाव अश्वय देखने को मिलेगा। सर्वोच्च न्यायालय के संकेत को समझते हुए अब शरद पवार ने महाराष्ट्र क्रिकेट बोर्ड से त्यागपत्र दे दिया है। ऐसे में अब यह माना जा रहा है कि अभी अनुराग के लिये भी क्रिकेट या राजनीति में से एक का चयन करने की बाध्यता आ जायेगी। राजनीतिक विश्लेष्कों के मुताबिक क्रिकेट को राजनेताओं के दखल से मुक्त करने की जो कवायद अब शुरू हो गयी है इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसमें खेल और राजनीति दोनों का साथ-साथ चलना संभव नही रह पायेगा। ऐसे में आज यदि अनुराग प्रदेश की राजनीति की ओर रूख करने का फैसला लेते हैं तोे जो अनुभव इस समय उनकेे पास है उससे वहअपने विरोधियों पर भारी पड़ सकते हैं और राजनीति में एक लम्बी पारी खेल सकते हैं।
इस समय अनुराग की इन परिस्थितियों पर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष मुख्यमन्त्री के बेटे विक्रमादित्य ने जिस ढ़ंग से आक्रामकता दिखायी है उसके जवाब में भाजपा और अनुराग के शुभ चिन्तक कमजोर सिद्ध हुए हैं। विक्रमादित्य की इस आक्रामकता को भाजपा के भीतर बैठे अनुराग विरोधियों का भी अपरोक्ष समर्थन हालिस हो सकता है। इस समय यदि अनुराग इस उभरती आक्रामकता का उसी स्वर में जवाब न दे पायेे तोे आने वाले समय में कठिनाईयां बढ़ सकती है।