शिमला/शैल। भू अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचल और हिमाचली गैर कृषक प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना भूमि नहीं खरीद सकता है। लेकिन इसी अधिनियम की धारा 2 की उपधाराओं को 2, 4, 5 और 10 में कृषक कौन है स्वयं काश्त क्या है परिवार में कौन कौन आता है और भू मालिक कौन है यह सब परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक यह है It was clarified vide earlier clarification dated 30th April, 2002 that " Under Section 2(2) agriculturist is a person who cultivates land personally in an estate situated in Himachal Pradesh and in terms of section 2 (4) (iii) "to cultivate personally'' also includes by the Labour of any member of the family. In terms of section 2(5) family 'means husband his wife and their children including step or adopted children etc.' The word " Land owner" as defined in section 2(10) means a person defined as such in HP Land Revenue Act, 1954 and shall include the predecessor or successor in interest of the land owner from the combined reading of Sub-sections (2) ,(4), (5) and (10) of section 2 of the Act ibid, it is clear that a husband who is successor in interest of his wife and being member of the family also falls in the expression "to cultivate personally" is an agriculturist for the purpose of section 118 of the Act in question and no permission a s required by saidsection is necessary.
इसके अनुसार पति, पत्नी में से यदि एक हिमाचली और कृषक हैं और दूसरा गैर हिमाचली है तो परिवार की परिभाषा के तहत गैर हिमाचली को भी हिमाचली कृषक होने का दर्जा हासिल हो जायेगा और वह भी सरकार के अनुमति के बिना प्रेदश में जमीन खरीदने का हकदार हो जायेगा। लेकिन बहुत सारे राजस्व अधिकारी इस संद्धर्भ में पूरी तरह स्पष्ट नही थे और ऐसे मामले स्पष्टीकरण के लिये सरकार को भेज दिये जाते थे। ऐसे मामलों के आने पर सरकार में इस पर विचार हुआ। सरकार में हुए विस्तृत विचार विर्मश के बाद 30 अप्रैल 2002 को इस संद्धर्भ में स्पष्टीकरण जारी किया गया और कहा गया कि ऐसे मामलों में सरकार से धारा 118 के तहत अनुमति लेने की आवश्यकता नही है। लेकिन 2002 में जारी हुए इस स्पष्टीकरण को 24.5.2010 को यह कहकर वापिस ले लिया गया कि इसका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है।
इसके बाद इस वर्ष फिर इस पर यह कहकर पुनर्विचार हुआ कि 24.5.2010 को 2002 में जारी हुए स्पष्टीकरण को वापिस लेने के बाद भी ऐसे मामले सरकार के पास आ रहे हैं। इस पर सरकार में विचार हुआ और विधि विभाग से भी राय ली गयी। क्योंकि सरकार के संज्ञान में ऐसे मामले आये थे जहां पर हिमाचली कृषक लड़कियों के साथ गैर हिमाचली ने शादी की और परिवार की परिभाषा के आधार पर अपने नाम पर जमीन खरीद ली। ऐसी जमीन खरीद से यह भी हिमाचली कृषक हो गये। लेकिन कुछ समय बाद तलाक ले लिया और तलाक लेने के बाद भी हिमाचली कृषक बने रहे। विधि विभाग की राय और सरकार में हुए विचार विमर्श के बाद 20.5.2016 को फिर 2002 में जारी हुए स्पष्टीकरण को यथास्थिति बनाए रखने का स्पष्टीकरण जारी हो गया। 20 मई को जारी हुए स्पष्टीकरण को 8 सितम्बर को फिर वापिस ले लिया गया है। लेकिन इस बार जो पत्र जारी हुआ है उसमें इसे Kept in abeyance रखा गया है जबकि पहले पूरी तरह withdraw किया जाता था।
टेनेन्सी एंवम भू-सुधार अधिनियम 1972 प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित है। इसमें दर्ज सारी परिभाषाएं सदन से पारित है इनमें कोई भी संशोधन सदन की अनूमति के बिना नही हो सकता। परिवार की परिभाषा में पति-पत्नी को बराबर के अधिकार प्राप्त है। उसमें हिमाचली या गैर हिमाचली, कृषक या गैर कृषक का कोई अलग से प्रावधान नही किया गया है। प्रदेश में हजारों ऐसे लोग है जो कई पीढीयों से प्रदेश में रह रहे हैं। लेकिन उन्हें कृषक का दर्जा हासिल नही है वह सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकते हैं जिन्हे अब प्रदेश उच्च न्यायालय ने राहत देते हुए सरकार से इस अधिनियम में 90 दिनों के भीतर संशोधन करने को कहा है। ऐसे में जब सरकार के सामने परिवार को लेकर शादी के माध्यम से कृषक होने और फिर तलाक होने के मामले सामने आये हैं तो उसमें भी सरकार को संशोधन लाकर ऐसे लोगों से कृषक का अधिकार वापिस लेने का प्रावधान करना चाहिये। अन्यथा ऐसे स्पष्टीकरण जारी करने और फिर उन्हें वापिस लेने से समस्या का हल नही निकाला जा सकता है।