एचपीसीए प्रकरण में एक और एफ आई आर तथा चालान हुए रद्द-वीरभद्र सरकार को फिर झटका

Created on Monday, 08 August 2016 14:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष सांसद अनुराग ठाकुर की एचपीसीए को प्रदेश सरकार ने वर्ष 2002 में धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम तथा 2009 में खिलाडीयों को आवासीय सुविधा तैयार करने के लिये विलेज काॅमन लैण्ड आवंटित की थी। उस आवंटन के बाद स्टेडियम का निमार्ण हुआ। फिर पैब्लियन के नाम से पांच सितारा आवासीय सुविधा का निमार्ण हुआ और 2012 में इस आवासीय निमार्ण के कर्मशियल यूज की अनुमति भी एचपीसीए को दे दी गयी। इसी बीच एचपीसीए ने अपने को सोसायटी से कंपनी में तबदील कर लिया। एचपीसीए को दोनों मर्तबा जमीन सोसायटी के नाम पर लगभग मुफ्त में मिली थी। होटल दी पैब्लियन का कर्मशियल यूज भी सोसायटी के नाम पर मिला था। सहकारिता नियमों के मुताबिक सोसायटी के नाम पर सरकार से ली गयी सुविधाऐं कंपनी बनाये जाने से पहले सरकार को वापिस की जानी चाहिए थी जो कि नही हुई। यही नही सटेडियम के साथ ही राजकीय महाविद्यायल धर्मशाला का एक दो मंजिला आवासीय होस्टल था जो गिरा दिया गया है और उसकी जमीन पर एचपीसीए द्वारा नाजायज कब्जे का आरोप है। इस क्रिकेट ऐसोसियेशन को दी गयी जमीन पर सैंकडों पेड़ भी थे जिन्हें अवैध रूप से काट लिये जाने का भी आरोप है। एचपीसीए पर इस तरह की अवैधताओं के आरोपों को लेकर धर्मशाला की अदालत में सीआरपीसी की धारा 156;3द्ध के तहत मामला दर्ज कर जांच करने की गुहार भी लगायी गयी थी। जिसके परिणाम स्वरूप इस समय एचपीसीए के खिलाफ सोसायटी से कंपनी बनाये जाने काॅलिज के आवासीय परिसर को गिरा कर उस पर अवैध कब्जा करने तथा आवंटित जमीन पर से सैकड़ों पेड़ों को अवैध रूप से काटने के आरोपों को लेकर अलग अलग मामले 2013 से चल रहे हैं।
इन्ही आरोपों में से राजकीय काॅलिज धर्मशाला के आवासीय परिसर की भूमि पर एचपीसीए के कथित अवैध कब्जे की पुष्टि करने के लिये 3-10-13 को विजिलैन्स ने डीसी कांगडा को इस जमीन की डिमार्केशन करके रिपोर्ट सौपने का आग्रह किया। इस पर 14-11-13 को तहसीलदार धर्मशाला ने डिमार्केशन करके अपनी रिपोर्ट सौंप दी। जब तहसीलदार की रिपोर्ट विजिलैन्स में 16-11-13 को पहुंची तो उसमें कई खसरा नम्बरो में करीब 2100 वर्ग मीटर भूमि पर अवैध कब्जा होने का खुलासा था। इस पर एडीजीपी विजिलैन्स ने 20-2-14 को एससी धर्मशाला को पत्रा भेजकर इस अवैध को लेकर मामला दर्ज करके जांच करने का आग्रह किया जिस पर 8-4-14 को पुलिस थाना धर्मशाला में आईपीसी की धारा 441 और 447/34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया। मामला दर्ज होने के बाद सीजेएम धर्मशाला में चालान पेश हुआ।
इस चालान पर अदालत ने 17-11-15 और 21-11-15 को इसमें नामजद अभियुक्तों अनुराग ठाकुर और विशाला मरवाहा को अदालत में तलबी के आदेश भेज दिये। इन आदेशों और इस सं(र्भ में दर्ज एफआईआर को रद्द किये जाने की गुहार प्रदेश उच्च न्यायालय में लगाई गयी जिसे स्वीकारते हुए जस्टिस राजीव शर्मा ने 2अगस्त को सुनाये फैसले में इसमें दर्ज एफआईआर, पेश हुए चालान तथा तलवी आदेशों को निरस्त कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने पूरे मामले में तहसीलदार की डिमार्केशन रिपोर्ट और एफआईआर में लगायी गयी धाराओं 441 और 447 के प्रावधानों को अपने फैसले का आधार बनाया है। डिमार्केशन के लिये एक तय प्रक्रिया है जिसके तहत संद्धर्भित जमीन के साथ लगने वाली हर जमीन के मालिकों को इसमें तलव किया जाता है। उनका पक्ष और एतराज सुने जाते हैं । जिसके खिलाफ डिमार्केशन हो रही है और जो डिमार्केशन करवा रहा है सबका इसमें शामिल होना तथा सहमत होना अनविार्य है। यदि कोई नही आता है तो उसका अलग से उल्लेख किया जाता है। लेकिन इस डिमार्केशन में तहसीलदार ने किसी भी संवद्ध पक्ष को इसमें बुलाया ही नही। फिर जिन खसरा नम्बरों की उसने पैमाईस करके अवैध कब्जा निकाला बाद में अपने 161 के ब्यान में कहा कि सही खसरा नम्बर और हंै। रिपोर्ट मांगी जाती है तो उसमें किसी संव( पक्ष को बुलाने की अनिवार्यता नही हैं के साथ अवैध कब्जे को लेकर धारा 163 के तहत कारवाई करनी होती है। इसमें कब्जा होने का आरोप था लेकिन शिक्षा विभाग ने अपने तौर पर इसमें कोई कारवाई नही की पुलिस ने धारा 441/ 34 के तहत मामला दर्ज किया। अदालत के मुताबिक इन धाराओं के अपेक्षित मानदण्ड इसमें पूरे ही नही होते। जब यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंचा तब अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह का इसमें जबाब आया है। अदालत का कहना है कि यह जबाब याचिका में उठाये गये बिन्दुओं से एकदम हटकर हैं। स्मरणीय है कि जब यह मामला उच्च न्यायालय में पहंुचा तब गृह और शिक्षा विभाग के सचिव की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति पीसी धीमान के पास थी। लेकिन उन्होने उस समय भी इस मामले के सारे पक्षों की ओर ध्यान नही दिया जबकि जमीन शिक्षा विभाग की थी और मूल मामले मंे वह पहले ही अभियुक्त नामजद हैं।
जब इस मामले का चालान तैयार हुआ तब अभियोजन पक्ष ने भी इन बिन्दुओं की ओर ध्यान नही दिया। तहसीलदार ने डिमार्केशन के लिये तय प्रक्रिया पर अमल क्यों नही किया? स्टेडियम और होटल निमार्ण टीसीपी द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार हुआ कहा गया है। टीसीपी के संज्ञान में नाजायज कब्जे की बात क्यों नही आयी? जिस गुरमीत की प्राईवेट जमीन पर भी अवैध कब्जा होने का जिक्र तहसीलदार की रिपोर्ट में आया है। उसके ध्यान में यह तथ्य क्यों नही आया या वह इस पर खामोश क्यों बैठा रहा ।
तहसीलदार की रिपोर्ट में आया है कि एचपीसीए के स्टेडियम के लिये 49118.25 वर्गमीटर भूमि आवंटित हुई थी जबकि उसके कब्जे में केवल 45959.68 वर्गमीटर भूमि है तो फिर उसकी शेष आंवटित भूमि कंहा है। ऐसे बहुत सारे बिन्दु इस फैसले के बाद सामने आये हैं जो कि वीरभद्र प्रशासन की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खडे़ करते हैं।