नई दिल्ली।। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय परिषद की बैठक में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को अति उत्साह और अति आत्मविश्वास से बचने की नसीहत दी।
आडवाणी ने कहा कि 2004 में पार्टी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई थी। उधर सुषमा स्वराज ने भी पार्टी को उन इलाकों में मजबूती के लिए काम करने की सलाह दी जहां उसका वजूद नहीं है।
इसी बीच कांग्रेस ने जमकर चुटकी ली और कहा कि बीजेपी हमेशा से पीएम इन वेटिंग देती रही है।
बीजेपी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। पार्टी की दिल्ली में हुई तीन दिवसीय बैठक के बाद कार्यकर्ताओं को मिशन 272 यानी लोकसभा में पूर्ण बहुमत दिलाने के लिए अपने अपने इलाके में जाकर वोटर को जागरूक करने का निर्देश दिया गया। वहीं, बैठक का समापन भाषण देते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता लालृकष्ण आडवाणी ने अति आत्मविश्वास से बचने की सलाह भी दे डाली।
आडवाणी ने कहा कि कांग्रेस में घोर निराशा है, लेकिन फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि हम 2004 में इसलिए रह गए क्योंकि हम अतिआत्मविश्वास में थे, दृढ़संकल्प तो रहे लेकिन अतिआत्मविश्वास में नहीं रहना।
जाहिर है कि आडवाणी के दिल में अब तक साल 2004 की टीस बाकी है। सत्तानशी बीजेपी इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ चुनाव मैदान में थी।
पार्टी का दावा था कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान हुए विकास कार्यों के बूते वो आसानी से सरकार बना लेंगे। लेकिन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और यूपीए की सरकार बनी।
इस बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाकर पार्टी ऐसे ही उत्साह में नजर आ रही है। जाहिर है आडवाणी पार्टी को चेता रहे हैं। आडवाणी की इस सलाह को पार्टी नेता और कार्यकर्ता कितना गंभीरता से लेंगे, ये कहना तो मुश्किल है। लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर पीएम इन वेटिंग के मुद्दे पर चुटकी ली।
केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी की बौखलाहट इस बात से प्रतीत होती है कि बीजेपी केवल पीएम के उम्मीदवार देती है, सशक्त प्रधानमंत्री कांग्रेस देती है। अगर लोगों का आशीर्वाद मिला, जैसा कि भरोसा है तो इस बार भी कांग्रेस और यूपीए देश को सशक्त पीएम देंगे।
आडवाणी की चिंता नाजायज नहीं है। पार्टी भले ही बहुमत पाने का दावा करें, लेकिन उसे मालूम है कि देश के कई इलाकों में पार्टी का वजूद ही नहीं है।
जमीनी हकीकत पार्टी के 272 के सपने पर ग्रहण लगा सकते हैं। इसमें अलग अलग राज्यों की सियासत और देश भर में मोदी की स्वीकार्यता को भी परखा जाना है।
अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में एनडीए के पास घटक दलों की कमी नहीं थी। लेकिन आज बीजेपी साथियों की कमी से भी जूझ रही है। एक-एक कर कई सहयोगी बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं। आम चुनाव के बाद नए सहयोगी कैसे और क्यों जुड़ेंगे ये भी भविष्य का सवाल है।