क्या भाजपा सुक्खू की चुनौति के जवाब में ई.डी. में दस्तक देगी?

Created on Wednesday, 27 August 2025 17:16
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या भाजपा सुक्खू सरकार के प्रति ईमानदार, गंभीरता से आक्रामक है या उसकी आक्रामकता एक राजनीतिक रस्म अदायगी भर है? यह सवाल इसलिये उठ रहा है कि सुक्खू सरकार जिस तरह से कर्ज पर आश्रित हो गयी है वह भविष्य के लिये एक बड़े संकट का न्योता साबित होगी। क्योंकि बढ़ते कर्ज का सबसे पहला और बड़ा असर यह होता है कि सरकार को अपने प्रतिबद्ध खर्चों में सबसे पहले कटौती करनी पड़ती है। इन प्रतिबद्ध खर्चों में सबसे पहले कर्मचारी वर्ग आता है। उसमें स्थायी नियमित रोजगार को कम करके अस्थायी और आउटसोर्स का सहारा लेना पड़ता है। जब से प्रदेश में आउटसोर्स का चलन शुरू हुआ है तभी से उसी अनुपात में नियमित रोजगार में कटौती हुई है। बढ़ते कर्ज का दूसरा प्रभाव जन सुविधाओं पर पड़ता है। सरकार नियमित सुविधाओं से कर्ज के अनुपात में ही पीछे हटती जाती है। इस सरकार पर कर्ज पर आश्रित होने का जितना आरोप लगता जा रहा है उसी अनुपात में यह सरकार पूर्व सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाती जा रही है। लेकिन पूर्व के सरकार के नेतृत्व द्वारा इस कुप्रबंधन का कोई कड़ा जवाब नहीं दिया जा रहा है। इस सरकार पर विपक्ष भ्रष्टाचार के जितने आरोप लगा रहा है वह सब अपने में गंभीर हैं। लेकिन उन आरोपों पर अब तक एक भी आरोप पत्र विधिवत राज्यपाल को सौंपकर किसी जांच की मांग नहीं की गयी है। बल्कि जो आरोप देहरा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे होशियार सिंह ने वाकायदा विधिवत शिकायत के रूप में महामहिम राज्यपाल को सौंपे हैं उनकी जांच की मांग को लेकर पूरी भाजपा खामोश खड़ी है और राजभवन भी शायद उस शिकायत को भूल ही गया है। बल्कि एचआरटीसी कि ई-वर्कशॉप को लेकर नादौन में खरीदी गई जमीन में घपला होने के जो आरोप विधायक सुधीर शर्मा ने लगाये थे उन आरोपों पर भी पूरी भाजपा ने मौन साध लिया है। ऐसे और भी कई उदाहरण है जो भाजपा नेतृत्व से इस दिशा में जवाब मांगते हैं।
इस परिदृश्य में भाजपा की आक्रामकता को लेकर आम आदमी भी इसे एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं है। भाजपा की इस नीयत और नीति पर अब कुछ सवाल उठने लग पड़े हैं। क्योंकि भाजपा ने राज्यसभा चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवार को विजयी बना लिया था उस समय भाजपा पर धन बल के सहारे सरकार गिराने का आरोप लगा था। इस आरोप के बाद कांग्रेस और भाजपा में जिस तरह के आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चला और अदालत तक भी पहुंच गया उसका अंतिम परिणाम कोई सामने नहीं आया है। यह सही है कि इस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है। इसी नाजुकता के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का अभी तक विकल्प नहीं ला पायी है। यह माना जा रहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय परिदृश्य का असर प्रदेश पर भी पड़ रहा है। प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी में क्षेत्रीय असन्तुलन के आरोप मुखरित होने लग पड़े हैं। इसलिये प्रदेश सरकार के प्रति भाजपा की आक्रामकता पर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। बल्कि यह कहा जाने लगा है की मुख्यमंत्री सुक्खू की सियासी चालों ने कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को पंगु बना दिया है और भ्रष्टाचार के आरोपों पर ई.डी. में जाने की चुनौती दे रहे हैं।