भट्टाकुफर मारपीट प्रकरण पर आयी प्रतिक्रियाओं से उलझा सारा मामला

Created on Tuesday, 08 July 2025 18:18
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। शिमला के भट्टाकुफर में एक पांच मंजिला मकान बारिश में गिर जाने के बाद जो राजनीतिक और प्रशासनिक परिस्थितियां निर्मित हुई है उन्होंने न केवल हिमाचल बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। क्योंकि इस मकान के गिरने का कारण राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण की कार्यशैली और कार्य संस्कृति को माना गया है। यहां पर फोरलेन सड़क के निर्माण के लिये यह प्राधिकरण काम करवा रहा था जिसमें शायद पहाड़ की कटिंग गलत तरीके से की गयी थी जिसके कारण और भी कई भवन खतरे की जद में आ गये हैं। यह क्षेत्र कसुम्पटी विधानसभा में आता है और यहां के विधायक प्रदेश के पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री भी हैं। स्वभाविक है कि हर जन प्रतिनिधि ऐसी आपदा में अपने मतदाताओं के संकट में उनके साथ खड़ा होता है और प्रभावित लोग भी सबसे पहले उसी से संपर्क करते हैं। इस स्वभाविक स्थिति में मंत्री मौके का निरीक्षण करने के लिये घटना स्थल पर चले गये। मंत्री ने स्थानीय प्रशासन और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों को भी मौके पर तलब कर लिया। जब यह सारे लोग घटनास्थल पर पहुंच गये तो स्वभाविक रूप से इस त्रासदी से प्रभावितों का रोष और दर्द दोनों ही छलकने ही थे। इसी परिदृश्य में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों को जब जनरोष का कोपभाजन का केंद्र बनना पड़ा तो शायद स्थितियां संवाद से निकलकर मारपीट तक भी जा पहुंची। इस मारपीट का गंभीर संज्ञान लेते हुये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से बात कर मंत्री के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने को कहा। प्रदेश सरकार ने केंद्रीय मंत्री के निर्देशानुसार अपने मंत्री के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कर ली। क्योंकि मंत्री पर भी इस मारपीट में शामिल होने का आरोप लगा है।
हिमाचल में किसी कार्यरत मंत्री के खिलाफ ऐसी एफ.आई.आर. दर्ज होने का यह पहला मामला है। इस प्रकरण में कौन कितना दोषी है अब यह पुलिस जांच का मामला बन गया है इसलिये इस पर इस बिन्दु से कोई टिप्पणी करना सही नहीं होगा। लेकिन यह मामला दर्ज होने के बाद मंत्री से लेकर अन्य तक की जो प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं उन पर टिप्पणियां करना आवश्यक हो जाता है। मंत्री ने इस एफ.आई.आर. को राजनीति से प्रेरित बताते हुये मारपीट में शामिल होने से साफ इन्कार किया है। मंत्री ने स्पष्ट कहा है कि यदि मारपीट का कोई साक्ष्य है तो उसे सामने लाया जाये। मंत्री ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की प्रदेश में चल रही कार्यशैली पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाये हैं। यह आरोप है कि प्राधिकरण के ठेकेदार पहाड़ों की अवैज्ञानिक कटिंग कर रहे हैं और वेस्ट को हर कहीं डंप कर रहे हैं। यह भी आरोप है कि प्राधिकरण के अधिकारी और कार्य कर रही कंपनियां किसी की बात नहीं सुनती है और इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। ऐसे आरोप अब प्रदेश के हर कोने से आने शुरू हो गये हैं। जहां भी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण काम कर रहा है। इन आरोपों से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से ज्यादा तो प्रदेश सरकार और उसकी प्रशासनिक टीम कठघरे में आ रहे हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का कार्य प्रदेशों में राजमार्गों और फोरलेन सड़कों के निर्माण का है। लेकिन इन कार्यों में राज्य सरकारों की सहमति और अनुमति के बिना यह प्राधिकरण कुछ नहीं कर सकता यह इसके अधिनियम की बुनियादी शर्त है। इस शर्त के मुताबिक हर निर्माण के लिये प्राधिकरण और राज्य सरकार में एक लिखित अनुबंध होता है। इस अनुबंध के तहत ही इन मार्गों के लिये राज्य सरकारें भूमि का अधिग्रहण करती हैं और सुरक्षा प्रदान करती हैं। राज्य के सहयोग से ही डी.पी.आर. बनाई जाती है। यदि राजमार्ग के निर्माण में कहीं भी कोई कार्य मानकों के विरुद्ध होता पाया जाता है तो उसका तत्काल संज्ञान स्थानीय संबंधित प्रशासन लेकर राज्य सरकार को अवगत कराता है। राज्य सरकार उसे प्राधिकरण के संज्ञान में लाती है। लेकिन इस समय भट्टाकुफर प्रकरण के बाद जितने आरोप प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पर लग रहे हैं उसके अनुपात में शायद इससे पहले कोई शिकायतें नहीं रही है। माना यह जाता है कि प्राधिकरण के अधिकारी और कार्य निष्पादन कर रही कंपनियों के ठेकेदारों और राज्य प्रशासन के संबंद्ध अधिकारियों और स्थानीय नेतृत्व सभी में एक गहरा गठजोड़ रहता है। प्राधिकरण अपनी इच्छा से राज्य सरकार की अनुमति के कुछ भी नहीं कर सकता है। इस तरह का लम्बा पत्राचार प्राधिकरण और राज्य सरकार के बीच उपलब्ध है। इस समय प्राधिकरण ने प्रदेश में उन मार्गों के निर्माण से इन्कार कर दिया है जिनकी डी.पी.आर. पिछले तीन वर्षों में नहीं बन पायी है। प्राधिकरण के इस फैसले पर राज्य सरकार द्वारा कोई प्रतिक्रिया न देना यही प्रमाणित करता है कि राज्य सरकार के सहयोग और अनुमति के बिना यह प्राधिकरण राज्य में कुछ नहीं करता है। ऐसे में जब मंत्री ने प्राधिकरण की वर्किंग पर गंभीर आरोप लगाये हैं तो वह आरेाप स्वतः राज्य सरकार पर आ जाते हैं। सरकार ने मंत्री पर एफ.आई.आर. करके इस मामले को जितना शान्त करने का प्रयास किया है उन प्रयासों को इस पर उभरी प्रतिक्रियाओं से एक अलग ही कोण उठ खड़ा हुआ है। वैसे मंत्री की प्रतिक्रियाएं भी बहुत हद तक अवांछित हो जाती हैं।