यदि कांग्रेस हाईकमान ने समय रहते ध्यान न दिया तो प्रदेश हाथ से निकल जायेगा

Created on Monday, 30 June 2025 19:09
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश के छः बार मुख्यमंत्री रहे स्व.राजा वीरभद्र सिंह के चर्तुवार्षिक पर पदम पैलस रामपुर में हुये आयोजन में जिस संख्या में उनके समर्थक एवं शुभचिंतक हाजिर हुये हैं उससे यह प्रमाणित हो गया है कि प्रदेश की राजनीति में वह अभी भी एक प्रभावी फैक्टर बने हुये हैं। स्व. वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद बनी पहली कांग्रेस सरकार में कुछ ऐसी परिस्थितियां बन गयी हैं कि जनता कांग्रेस की सरकार के नाम पर इसकी तुलना वीरभद्र सिंह सरकार से करने पर विवश हो गये हैं। यह माना जा रहा है कि यदि शिमला में उनकी प्रतिमा के अनावरण का कार्यक्रम भी संपन्न हो पाता तो शायद रामपुर में इससे दो गुना लोग इकट्ठे हो जाते। इस अवसर पर आये आम आदमी का ही यह असर रहा है कि मुख्यमंत्री को यह कहना पड़ा है कि यदि प्रतिभा सिंह ही प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष बनी रहती हैं तो इसमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। अभी शिमला में उनकी प्रतिमा का अनावरण होना है। प्रतिमा रिज पर स्थापित हो चुकी है। रिज पर प्रतिमा की स्थापना को लेकर एक सुमन कदम पहले ही नगर निगम को एक पत्र लिखकर आपत्ति उठा चुकी है। अब रामपुर के आयोजन के बाद कुछ हल्कों में यह सवाल भी उठाया जाने लगा है कि यदि स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा रिज पर स्थापित हो सकती है तो स्व. राजीव गांधी की प्रतिमा को रिज पर स्थान क्यों नहीं। राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री रहे हैं और देश के लिए बलिदान हुये हैं उनका देश के लिये योगदान रहा है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इस विषय पर खामोश क्यों हैं। यह सवाल तब उठा है जब यह सामने आया की स्व. वीरभद्र सिंह के प्रतिमा को रिज पर स्थान प्रियंका गांधी के हस्ताक्षेप के बाद ही संभव हो पाया है। यह सवाल आने वाले दिनों में कितना बड़ा राजनीतिक आकार ले पाता है यह देखना दिलचस्प होगा।
लेकिन स्व. राजीव गांधी की प्रतिमा का सवाल जिस तरह से उठा है उससे कांग्रेस की पुरानी राजनीति अनायास ही फिर चर्चा में आ जाती है। क्योंकि जब स्व. वीरभद्र सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उस समय दोनों के राजनीतिक रिश्ते किस तरह के थे इससे पूरा प्रदेश परिचित है। बल्कि उसी दौरान वीरभद्र ब्रिगेड बनाने की चर्चाएं चली थी। वीरभद्र ब्रिगेड के जो प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये थे उनके साथ सुक्खू के रिश्ते कोई सौहार्दपूर्ण नहीं रहे हैं। यह सही है कि इस ब्रिगेड को उसी दौरान भंग भी कर दिया गया था। इस ब्रिगेड के बहुत से पदाधिकारी आज सुक्खू के निकटस्थों में गिने जाते हैं। ऐसे में स्व. राजीव गांधी की प्रतिमा का सवाल जिस ढंग से उठाकर उसमें राहुल और प्रियंका का जिक्र लाया गया है उसके राजनीतिक मायने बहुत दूरगामी होंगे। प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणीयां राज्य स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक पिछले नवम्बर से भंग है। इसी बीच नया अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा उठी। इस चर्चा में यहां तक बातें उठी कि दलित वर्ग से नया अध्यक्ष होगा। विधायक विनोद सुल्तानपुरी को लेकर यह कहा जाने लगा कि उनका बनना तय हो गया है। फिर विनय कुमार की चर्चा चली कि वह अध्यक्ष हो रहे है। इसी बीच कृषि मंत्री चंद्र कुमार के त्यागपत्र की चर्चा उठी। अब स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल ने जब एक जनसभा में यह कहा कि अगला चुनाव वह नहीं बल्कि उनका बेटा लड़ेगा तब यह चर्चा जुड़ गयी की शांडिल त्यागपत्र देकर प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे और उनकी जगह अवस्थी मंत्री बनेंगे। लेकिन यह चर्चा भी आगे आकार लेती नजर नहीं आ रही है।
इस समय प्रदेश सरकार जिस तरह के वित्तीय संकट से गुजर रही है उसमें लोगों पर करोड़ों का बोझ लगाने के अतिरिक्त सरकार और कुछ नहीं कर पा रही है। यदि केंद्र सरकार द्वारा पोषित और बाहय सहायता प्राप्त योजनाओं का स्त्रोत किसी कारण से बन्द हो जाये तो शायद सरकार चार दिन भी न चल पाये यह स्थिति है। वित्तीय संकट का प्रभाव विधानसभा चुनावों में दी गई गारंटीयों को पूरा करने पर पड़ रहा है। इसी कारण से सरकार नियमित रोजगार के स्थान पर 6600 और 5500 रुपए प्रतिमाह का रोजगार ही दस हजार पैरापम्प ऑपरेटर और मल्टीपर्पज वर्करज को दे पायी है। ऊपर से विमल नेगी की मौत प्रकरण और बाढ़ में बहकर आयी करोडों़ की लकड़ी के स्त्रोत के सवालों ने सरकार को और असहज कर रखा है। इस स्थिति का असर अब विधायकों और दूसरे कार्यकर्ताओं पर भी पढ़ने लगा है वह भी मुखर होने लगे हैं। विधायक कुलदीप राठौर और वन निगम के उपाध्यक्ष केहर सिंह खाची का अपरोक्ष संवाद इसका उदाहरण है। यदि समय रहते हाईकमान ने प्रदेश की ओर ध्यान न दिया तो स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो जायेगी।