शिमला/शैल। क्या विमल नेगी प्रकरण पर बिठाई गई प्रशासनिक जांच निष्कर्ष हीन है? क्या जांच अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह ओंकार शर्मा ने पावर कॉरपोरेशन के एम.डी. हरिकेश मीणा को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिये पूरा समय नहीं दिया? क्या सरकार इस जांच रिपोर्ट को प्रदेश उच्च न्यायालय में पेश नहीं होने देगी? यह सवाल इन दिनों सचिवालय के गलियारों में विशेष चर्चा का विषय बने हुये हैं? क्योंकि 20 मई को प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्व. विमल नेगी की धर्मपत्नी किरण नेगी की याचिका पर सभी प्रतिवादियों से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। स्मरणीय है कि विमल की मौत पर उनकी धर्मपत्नी किरण नेगी की शिकायत पर ही पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन इस एफआईआर में सीधे तौर पर देशराज का ही नाम है और हरिकेश मीणा केवल पदेन नामित है। इसलिये परिजनों की शिकायत है कि जब प्रताड़ना का आरोप हरिकेश मीणा पर भी था तो उसे एफआईआर में पदेन क्यों लाया गया। फिर पुलिस किसी भी अधिकारी को जांच में तब तक शामिल नहीं कर पायी जब तक देशराज उच्च न्यायालय से होकर सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत लेने में सफल नहीं हो गया। देशराज के बाद मीणा को भी उच्च न्यायालय से राहत मिल गयी। इसी के साथ परिजनों के आरोप भी है इस जांच को लेकर। परिजनों का आरोप है कि जब नेगी की लाश भाखडा बांध एरिया से बरामद हुई तब उनको इसकी सूचना दूसरे दिन एम्स बिलासपुर में पोस्टमार्टम के दौरान दी गयी। वहां भी अधिकारी पहले पहुंचे थे। फिर नेगी की लाश से जो सामान मिला है वह क्या और कहां है इसकी भी कोई जानकारी परिजनों को नहीं दी गयी है। इसी आचरण के आधार पर परिजनों को जांच की निष्पक्षता पर भरोसा नहीं है।
इसी सबके साथ इस प्रकरण का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि सरकार ने इस प्रकरण की पुलिस जांच के साथ ही एक प्रशासनिक जांच भी आदेशित की थी। यह जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह ओंकार शर्मा को सौंपी गयी थी। ओंकार शर्मा ने यह जांच करके जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। स्वभाविक है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव सरकार में यह जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव को ही सौंपेगा। संयोगवश मुख्य सचिव प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष भी हैं। फिर इस प्रकरण में पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर जिस तरह के आरोप पावर कॉरपोरेशन की कार्य प्रणाली पर इंजीनियर सुनील ग्रोवर ने ओंकार शर्मा के पास दी अपनी गवाही में लगाये हैं उनके परिदृश्य में मुख्य सचिव को इस मामले में ओंकार शर्मा की जांच रिपोर्ट के अवलोकन से परहेज करना चाहिए था क्योंकि वह स्वयं इसके अध्यक्ष भी हैं। फिर ओंकार शर्मा की रिपोर्ट को शायद मुख्य सचिव ने निष्कर्षहीन रिपोर्ट की टिप्पणी दे दी है और यह कहा है कि इसमें मीणा को अपना पक्ष रखने का पूरा समय नहीं दिया गया है। मुख्य सचिव की इन टिप्पणियों का शायद महाधिवक्ता से भी अनुमोदन करवा लिया गया है। ऐसे में जब यह रिपोर्ट निष्कर्षहीन मानी जा रही है तो इसे अदालत में पेश करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इस परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि यदि अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह के स्तर के अधिकारी की इतनी भारी भरकम रिपोर्ट ही निष्कर्षहीन है तो फिर सरकार में और कौन सा अधिकारी सक्षम होगा जो इस जांच को अंजाम दे पायेगा? ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रदेश उच्च न्यायालय इस स्थिति में कैसे और क्या संज्ञान लेता है।