शिमला/शैल। कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला को पद से हटा दिया है। शुक्ला की जगह महाराष्ट्र की कांग्रेस नेता रजनी पाटिल को प्रभारी लगाया गया है। इस फेरबदल के बाद यह चर्चा चल पड़ी है कि प्रदेश में और क्या बदलाव आता है। इस समय हिमाचल कांग्रेस की कार्यकारिणी पिछले करीब चार माह से बर्खास्त चल रही है। केवल अध्यक्षा को ही इस बर्खास्तगी से बाहर रखा गया है। नई कार्यकारिणी के गठन के लिये कुछ पर्यवेक्षक प्रदेश में भेजे गये थे। उनकी रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्यकारिणी का गठन किया जाना था। इन पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट क्या रही है यह तो सामने नहीं आ पाया है। लेकिन प्रभारी को पद से हटा दिया गया है। केन्द्र में कांग्रेस सत्ता में नहीं है। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस प्रदेश की चार लोकसभा सीटों में से एक भी नहीं जीत पायी है। यहां तक की सरकार होने के बावजूद राज्यसभा की सीट भी हार गयी। जबकि भाजपा सरकार के वक्त कांग्रेस मण्डी लोकसभा उपचुनाव जीत गयी थी। इस समय संयोगवश हिमाचल से न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा में कांग्रेस का कोई सांसद है। ऐसे में हाईकमान द्वारा नियुक्त किये गये प्रभारी की अहमियत और भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि हाईकमान को प्रदेश के बारे में निष्पक्ष राय और सूचना देने का पहला स्त्रोत प्रभारी ही रह जाता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि राजीव शुक्ला ने लोकसभा की चारों सीटें हारने और फिर राज्यसभा की सीट हारने और छः कांग्रेस विधायकों के दल बदल करने को लेकर कितनी सही और निष्पक्ष राय दी होगी। इस पर किसी राय पर पहुंचने से पहले प्रदेश सरकार और संगठन की व्यवहारिक स्थिति पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
हिमाचल में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह वह नेता हैं जो एन एस यू आई, युवा कांग्रेस और फिर प्रदेश कांग्रेस पाटी्र के अध्यक्ष रहे हैं। इन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर कुलदीप राठौर को स्व. वीरभद्र के समय में ही अध्यक्ष बना दिया गया था। कुलदीप राठौर के समय में ही कांग्रेस ने प्रदेश की चार में से दो नगर निगम में भाजपा शासन में जीत हासिल की थी। मण्डी लोकसभा का उपचुनाव भी जयराम सरकार के समय जीता था। प्रतिभा सिंह को उम्मीदवार बनाया गया था। प्रतिभा सिंह पहले भी मण्डी से लोकसभा सांसद रह चुकी थी। स्व. वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत का विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के लिये प्रतिभा सिंह को राठौर की जगह पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने सामूहिक नेतृत्व में लड़ने का फैसला लिया और किसी एक को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया। परन्तु विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद प्रदेश के नेता के चयन के लिये पर्यवेक्षकों ने सुक्खू को नेता घोषित कर दिया। सुक्खू के साथ ही मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। इस चयन की आधिकारिक सूचना राजभवन को प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दिये जाने की बजाये पर्यवेक्षकांे द्वारा दी गयी। पार्टी अध्यक्षा को मनाने के लिये पर्यवेक्षक हॉलीलाज गये और यहीं से यह सामने आ गया की पार्टी में भीतर से सब कुछ अच्छा नहीं है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के शपथ समारोह से ही निकला गुटबाजी का सन्देश हर रोज बढ़ता ही चला गया। मंत्रिमण्डल के विस्तार से पहले ही सरकार के फैसलों ने विपक्ष को मुद्दा थमा दिया था। शपथ ग्रहण करने के बाद दूसरे ही दिन पूर्व सरकार के छः सौ फैसले पलट दिये गये। जबकि एक ही दिन में छः सौ फाईलें पढ़कर उन पर फैसला ले पाना किसी के लिये भी संभव नहीं हो सकता। परन्तु मुख्यमंत्री ने यह किया और इससे यह संदेश गया कि यह सरकार पहले ही दिन से नौकरशाहों के हाथ में किस तरह से खेल गयी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। प्रदेश की यह स्थिति अचानक नहीं बनी है बल्कि नीयतन बनायी गयी है।
प्रदेश की स्थिति की जानकारी यदि प्रभारी समय पर हाईकमान के सामने नहीं रख पाया है तो निश्चित रूप से उसकी निष्ठाएं सन्देह के घेरे में आती हैं। यदि हाईकमान ने यह सब संज्ञान में होने के बावजूद इस पर कोई कारवाई नहीं की है तो स्पष्ट हो जाता है कि हाईकमान प्रदेश को कोई अहमियत ही नहीं देता है। यही स्थिति नये प्रभारी के लिये भी किसी परीक्षा से कम नहीं होगी। इस समय प्रदेश में ईडी, सीबीआई और आयकर दस्तक दे चुके हैं। इसका अंतिम परिणाम कब क्या सामने आता है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। ऐसे में जब तक सरकार को लेकर हाईकमान कोई फैसला नहीं लेता है तब तक संगठन कुछ नहीं कर सकता।