सेंसर बोर्ड में अनुभवहीनों का अड्डा 141 में से 30 फीसदी अनपढ़ 28 व्यापारी 60 फीसदी समाजसेवक पथिक संवाददाता मुंबई, 20 दिसंबर : भारत सरकार का फिल्म सेंसर बोर्ड अनपढ़ों, व्यापारियों और तथा कथिक समाजसेवकों का अड्डा बना हुआ है. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानक

Created on Friday, 20 December 2013 07:49
Written by Shail Samachar

 

पथिक संवाददाता

मुंबई, 20 दिसंबर : भारत सरकार का फिल्म सेंसर बोर्ड अनपढ़ों, व्यापारियों और तथा कथिक समाजसेवकों का अड्डा बना हुआ है. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 141 में से 30 फीसदी बोर्ड सदस्य के पास शिक्षा की कोई डिग्री नहीं है, और बाकी के 60 फीसदी सदस्य समाजसेवक केटेगरी या बिजनेस में हैं. छानबीन से पता चला है कि 141 बोर्ड सदस्यों को पैनल में 39 गैर स्नातक, 25 समाजसेवी और 28 व्यापारियों का समावेश है.

सूचना अधिकार की जानकारी के मुताबित एक सदस्य आसिफ खान 8वीं पास है जबकि गृहिणी कश्मीरा डेमायर की पढ़ाई एसएससी तक हुई है. इसमें सदस्य चेतन भट्ट 12वीं पास और समाजसेविका जयश्री कांबले दसवीं पास हैं. भारत के सेंसर बोर्ड की कमाल ऐसे लोगों की हाथों में आने पर भारतीय फिल्म का भविष्य क्या होगा यह सोचनीय है.

सेंसर बोर्ड में आनेवाली फिल्मों के सेंसर का निर्णय 8वीं, 10वीं और 12वीं पास लोग करते हैं. इनमें से कुछ सदस्य स्थानीय संसद सदस्य के कार्यकर्ता हैं. सेंसर बोर्ड के नियम 1955 के अनुसार इसकी कमेटी पर एक तिहाई नियुिक्त क्षेत्रीय समितियों द्वारा किया जाना चाहिए. लेकिन इन नियमों का पालन नहीं होता. इस नियम में सदस्यों की योग्यता शैक्षणिक पात्रता आदि के बारे में कोई साफ-साफ निर्देश नहीं है. इसलिए सेंसर बोर्ड में संदिग्ध किस्म के व्यिक्त को भी सदस्य किया गया है. जानकारी के मुताबिक एक सदस्य पर विदेशी वाहन खरीदी घोटाले में मामला दर्ज है वह सदस्य फरार है. इससे पहले केंद्रीय सेंसर बोर्ड की चेयरमैन लीला सैमसन ने आरोप लगाया था कि सेंसर बोर्ड के अनेक सदस्य कम शिक्षित या अशिक्षित है. तब उस पर बहुत बवाल मचा था. लेकिन सूचना के अधिकार से पता चला है कि 141 सदस्योंवालें इस बोर्ड के 30 फीसदी सदस्यों की शैक्षणिक योग्यता का कुछ पता नहीं है. श्रीमती सेंमसन का कहना है कि सेंसर बोर्ड की सभी नियुिक्तयां मंत्रालय से की जाती है इसमें बोर्ड की स्वायत्ता प्रभावित होती है.

चर्चा यह है कि सेंसर बोर्ड पर राजनीतिक रसूखवाले सदस्यों की नियुिक्तयों से इनका कामकाज प्रभावित होता है. कभी कुछ सदस्य धार्मिक कारणों से फिल्म की छोटी छोटी घटनाआें पर अड़ जाते हैं. इस कारण फिल्म विवादों में फंस जाती है. दरअसल बोर्ड के सदस्यों के चयन के लिए मापदंड तय कर उस पर अमल करना जरुरी है.