क्या भाजपा अपने मुद्दों के प्रति गंभीर है?

Created on Tuesday, 03 September 2024 18:53
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा विधायक दल ने नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर के नेतृत्व में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल से भेंट कर एक ज्ञापन सौंपकर विधानसभा अध्यक्ष को उनके पद से हटाने की मांग की है। भाजपा का आरोप है कि अध्यक्ष का आचरण सदन के अन्दर पक्षपात पूर्ण रहता है। आरोप है कि भाजपा विधायक दल ने नियम 67 के तहत प्रदेश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर चर्चा करने के लिये स्थगन प्रस्ताव दिया था जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। भाजपा ने राज्यपाल के संज्ञान में यह भी लाया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान एक कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष ने भाषण देते हुये कहा कि मैंने छः विधायकों के सिर कलम कर दिये हैं और तीन मेरे आरे के नीचे तड़प रहे हैं। यह शब्द अलोकतान्त्रिक और असंसदीय है। इससे विधायकों की भावनाएं आहत हुई हैं और अध्यक्ष पद की गरिमा को भी ठेस पहुंची है। सदन के अन्दर विधायक इन्द्रदत लखनपाल द्वारा यह मुद्दा उठाने पर विधानसभा अध्यक्ष ने खेद प्रकट करना तो दूर अपने शब्द भी वापस नहीं लिये। मीडिया के सामने कहा कि नेता प्रतिपक्ष मेरे से बहुत जूनियर है वह मुझे क्या सिखायेंगे। इसी के साथ राज्यपाल के संज्ञान में यह भी लाया गया कि भाजपा विधायक दल ने नियम 274 के तहत विधानसभा सचिव को विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाने का संकल्प प्रस्तुत किया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष सत्र शुरू होने पर अपने आसन पर आकर बैठ गये। जबकि नैतिकता के आधार पर उन्हें संकल्प पेश होने और उस पर चर्चा तथा मतदान होने तक आसन पर नहीं आना चाहिये था।
यह आरोप अपने में गंभीर है स्वभाविक है कि यदि यह आरोप आगे बढ़ते हैं तो स्थितियां और भी कठिन हो जायेंगी। इसलिए अन्ततः दोनों पक्षों में यह मुद्दा यहीं रुक जायेगा। लेकिन यह अपने में ही महत्वपूर्ण है कि एक समय अध्यक्ष भाजपा विधायकों के खिलाफ अवमानना की कारवाई करने के लिये तैयार थे। बल्कि यहां तक बात आ गयी थी कि यदि मुख्य संसदीय सचिवों के प्रकरण में कुछ आगे बढ़ता है तो उसका जवाब भाजपा विधायकों के खिलाफ कारवाई के रूप में सामने आयेगा। इस लिये अब यह मामला भाजपा-कांग्रेस का आपसी मामला होकर रह गया है और आम आदमी इसमें से गायब हो गया है। भाजपा नियम 67 के तहत प्रदेश की बिगड़ी वित्तीय स्थिति पर चर्चा करने की मांग लेकर आयी थी जो इस घटनाक्रम में पर्दे के पीछे चली गयी। मुख्यमंत्री ने सदन में प्रदेश की बिगड़ती स्थिति पर अपना लिखित वक्तव्य रखा। लेकिन इस ब्यान के बाद एक दम यू टर्न लेते हुये यह कहा कि प्रदेश की स्थिति एकदम ठीक है। वेतन भत्तों के विलम्बन का फैसला तो व्यवस्था सुधारने की दिशा में एक सख्त कदम है। सरकार का इस तरह से चौबीस घंटे में अपना स्टैंड बदलना कई सवाल खड़े करता है। प्रदेश की जनता को यह जानने का हक हासिल है कि प्रदेश की वास्तविक स्थिति क्या है। क्यों प्रदेश सरकार को हर माह एक हजार करोड़ से अधिक का कर्ज लेना पड़ रहा है। इस स्थिति में तो इस सरकार के अपने कार्यकाल का ही कर्ज साठ हजार करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगा।
यह सरकार वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप पूर्व की जय राम सरकार पर लगाती आयी है। वित्तीय स्थिति पर लाये श्वेत पत्र में भी यह आरोप दर्ज है। आज जब सरकार तय समय पर अपने कर्मचारीयों और पैन्शनरों का भुगतान नहीं कर पायी है तब विपक्ष के पास एक अवसर था कि इस संबंध में सारी सच्चाई प्रदेश की जनता के सामने लाने के लिये सरकार को बाध्य करते। इस सदन में रोजगार और आउटसोर्स कर्मियों के लेकर आये सवालों के जवाब में सूचना एकत्रित की जा रही है का ही जवाब आया है। जब किसी भी कारण से मुख्यमंत्री को अपने वेतन भत्तों को निलंबित रखने का फैसला सदन की जानकारी में लाना पड़े तो उसके किसी भी वायदे पर कितना भरोसा किया जा सकता है यह एक सामान्य समझ का प्रश्न है। कांग्रेस की सरकार लोगों को गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी। प्रदेश कांग्रेस के नेता कार्यकर्ताओं को सरकार में स्थान न मिलने पर किस हद तक मुखर हो गये थे पूरा प्रदेश जानता है। लेकिन इस समय आम आदमी के सवाल पर सारा नेतृत्व खामोश हो गया है। ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष हिमाचल की स्थिति को हरियाणा के चुनावों में मुद्दा बनायेगी। लेकिन हिमाचल के संदर्भ में भाजपा की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं कि भाजपा प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर एक विपक्ष से ज्यादा कुछ नहीं कर रही है। इस समय वित्तीय स्थिति पर आम आदमी के सामने सारी स्थिति आनी चाहिए क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी का होने जा रहा है। आने वाले समय में आम आदमी किसी भी दल के किसी भी वायदे पर विश्वास नहीं कर पायेगा?